"हिमाचल" होगा ओर भी सुंदर जब सब मिलकर करेंगे "पर्यावरण का संरक्षण" छायाकार: मीना कौंडल

“पर्यावरण संरक्षण”…..घर-परिवार ही सही अर्थों में पर्यावरण-शिक्षण की प्रथम पाठशाला

  •  हिमाचल को बनाएं सुंदर आओ करें पर्यावरण-संरक्षण

पर्यावरण-संरक्षण से अभिप्राय सामान्यतः पेड़-पौधों के संरक्षण एवं हरियाली का विस्तार छायाकार: मीना कौंडल

पर्यावरण-संरक्षण से अभिप्राय सामान्यतः पेड़-पौधों के संरक्षण एवं हरियाली का विस्तार छायाकार: मीना कौंडल

  • पर्यावरण-संरक्षण से अभिप्राय सामान्यतः पेड़-पौधों के संरक्षण एवं हरियाली के विस्तार से लिया जाता है परन्तु

पर्यावरण को साफ-सुथरा रखने में हरेक इंसान दें अपना योगदान छायाकार: मीना कौंडल

पर्यावरण को साफ-सुथरा रखने में हरेक इंसान दें अपना योगदान
छायाकार: मीना कौंडल

विस्तृत व विराट रूप में इसका तात्पर्य पेड़-पौधों के साथ-साथ जल, पशु-पक्षी एवं सम्पूर्ण पृथ्वी की रक्षा से है। ऐसे में घर-परिवार ही सही अर्थों में पर्यावरण-शिक्षण की प्रथम पाठशाला है। परिवार के बड़े सदस्य अनेक दृष्टान्तों के माध्यम से ये सीख बच्चों को दे सकते हैं। बच्चों को पर्यावरण संबधित जानकारी और प्रकृति से प्यार करना सीखा सकते हैं। बच्चों को पौधे लगाने के बारे में जानकारी देना बच्चों को पौधों के लिए पानी,धूप,खाद, छाया और हमारे जीवन में इन पेड़-पौधों की अहमियत के बारे में बताना ये सब घर परिवार से बच्चे ज्यादा जानते और सीखते  हैं

आज दुनिया में ग्लोबल वॉर्मिग का संकट गहराता जा रहा है। पर्यावरण को बचाने के लिए विश्व स्तर पर सालों से सम्मेलन और बैठकों के दौर जारी हैं, लेकिन पर्यावरण को साफ-सुथरा रखने में जब तक हरेक इंसान इसमें अपना योगदान नहीं करेगा, ये मुहिम सफल नहीं हो सकती। हम भी अपने आस-पास के पर्यावरण को साफ-सुथरा और प्रदूषण रहित रखने में योगदान कर सकते हैं।

हिमाचल प्रदेश में भी पौधारोपण से वनों का क्षेत्रफल बढ़ा है और पर्यावरण में भी सुधार हुआ है। जहां भी वन सड़कों के किनारे मौजूद हैं तथा जहां-जहां पेड़ सड़कों के किनारे विकसित हैं, वहां ध्वनि-प्रदूषण नहीं होता और भारी गर्मी में यह वृक्ष मुसाफिरों को छाया देकर राहत देते हैं। खेतों के किनारों, कुओं, तालाबों, नहरों, बांधों, झीलों तथा जलाशयों के निर्माण के साथ ही इनके किनारों पर बड़े स्तर पर वृक्षारोपण सही प्रजातियों का किया जाना चाहिए, जिससे भू-जल संरक्षण के साथ ही जल प्रदूषण से भी बचा जा सके।

  • पौधारोपण के बाद पौधों की सुरक्षा व बचाव करना अतिआवश्यक

पौधारोपण के बाद पौधों की सुरक्षा, बचाव करना ज्यादा आवश्यक है, प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर भारी कर लगाकर इससे अर्जित धन को भी पर्यावरण संरक्षण तथा जैव-विविधता के सुधार पर खर्च करना चाहिए। इसके साथ ही बढ़ती आबादी का नियंत्रण भी बहुत जरूरी है। इसके प्रति जागरूकता अभियान तथा सुप्रचार इत्यादि से भी आगामी समय में यह प्राकृतिक धरोहर सुरक्षित रखें, आपदाओं से बचें तथा भू-मंडलीय ताप से बचा जा सके, तभी प्रकृति का संतुलन तथा पर्यावरण सुरक्षित रहेगा।

 वृक्ष प्रकृति की अनमोल धरोहर व पर्यावरण के संरक्षक, छायाकार: मीना कौंडल

वृक्ष प्रकृति की अनमोल धरोहर व पर्यावरण के संरक्षक, छायाकार: मीना कौंडल

  •  वृक्ष प्रकृति की अनमोल धरोहर व पर्यावरण के संरक्षक

वृक्ष प्रकृति की अनमोल धरोहर व पर्यावरण के संरक्षक हैं। सृष्टि के प्रारंभिक क्षणों से पृथ्वी मानव की सहचरी रही है। इसी के सौरभमय रमणीय नैनाभिराम वातावरण में मानव ने स्वार्गिक आनंद का अनुभव किया है। यही नहीं प्रकृति के प्रति उसके मन में एक अटूट श्रद्धा और आस्था रही है। निस्संदेह प्रकृति के अनमोल उपहारों में से ये हरे भरे तथा सुखद छाया और शीतलता प्रदान करने वाले वृक्ष किसके मन में आस्था के अंकुर उत्पन्न नहीं कर देते। अतः प्रकृति ने हमें बहुत कुछ दिया है, जिनमे वृक्षों का स्थान प्रकृति के उपहारों में से सर्वोपरि है। वृक्ष मानव के चिरंतर साथी हैं, कभी वो वृक्षों की छाया में बैठकर अपनी थकान मिटाता है, तो कभी इनके मधुर फल खाकर अपनी भूख शांत करता है। तभी तो वृक्षों को मनुष्य का आश्रयदाता माना जाता है। इस धरती पर प्रकिर्तिक शोभा को बढ़ने वाले ये वृक्ष ही हैं, धरती की गोद में यदि ये हरे भरे वृक्ष ना होते तो यह सारी पृथ्वी भयानक सी प्रतीत होती। वर्षा के हेतु ये वृक्ष ही हैं, इन वृषों से ही धरती की हरियाली जीवंत है।

  • वृक्षों के बिना जीवन की कल्पना नहीं

यही कारण है कि वृक्षों के प्रति मानव मन में अनादि काल से ही अगाध श्रद्धा का बोध रहा है, इन्ही की छाया में बैठकर हमारे ऋषि-मुनियों ने बड़े-बड़े ग्रंथों की रचना की थी। यही वृक्ष उनकी साधना की तपस्थली भी थे। यही वजह है कि ऋषि मुनियों की परंपरा से ही मानव के मन में वृक्षों के प्रति श्रद्धा का अटूट भाव रहा है। आज भी देवी देवताओं की पूजा इन वृक्षों के पत्तों एवं पुष्पों से की जाती है। सभी जानते हैं कि परंपरा से देवी देवताओं के देवालय इन वृक्षों से सुशोभित होते रहे हैं। परंपरागत मान्यताओं के आधार पर इन वृक्षों में निवास करके देवताओं ने इनके महत्व को बहुत अधिक उच्च कोटि का दर्जा दिया है। यह कहना अतिश्योक्ति न होगी कि वृक्ष तो शायद हमारे बिना भी रह सकते हैं लेकिन हम बिना वृक्षों के जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते।

वृक्षों के जीवन की कल्पना भी नहीं, छायाकार: मीना कौंडल

वृक्षों के जीवन की कल्पना भी नहीं , छायाकार: मीना कौंडल

कुछ खास बातों का रखें ध्यान

  • घरों से निकले कूड़े-कचरे को किसी नियत स्थान पर ही फेंकें। अगर आप गांव में रहते हैं तो कूड़ा फेंकने के लिए एक गड्ढा खोद लें और जब वह भर जाए तो उसे मिट्टी डालकर बंद कर दें। इससे सड़न के कारण कचरे से निकलने वाली गैस में कमी आएगी।

  • घरों के पास पानी का जमाव न हो इसकी पूरी व्यवस्था करें क्योंकि पानी इकट्ठा होने से उसमें सड़न पैदा होती है और इससे वातावरण में बीमारियों के कीटाणु पनपते हैं।

  • अगर आपके पास कार, स्कूटर या मोटरसाइकिल है तो उसकी जांच समय-समय पर कराते रहें। गौर करें कि कहीं आपकी गाड़ी ज्यादा धुआं तो नहीं छोड़ रही।

  • अगर आप ट्रैफिक में फंस गए हैं तो गाड़ी के इंजन को बंद कर दें, इस तरह निकलने वाले धुएं की मात्र में कमी कर अपना योगदान कर सकते हैं।

  • आप घरों व आस-पास के क्षेत्रों में पौधारोपण में अपना सहयोग दें। हो सके तो इसके लिए अभियान चलाएं। आज ग्लोबल वार्मिग में नित हो रहे इजाफे का सबसे बड़ा कारण बड़ी संख्या में जंगलों का कटना है।

  • अगर आप लघु उद्योग या कोई फैक्टरी आदि चलाते हैं तो इस बात का ध्यान जरूर रखें कि उत्पादन के दौरान धुआं रिहायशी आबादी को नुकसान न पहुंचाए या उत्पादन के दौरान निकलने वाला धुआं रोकने के कुछ अन्य उपाय भी कर सकते हैं।

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