विशेष
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जयंती
हिमाचल प्रदेश भारत का एक खूबसूरत पहाड़ी राज्य है। इस प्रदेश की
सुन्दरता में चार चांद लगाने के लिए एक ऐसे शहर का नाम जुड़ा है जिसकी मंत्र मुगध कर देने वाली मनोहरता के चरचे देश ही नहीं विदेश में भी विख्यात है। वह है हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला जिसकी खूबसूरती सभी को अपनी ओर आकर्षित करती है। हमारे देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी इस शहर की सुन्दरता से मोहित थे। गांधी जी का भी शिमला से एक कभी न टूटने वाला रिश्ता रहा है। शिमला की ज़मीन पर गांधी जी के कदम पडऩे से इस शहर की ऐतिहासिकता को इतिहास के पन्नों में और भी बड़ी जगह मिली।
अहिंसा के मार्ग पर चल कर देश की आज़ादी की लड़ाई लडऩे वाले मोहन दास कर्मचंद गांधी दस बार शिमला आए थे। उनके शिमला आने का सिलसिला वर्ष 1921 से आरम्भ होकर वर्ष 1946 तक चलता रहा। गांधी जी का शिमला आने का उद्देश्य अंग्रेजी शासन काल के विभिन्न मंत्रियों और वायसराय से अलग-अलग मुद्दों पर चर्चा करना हुआ करता था। गांधी जी की एक खास बात यह रही थी कि वह जब भी शिमला आए तो अंग्रेजी सरकार द्वारा पेश की गई मेहमान नवाज़ी उन्होंने कभी कबूल नहीं की। वह जब भी शिमला पधारते थे तो अपने सहयोगियों और भारतीय के घर ही रूका करते थे। आइए आपको अवगत कराते हैं उन ऐतिहासिक तारीखों से जब-जब गांधी जी ने अपने कदम शिमला की सरज़मीन पर रखे और उन ऐतिहासिक जगहों से जहां गांधी जी ठहरते थे।
सर्वप्रथम गांधी जी 12 मई 1921 को शिमला आए थे और 18 मई तक शिमला में ही रहे। उनकी इस पहली शिमला यात्रा का उद्देश्य तत्कालीन वायसराय लार्ड रीडिंग से असहयोग आंदोलन के मुद्दे पर वार्तालाप करना था। इसी समय गांधी जी ने शिमला के लक्कड़ बाज़ार स्थित ईदगाह में एक जनसभा को सम्बोधित करते हुए भाषण दिया। पहले उनका यह भाषण रिज मैदान पर होना था। परन्तु उस समय रिज मैदान पर भारतीयों को जाने की अनुमति नहीं थी। अंग्रेजी हुकुमत सिर्फ हाथ गाड़ी खींचने वाले नौकरों को ही रिज पर आने देते थे। इसी वजह से गांधी जी द्वारा सम्बोधित की जाने वाली जनसभा ईदगाह में की गई। गांधी जी के शिमला आने से शिमला के असहयोग आन्दोलन में भाग लेने वाले लोगों को एक नई दिशा मिली। अपनी इस पहली शिमला यात्रा के दौरान वह अपने मित्र एवं सहयोगी ‘श्री मालवीय जी’ के साथ उनके घर पर ठहरे। श्री मालवीय जी के घर का नाम ‘शांत कुटि’ था जो शिमला के वर्तमान उपनगर ‘चक्कर’ में स्थित है। कहा जाता है कि उस समय पंजाब और हिमाचल की सरहदें कुछ इस तरह से बांटी हुई थी कि चक्कर का इलाका पंजाब में आता था। माना जाता है कि बाद में मालवीय जी ने शांत कुटि होशियारपुर के एक साधु आश्रम नामक संस्था को दान कर दी थी। फिलहाल यह कुटि जर्जर हालत में है और इसके आंगन में हिमाचल पॉवर कॉरपोरेशन एवं नेशनल हाइवे (राष्ट्रीय उच्च मार्ग) का कार्यालय है।
इसके उपरांत गांधी जी दूसरी बार वर्ष 1931 में शिमला आए। वह 13 से 17 मई तक शिमला में रूके। इस बार उनकी यात्रा का उद्देश्य ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और अंग्रेज शासकों के बीच शांति भंग करने के सिलसिले में लार्ड विलिंगटन से एक शांति बनाए अपने सहयोगी मोहन लाल के साथ उनके बंगले ‘फिरग्रोव’ में रहे। इसी साल एक और बार गांधी जी सियासी मसलों पर विचार-विमर्श करने शिमला आए तथा ‘फिरग्रोव’ में ही ठहरे। इस बार वह 15 से 22 जुलाई तक शिमला में रूके और इस दौरे का मकसद था गोलमेज़ सम्मेलन में भाग लेना।
सन् 1931 में गांधी जी एक बार फिर शिमला पधारे। वह 25 से 27 अगस्त तक रूके और श्री मोहन लाल जी के बंगले ‘फिरग्रोव’ को ही अपना आवास बनाया। इस बार वह नमक कानून के मुद्दे पर जार्ज सस्टर से मुलाकात करने शिमला आए थे। इसी दौरान गांधी- ईरविन समझौता भी हुआ। तत्पश्चात सन् 1939 में गांधी जी फिर से शिमला आए। वह 4 और 5 सितम्बर को शिमला में ही रूके। इस बार वह राजकुमारी अमृत कौर के बंगले ‘मनोर विला’ में ठहरे जो कि समरहिल में स्थित है। राजकुमारी अमृत कौर गांदी वाद पर चलने वाली गांधी जी सहयोगी थी और पंजाब के कपूरथला रियासत से ताल्लुक रखने वाले राजा हरनाम की सुपुत्री थी। आज़ादी के बाद वह देश की पहली स्वास्थ्य मंत्री बनी और देश की पहली महिला जो कैबिनेट मंत्री बनी।
‘मनोर विला’ के जिस कमरे में गांधी जी ठहरते थे उस कमरे को आज भी उनके मिरास के तौर पर सजाया हुआ है। उनके खाने के बर्तन, बैठने की कुर्सी, लिखने की मेज़ व कलम सभी वस्तुएं धरोहर के रूप में वहां रखी गई हैं। बाद में राजकुमारी अमृत कौर ने ‘मनोर विला’ को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान नई दिल्ली को दान कर दिया। अब यह मनोर विला ‘एम्स’ का विश्राम गृह है। इसके उपरान्त गांधी जी 26 सितम्बर 1939 और 26 जून 194० को भी शिमला आए थे। इन दोनों यात्राओं का मकसद भी सियासी नाम एवं स्वतंत्रता आंदोलनों के विभिन्न मुद्दों पर वायसराय के साथ चर्चा करना ही रहा था। इस दौरान भी वह ‘मनोर विला’ में ठहरे।
वर्ष 194० में पुन: गांधी जी शिमला आए। वह 27 से 3० सितम्बर तक शिमला में ही रूके। परन्तु इस बार वह राजा रघुवीर सिंह के घर पर रूके। राजा रघुवीर सिंह गांधी जी के ही सहयोगी थे और मसूरी के रहने वाले थे। उनका घर शिमला में कहां स्थित है इसका अनुमान नहीं लग पाया है।
वर्ष 1945 में गांधी जी का एक बार फिर से पहाड़ों की रानी शिमला आगमन हुआ। यह दौरा बाकि के सभी दौरों में ऐतिहासिक है क्योंकि वह इस बार एक ऐतिहासिक सम्मेलन में हिस्सा लेने आए थे। इस सम्मेलन का नाम था शिमला कांफ्रेस। इस समय भी उन्होंने राजकुमारी अमृत कौर के बंगले मनोरविला में ही रूकना पसंद किया। वह 26 जून से 16 जुलाई तक यहीं रहे। दसवीं और आखिरी बार राष्ट्रपिता का वर्ष 1946 को शिमला आना हुआ। वह 3 मई से 14 मई तक शिमला में रहे। इस बार उनका उद्देश्य कैबिनेट मिशन में भाग लेना थो। इस दौरान वह ‘चैडविक हाऊस’ में ठहरे। चैडविक हाऊस भी समरहिल में स्थित है और अब वहां रेडियो कॉलोनी बस चुकी है। यह चैडविक हाऊस उस समय का सबसे खूबसूरत घर माना जाता था। दुर्भागयवश अब यह जर्जर स्थिति में है।
गांधी जी शिमला की सुन्दरता से मोहित थे। यह उनकी खुद लिखी किताबों के कई लेखों में संग्रहित है। वह कई बार शिमला, कालका-शिमला रेल मार्ग से भी आया करते थे। समरहिल रेलवे स्टेशन पर उतरकर वह हाथ गाड़ी में अपने ठहराव स्थल की ओर चले जाते थे। उनके शिमला आने से आस-पास के अन्य पहाड़ी इलाकों में भी स्वतंत्रता आंदोलन की लहर तेज़ हुई। उनसे प्रभावित होकर यहां के लोगों में खादी को अपने पहनावे के तौर पर तजऱ् दिया। गांधी जी के शिमला आने से यहां के निवासी और ब्रिटिश कॉलेज में अध्ययन करने वाले तीन युवक प्यारे लाल, सालिग राम और मेहरचन्द इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अंग्रेजी कॉलेज त्याग कर दिया और वह गांधी जी के साथ आज़ादी की लड़ाई में उनके सहयोगी बन गए।
देश के जाने-माने इतिहासकार और हिमाचल प्रदेश विश्व विद्यालय के प्राध्यापक रहे डॉ. एस.आर. मेहरोत्रा ने गांधी जी की शिमला यात्राओं के बारे में बताया और कहा कि उनके यहां आने से शिमला की ऐतिहासिकता तो बढ़ी ही साथ ही साथ स्वतंत्रता की लड़ाई लडऩे वाले शिमला के लोगों का मार्ग दर्शन भी हुआ।