“स्कैब” रोग के प्रभाव वाले क्षेत्रों में किसानों एवं बागवानों को बागवानी विभाग की सलाह....

कांगड़ा: शाहपुर में सेब तैयार… ग्राहक पहुंच रहे घर-द्वार

दुर्गेला के पूर्ण बुनकर ने मेहनत और नवाचार से रचा सेब बागवानी में नया अध्याय*

शाहपुर: अगर जज्बा हो और कुछ कर गुजरने की ठान ली जाए तो कोई भी मंज़िल दूर नहीं रहती। यह कर दिखाया है शाहपुर उपमंडल के दुर्गेला गांव निवासी मेहनती बागवान पूर्ण चंद बुनकर ने।

वर्षों पहले मक्की और गेहूं जैसी परंपरागत खेती छोड़, उन्होंने सेब की बागवानी की राह चुनी। आज उनका जैविक सेब न केवल हिमाचल में, बल्कि देश के विभिन्न राज्यों में भी पहचान बना चुका है।

बागवानी विभाग के सहयोग और मार्गदर्शन से उन्होंने अन्ना व डोरसेट प्रजाति के पौधे लगाए। केवल तीन वर्षों की मेहनत ने रंग दिखाया और बगीचे में सेब की बहार आ गई। इन दिनों उनके बाग में तुड़ान जोरों पर है।

पूर्ण बुनकर बताते हैं, “हम रसायनों का प्रयोग नहीं करते। सिर्फ जैविक खादों से फसल तैयार करते हैं।” यही वजह है कि उनके बगीचे के रसीले सेबों की इतनी मांग है कि ग्राहक खुद उनके घर आकर खरीददारी करते हैं — वो भी उचित दामों पर।

नवाचार की राह पर आगे बढ़ते हुए, उन्होंने अपनी निजी नर्सरी भी शुरू की है, जिसमें अन्ना, डोरसेट, हरमन-99 और जापानी फल परसीमन के पौधे उगाए जाते हैं। अब तक वे 40 से 50 हजार पौधे पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, असम व अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में भेज चुके हैं और तकनीकी सहयोग भी दे रहे हैं।

उनका कहना है कि अब कई स्थानों पर लगाए गए बागानों में फल भी आने लगे हैं। वे युवाओं से अपील करते हैं—

“परंपरागत खेती से आगे बढ़ें, बागवानी अपनाएं। यही आत्मनिर्भरता और बेहतर आमदनी की कुंजी है।”

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