लहसुन दूसरी कंदीय सब्जियों के मुकाबले अधिक पौष्टिक गुणों वाली सब्जी
लहसुन एक महत्त्वपूर्ण व पौष्टिक कंदीय सब्जी है। इस का प्रयोग आमतौर पर मसाले के रूप में किया जाता है। लहसुन दूसरी कंदीय सब्जियों के मुकाबले अधिक पौष्टिक गुणों वाली सब्जी है। यह पेट के रोग, आँखों की जलन, कण के दर्द और गले की खराश वगैरह के इलाज में कारगर होता है। हरियाणा की जलवायु लहसुन की खेती हेतु अच्छी है।
जलवायु:-इसकी खेती मध्यम एंव उचीं पहाडियों पर सफलता पूर्वक की जा सकती है। इसकी खेती लाहौल-स्पीति की उंची पहाडियों पर भी की जा सकती है। निचली पहाडियों पर इस जाति में कन्द का विकास नहीं होता ।
भूमि: इसके लिए बलुई -दोमट या हल्की दोमट जिसमे पानी का निकास अच्छा हो उपयुक्त पायी जती है। भारी मिट्टी में गांठे सही तरीके से नहीं बन पाती है।
खेत की तैयारी एवं खाद की मात्रा : सात-आठ जुताई करके खेत को अच्छी तरह समतल बनाकर क्यारिया एवं नालियों में बांट देते है। फिर 50 टन गोबर की खाद प्रति है की दर से क्यारियों में मिला देते है। रोपाई के दो दिन पूर्व 300 किग्रा कैल्सियम अमोनियम नाईट्रेड या 150 किग्रा यूरिया प्रति है की दर से जमीन पर अच्छी तरह मिला लेते है और क्यारियों को पुनः समतल बना लेते है।
बोआई का समय :मध्यम उचाई वाले पहाडी क्षेत्रों में इसकी बुआई सितम्बर अक्टुबर में की जाती है और अधिक उंचाई वाले स्थानों में मई, जून में की जाती है।
बीज की मात्रा एवं बुआई का ढंग:लहसुन के कन्दों में कई कलियां होती है। इन्हीं कलियों को गांठों से अलग-अलग करके बुआई की जाती है। कतारों से कतारों की दूरी 15 सेमी तथा कलियों से कलियों की दूरी 10 सेमी रखते है। बुआई लगभग तीन से पांच सेंमी की गहराई में करते है। बुआई करते समय यह ध्यान देना आवश्यक है कि कलियों का नुकीला भाग उपर की तरफ रखा जाय । प्रति है० के लिए लगभग सात से आठ क्विंटल बीज की आवश्यकता होती है।
फसल सुरक्षा: फसल को हानिकारक कीटों एवं बीमारियों से बचाना आवश्यक होता है। इसमें थ्रिप्स कीट एवं बैगनी धब्बा, झुलसा तथा डाउनी रोग मुख्यतया नुकसान पहुचाते है। थ्रिप्ट कीट एवं बैंगनी धब्बा तथा झुलसा रोग से बचाने के लिए मैथालियान एक मिली०, इण्डोफिल एम 45-2.5 ग्राम व ट्राईटोन 0.6 मिली० का प्रति ली पानी में एक साथ मिलाकर तथा घोल बनाकर छिडकाव करें । डाउनी रोग की रोकथाम के लिए रिडोमिल एम०जैड का 0.1 प्रतिशत का घोल बनाकर तथा डाईटोन मिलाकर छिडकाव करना चाहिए ।
खुदाई एवं लहसुन का सुखाना: पहाडों पर लहसुन लगभग 250 से 270 दिन में तैयार
लहसुन
हो जाता है । इसके 12 से 15 दिन तक लहसुन की खुदाई करके गांठों को 3 से 4 दिन खेत में सुखाते हैं। फिर 2 सेमी ० छोडकर पत्तियों को कन्दों से अलग कर देते है। इसकी खुदाई मध्यम उंचाई वाले पहाडियों पर मई जून में एवं अधिक उंचाई वाली पहाडियों पर अगस्त सितम्बर में करते है।
पैदावार : प्रति है० 175 से 200 क्विंटल तक पैदावार होती है।
उन्नत किस्में: जी 1– इस किस्म के लहसुन की गांठे सफेद, सुगठित व मध्यम के आकार की होती हैं। हर गांठ में 15-20 कलियाँ पाई जाती हैं। यह किस्म बिजाई के 160 – 180 दिनों में पक कर तैयार होती है। इस की पैदावार 40 से 45 क्विंटल प्रति एकड़ है।
एजी 17 – यह किस्म हरियाणा के लिए अधिक माकूल है। इस की गांठे सफेद व सुगठित होती है। गांठ का वजन 25-30 ग्राम होता है। हर गांठ में 15-20 कलियाँ पाई जाती हैं। यह किस्म बिजाई के 160-170 दिनों में पक कर तैयार होती है। पैदावार लगभग 50 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
मिट्टी और जलवायु: वैसे लहसुन की खेती कई किस्म की जमीन में की जा सकती है, फिर भी अच्छी जल निकास व्यवस्था वाली रेतीली दोमट मिट्टी जिस में जैविक पदार्थों की मात्रा अधिकं हो तथा जिस का पीएच मान 6 से 7 के बीच हो, इस के लिए सब से अच्छी हैं। लहसुन की अधिक उपज और गुणवत्ता के लिए मध्यम ठंडी जलवायु अच्छी होती है।
खेती की तैयारी: खेत में 2 या 3 गहरी जुताई करें इस के बाद खेत को समतल कर के क्यारियाँ व सिंचाई की नालियाँ बना लें।
बिजाई का समय :लहसुन की बिजाई का सही समय सितंबर के आखिरी हफ्ते से अक्टूबर तक होता है।
बीज की मात्रा:लहसुन की अधिक उपज के लिए डेढ़ से 2 क्विंटल स्वस्थ कलियाँ प्रति एकड़ लगती हैं। कलियों का व्यास 8-10 मिली मीटर होना चाहिए।
बिजाई की विधि: बिजाई के लिए क्यारियों में कतारों दूरी 15 सेंटीमीटर व कतारों में कलियों का नुकीला भाग ऊपर की ओर होना चाहिए और बिजाई के बाद कलियों को 2 सेंटीमीटर मोटी मिट्टी की तह से ढक दें।
खाद व उर्वरक: खेत की तैयारी के समय 20 टन गोबर की सड़ी हुई खाद देने के अलावा 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस व 20 किलोग्राम पोटाश रोपाई से पहले आखिरी जुताई के समय मिट्टी में अच्छी तरह मिलाएँ। 20 किलोग्राम नाइट्रोजन बिजाई के 30-40 दिनों के बाद दें।
सिंचाई:लहसुन की गांठों के अच्छे विकास के लिए सर्दियों में 10-15 दिनों के अंतर पर और गर्मियों में 5-7 दिनों के अंतर पर सिंचाई होनी चाहिए।
अन्य कृषि क्रियाएँ व खरपतवार नियंत्रण: लहसुन की जड़ें कम गहराई तक जाती हैं। लिहाजा खरपतवार की रोकथाम हेतु 2-3 बार खुरपी से उथली निराई गुड़ाई करें। इस के अलावा फ्लूक्लोरालिन 400-500 ग्राम (बासालिन 45 फीसदी, 0.9-1.1 लीटर) का 250 लीटर पानी में घोल बना कर प्रति एकड़ के हिसाब से बिजाई से पहले छिड़काव करें या पेंडीमैथालीन 400-500 ग्राम (स्टोम्प 30 फीसदी, 1.3-1.7 लीटर) का 250 लीटर पानी में घोल बना कर बिजाई के 8-10 दिनों बाद जब पौधे सुव्यवस्थित हो जाएँ और खरपतवार निकलने लगे, तब प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें।
गांठो की खुदाई: फसल पकने के समय जमीन में अधिक नमी नहीं रहनी चाहिए, वर्ना पत्तियाँ फिर से बढ़ने लगती हैं और कलियाँ का अंकुरण हो जाता है। इस से इस का भंडारण प्रभावित हो सकता है।
पौधों की पत्तियों में पीलापन आने व सूखना शुरू होने पर सिंचाई बंद कर दें। इस के कुछ दिनों बाद लहसुन की खुदाई करें। फिर गांठों को 3 से 4 दिनों तक छाया में सुखाने के बाद पत्तियों को 2-3 सेंटीमीटर छोड़ कर काट दें या 25-30 गांठों की पत्तियों को बांध कर गूछियों बना लें।
भंडारण: लहसुन का भंडारण गूच्छीयों के रूप में या टाट की बोरियों में या लकड़ी की पेटियों में रख कर सकते हैं। भंडारण कक्ष सूखा व हवादार होना चाहिए। शीतगृह में इस का भंडारण 0 से 0.2 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान व 65 से 75 फीसदी आर्द्रता पर 3-4 महीने तक कर सकते हैं।
पैदावार: इस की औसतन उपज 4-8 टन प्रति हेक्टेयर ली जा सकती है।
बीमारियाँ व लक्षण: आमतौर पर लहसुन की फसल में बैगनी धब्बा का प्रकोप हो जाता है। इस के असर से पत्तियों परGarlicजामुनी या गहरे भूरे धब्बे बनने लगते हैं। इन धब्बों के ज्यादा फैलाव से पत्तियाँ नीचे गिरने लगती हैं। इस बीमारी का असर ज्यादा तापमान और ज्यादा आर्द्रता में बढ़ता जाता है। इस बीमारी की रोकथाम के लिए इंडोफिल एम् 45 या कॉपर अक्सिक्लोराइड 400-500 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से ले कर 200-500 लीटर पानी में घोल कर और किसी चपकने वाले पदार्थ (सैलवेट 99, 10 ग्राम, ट्रीटान 50 मिलीलीटर प्रति 100 लीटर ) के साथ मिला कर 10-15 दिनों के अन्तराल पर छिड़कें।