हिमाचल के ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं की आजीविका के लिए मशरूम की खेती बनी वरदान
हिमाचल के ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं की आजीविका के लिए मशरूम की खेती बनी वरदान
महिलाओं के समूह द्वारा मशरूम उगाने का परीक्षण सफल रहा : जाइका परियोजना निदेशक गुलेरिया
परियोजना का लक्ष्य राज्य के सात जिलों में 700 से अधिक स्वयं सहायता समूहों का गठन करना
शिमला : जापान अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (JICA) द्वारा वित्त पोषित हिमाचल प्रदेश वन पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन एवं आजीविका सुधार परियोजना का प्रदेश के सात जिलों में कार्यान्वयन किया जा रहा है। परियोजना के सहयोग से ग्राम वन विकास समितियों के स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) की सामुदायिक आजीविका बढ़ाने के लिए 24 आय सृजन गतिविधियों की पहचान की गई है। हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में महिला स्वयं सहायता समूह अपनी आजीविका के लिए प्रौद्योगिकी संचालित आय सृजन गतिविधियों को अपना रही हैं। नवंबर 2022 में शिमला शहर के उपनगरों में घनाहटी के निकट ग्राम कांडा में एकता महिला स्वयं सहायता समूह को उनके गांव में जाइका वानिकी परियोजना के कर्मचारियों और विशेषज्ञों द्वारा बटन मशरूम की खेती के लिए उन्मुख किया गया था। समूह ने किराए के कमरे में 10 किलोग्राम के 245 बीज वाले कम्पोस्ट बैग के साथ बटन मशरूम का उत्पादन शुरू किया। बटन मशरूम के उत्पादन में स्वयं सहायता समूह की महिला सदस्यों के लिए परियोजना के विशेषज्ञों द्वारा दिन-प्रतिदिन तकनीकी सहायता प्रदान की गई। 25 दिनों के बाद बटन मशरूम का उत्पादन शुरू हुआ और एक सप्ताह में समूह ने 200 किलोग्राम मशरूम का विपणन किया, जो एक सप्ताह में 20,000 रुपये से अधिक की सकल वापसी के साथ 110-130 रुपये प्रति किलोग्राम की कीमत पर मिल रहा है। इस उद्यम में समूह की यह पहली सफलता थी, जिसके लिए उन्हें औपचारिक रूप से प्रशिक्षित नहीं किया गया था और उनके प्रदर्शन स्थल पर परियोजना विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में दिन-प्रतिदिन के संचालन के दौरान सीखा। उत्पादन लगभग 2 महीनों तक जारी रहेगा और इस दौरान समूह 500 किलोग्राम था उत्पादन करेगा जिसमें 50000 रूपये बाजार मूल्य का कुल उत्पादन अपेक्षित है। महिला समूह की सदस्यों ने अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि यह बहुत सुगम गतिविधि है और चुनने, धोने, पानी भरने और पैकेजिंग के लिए केवल 1-2 घंटे की दैनिक देखभाल की आवश्यकता होती है। विपणन स्थानीय रूप से किया जाता है और मांग बहुत अधिक है और प्रदर्शन स्थल पर नकदी पर नए सिरे से बिक्री की जाती है। स्थानीय आबादी स्थानीय रूप से उगाए गए बटन मशरूम का आनंद ले रही है, जिसकी खेती गांव में शायद पहली बार किसी महिला समूह द्वारा की गई है।
अतिरिक्त प्रधान मुख्य अरण्यपाल एवं मुख्य परियोजना निदेशक (JICA) हिमाचल प्रदेश वन पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन एवं आजीविका सुधार परियोजना नागेश गुलेरिया ने कहा कि महिलाओं के इस समूह द्वारा मशरूम उगाने का परीक्षण सफल रहा है। उन्होंने कहा कि समूह को एक लाख रूपये परिक्रामी निधि के रूप में प्रदान किए गए और इस आजीविका उद्यम को शुरू करने के लिए उन्हें गांव में ही तकनीकी प्रशिक्षण परियोजना के माध्यम से दिया गया। परियोजना का लक्ष्य राज्य के सात जिलों में 700 से अधिक स्वयं सहायता समूहों का गठन करना है और साथ ही उन्हें आजीविका के नवीन आय सृजन गतिविधियों को विकसित करने और अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना है। ढींगरी और शिताके मशरूम की प्रजातियों की ज्यादा मांग और सूखे मशरूम के रूप में आसान विपणन को ध्यान में रखते हुए समूह में मशरूम उगाने में विविधता लाने के प्रयास जारी हैं।
एकता स्वयं सहायता समूह की प्रधान सुश्री पूजा और समूह की अन्य महिलाओं का कहना है कि उन्हें बटन मशरूम उगाने का कोई व्यावहारिक प्रशिक्षण नहीं मिल रहा था, लेकिन जाइका परियोजना के विशेषज्ञों की प्रेरणा व सहायता ने हमारे लिए इसे संभव बनाया है। यह मशरूम उगाने का पहला प्रदर्शन था और इस गतिविधि में रुचि रखने वाले विभिन्न घरों से कई आगंतुक और महिलाएं हैं।