बुलंद नारों की बुलंद दास्तां, हिली हुकूमत अंग्रेजों की, जब चले शब्दों के बाण

नेताजी के संबोधन के वो आखिरी प्रभावशाली शब्द कुछ ऐसे थे– “स्वतंत्रता के युद्ध में मेरे साथियों! आज मैं आपसे एक चीज मांगता हूं, सबसे ऊपर मैं आपसे खून मांगता हूं। यह खून ही उस खून का बदला लेगा, जो शत्रु ने बहाया है। खून से ही आजादी की कीमत चुकाई जा सकती है। तुम मुझे खून दो मैं तुम से आजादी का वादा करता हूं।”

जय हिंद” : ‘जय हिंद’ का नारा भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सन् 1941 में दिया था, वैसे तो इस नारे का प्रयोग सर्वप्रथम क्रांतिकारी चेम्बाकरमण पिल्लई द्वारा किया गया था, लेकिन सुभाष चंद्र बोस द्वारा आजाद हिंद फौज के लिए युद्ध घोष के तौर पर प्रयोग हुए इस नारे ने अधिक लोकप्रियता प्राप्त की। देशप्रेम की भावना से सराबोर होने के कारण ‘जय हिंद’ नारा अवाम में बेहद प्रचलित हुआ।

जय हिंद’ का नारा भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सन् 1941 में दिया था

जय हिंद’ का नारा भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सन् 1941 में दिया था

सन् 1933 में जब चेम्बाकरमण पिल्लई को आस्ट्रिया की राजधानी वियना में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ, तब उन्होंने “जय हिन्द” कह कर नेताजी का अभिवादन किया था। अभिवादन स्वरूप कहे गए इन दो शब्दों से नेताजी बेहद प्रभावित हुए थे। बाद में यही शब्द आजाद हिन्द फौज के युद्ध घोष के रूप में जाने गए। आजाद हिंद फौज के सैनिकों में देशप्रेम की भावना भरने और आजादी की लौ जगाने के लिए ‘जय हिंद’ का प्रयोग हुआ था, लेकिन सैनिकों के साथ-साथ जनता के बीच भी यह नारा बेहद लोकप्रिय हुआ।

दिल्ली चलो” : 1942 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ही आजाद हिंद फौज को “दिल्ली चलो” का आह्वान करते हुए यह नारा दिया था। सन् 1942 में आजाद हिंद फौज के मुखर नेता होते हुए नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने महसूस किया कि इंग्लैंड द्वितीय विश्व युद्ध में उलझता जा रहा है, तब उस समय यह नारा देकर उन्होंने फौज का मार्गदर्शन किया। सुभाष चन्द्र बोस मानते थे कि अंग्रेज खुद भारत को आजाद नहीं करेंगे, इसलिए अंग्रेजों से लड़कर ही आजादी पाई जा सकती है। इसी लक्ष्य के साथ उन्होंने आजाद हिंद फौज का नेतृत्व किया और ब्रिटिश सत्ता पर धावा बोलने के इरादे से ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया।

साइमन कमीशन वापस जाओ” : लाला लाजपत राय द्वारा ‘साइमन वापस जाओ’ का नारा सन् 1928 में दिया

 लाला लाजपत राय द्वारा ‘साइमन वापस जाओ’ का नारा सन् 1928 में दिया गया था

लाला लाजपत राय द्वारा ‘साइमन वापस जाओ’ का नारा सन् 1928 में दिया गया था

गया था। दरअसल, इस नारे की उत्पत्ति 8 नवंबर, 1927 को घोषित साइमन कमीशन के गठन का परिणाम था। 1927 में भारत में संवैधानिक सुधारों के अध्ययन के लिए सात ब्रिटिश सांसदों के समूह वाले साइमन कमीशन का गठन किया गया था। कमीशन को इस बात की जांच करनी थी कि क्या भारत इस लायक हो गया है कि यहां लोगों को संवैधानिक अधिकार दिए जाए। लेकिन कमीशन में केवल ब्रिटेन की संसद के मनोनीत सात सदस्यों को ही शामिल किया गया और यही जनता के बीच आक्रोश का प्रमुख कारण बना।

कांग्रेस के 1927 के मद्रास अधिवेशन में ‘साइमन कमीशन’ के पूर्ण बहिष्कार का निर्णय लिया गया। इस कमीशन से भारतीयों के आत्मसम्मान को बेहद ठेस पहुंची थी। इसलिए जब फरवरी 1928 में आयोग के सदस्य बंबई पहुंचे तो उनके खिलाफ अभूतपूर्व हड़ताल का आयोजन किया गया। विरोध में काले झंडे दिखाए गए और ‘साइमन वापस जाओ’ का नारा लगाकर आक्रोश जताया गया। इसी विरोध के दौरान पुलिस की लाठियों से जख्मी होने के कारण लाला लाजपत राय शहीद हो गए। लेकिन अंतिम समय तक अंग्रेजों को ललकारते हुए उन्होंने कहा “‘मेरे सिर पर लाठी का एक-एक प्रहार, अंग्रेजी शासन के ताबूत की कील साबित होगा।”

ये मात्र कुछ ऐसे नारे हैं, जिन्होंने लोकप्रियता की बुलंदी को छूते हुए जनमानस के रग-रग में देशप्रेम की धारा प्रवाहित की। हालांकि, इसके अलावा भी कई और ऐसे नारे थे, जिनके योगदान को कम नहीं आंका जा सकता। कभी गीत, कभी गजल तो कभी कथन के तौर पर उभरे इन नारों ने शब्दरूपी बाणों की तरह प्रहार किया, जिससे ब्रिटिश हुकूमत छलनी और सत्ता जमींदोज हो गई।

अर्चना महतो

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