सोलन: नौणी ने मनाया 39वां स्थापना दिवस

दूसरे बागवानी परिवर्तन पर काम करने की जरूरत: प्रोफेसर चंद

सोलन: राज्य को बागवानी परिवर्तन और विकास के दूसरे चरण पर काम करना शुरू करना की जरूरत है। भारत सरकार के नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद ने शुक्रवार को डॉ यशवंत सिंह परमार औदयानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय में आयोजित 39वें स्थापना दिवस के अवसर पर यह विचार व्यक्त किये।

इस अवसर पर प्रोफेसर रमेश चंद ने कहा कि हिमाचल को बागवानी आधारित विकास से बहुत लाभ हुआ है, जो कई सामाजिक मानदंडों के माध्यम से भी परिलक्षित होता है, जहां राज्य ने राष्ट्रीय स्तर पर अच्छा प्रदर्शन किया है। हालांकि, अब समय आ गया है कि राज्य बागवानी विकास के दूसरे चरण की ओर बढ़े। उन्होंने सुझाव दिया कि सिक्किम के मॉडल का अध्ययन किया जाए जहां लगभग 35 प्रतिशत क्षेत्र बागवानी के अंतर्गत है। उन्होंने कहा कि राज्य में बागवानी की विकास दर एक चुनौती है जिसे अवसर में बदलना होगा। वानिकी स्नातकों के लिए अवसर और राज्य की विभिन्न स्थितियों के लिए विभिन्न कृषि-बागवानी मॉडल विकसित करना चाहिए। उन्होंने कम बागवानी वाले क्षेत्रों के लिए योजना तैयार करने के साथ-साथ अत्यधिक बागवानी-संतृप्त क्षेत्रों के लिए योजना बनाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। प्रोफेसर चंद ने विश्वविद्यालय में एक वैज्ञानिक के रूप में बिताए गए अपने पांच वर्षों को भी स्नेहपूर्वक याद किया।

इस अवसर पर संयुक्त राष्ट्र के एफ॰ए॰ओ॰ के वरिष्ठ नीति सलाहकार (प्राकृतिक संसाधन) और परियोजना निदेशक (जीईएफ ग्रीन एजी) आर॰बी॰ सिन्हा ने कहा कि वर्तमान में लघु वन उपज की टिकाऊ हार्वेस्ट पर कोई डेटा नहीं है और विश्वविद्यालय द्वारा इस डेटा को जनरेट करने के प्रयास किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि यह डेटा स्थायी वन प्रबंधन के लिए स्थानीय समुदायों को प्रशिक्षित करने के लिए भी फायदेमंद होगा।

नई दिल्ली में हिमाचल सरकार के मुख्य स्थानीय आयुक्त सुशील सिंगला ने देश की खाद्य और पोषण सुरक्षा को बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया। प्राकृतिक खेती पर काम की सराहना करते हुए उन्होंने सुझाव दिया कि विश्वविद्यालय को इस पद्धति के माध्यम से प्राप्त कार्बन क्रेडिट का उपयोग करने की दिशा में काम करना चाहिए।

इससे पहले, विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजेश्वर सिंह चंदेल ने कहा कि विश्वविद्यालय और किसानों के प्रयासों से अब यह सुनिश्चित हो पाया है कि ‘देवभूमि’ को अब देश का ‘सेब और फल राज्य’ भी कहा जाने लगा है। उन्होंने पिछले एक वर्ष की विश्वविद्यालय की विभिन्न उपलब्धियों के बारे में बताया। विश्वविद्यालय की प्राकृतिक खेती पहल के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय अगले शैक्षणिक सत्र में प्राकृतिक खेती पर स्नातक एवं स्नातकोत्तर कार्यक्रम शुरू करेगा। प्रोफेसर चंदेल ने कहा कि NCERT के छात्रों के लिए प्राकृतिक खेती पर पाठ्यक्रम भी बनकर तैयार हो गया है।

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के पहले कुलपति स्वर्गीय डॉ. एम॰आर॰ ठाकुर की स्मृति में स्थापित शिक्षण और अनुसंधान में उत्कृष्ट योगदान के लिए डॉ एम॰आर॰ ठाकुर मेमोरियल साइंटिस्ट अवार्ड भी दिया गया। खाद्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राकेश शर्मा ने यह पुरस्कार जीता। उन्हें 50,000 रुपये का नकद राशि और एक प्रशस्ति पत्र से उन्हें नवाजा गया। इस अवसर पर यूजी और पीजी छात्रों के लिए प्राकृतिक खेती पर सर्टिफिकेट कोर्स पर एक पुस्तक भी जारी की गई। विश्वविद्यालय, जिसे नाबार्ड और कृषि विभाग द्वारा एक उत्पादक संगठन प्रमोटिंग संस्थान के रूप में मान्यता दी गई है, ने आज किसान उत्पादक कंपनी की सहायता के लिए पहली किस्त के रूप में चौपाल नेचुरल फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी को 3.26 लाख रुपये का चेक जारी किया।

प्रोफेसर केके रैना ने इससे पहले अतिथियों का स्वागत किया और आईडीपी के तहत की गई गतिविधियों के बारे में जानकारी दी। विश्वविद्यालय के कुलसचिव नरेंद्र चौहान ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया। मुख्य अतिथि और विश्वविद्यालय के अधिकारियों द्वारा डॉ. वाईएस परमार की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की गई। इस अवसर पर 27 लाख रुपये की लागत से निर्मित प्राकृतिक खेती की प्रयोगशाला सह प्रशिक्षण केंद्र का भी उद्घाटन किया गया। विश्वविद्यालय के वैधानिक अधिकारी, सेवानिवृत्त शिक्षक एवं कर्मचारी, प्रगतिशील किसान एवं छात्र इस कार्यक्रम में शामिल हुए।

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