“पत्थर चौथ” में ना देखे चाँद .... गाथा है पुराणों में

“पत्थर चौथ” में ना देखे चाँद …. गाथा है पुराणों में

“पत्थर चौथ” में दिख जाए चाँद तो…. सुनें यह कथा….

हिमाचल के कई जगहों में पत्थर चौथ को मनाया जाता है

हिमाचल के कई जगहों में पत्थर चौथ को मनाया जाता है

हिमाचल के कई जगहों में पत्थर चौथ को मनाया जाता है लेकिन बिलासपुर में इसे विशेष रूप से मनाया जाता है हालांकि पत्थर चौथ आधुनिकता की चकाचौंध में लुप्त होती जा रही है। गांव और शहरों में पहले पत्थर चौथ वाली रात को लोग एक-दूसरे की टीन की छत पर पत्थर मारकर इस दिन चांद देखने के कलंक को दूसरे की गालियां सुनकर मिटाते थे। अब तो शहर में ही नहीं अपितु गांव के लोगों ने भी लैंटर वाले घर बनाए हैं। टीन की छत वाले मकान लुप्त से ही हो गये हैं। कहा जाता है कि एक बार इस दिन भगवान श्री कृष्ण को गाय दुहते समय गाय के मूत्र में चांद दिख गया था। परिणामस्वरूप उन पर समयंतक मणि की चोरी का झूठा कलंक लगा। भगवान श्रीकृष्ण ने भी इस दिन चांद देखा था, तो उन पर भी झूठा कलंक लग गया था।

पुराणों की बातों से हटकर यदि यथार्थ के धरातल पर देखा जाए तो पत्थर चौथ पर जब लोग एक-दूसरे के घर पर पत्थर मारते थे तो टीन की छत पर बहुत आवाज हुआ करती थी, फिर होती थी गालियों की बौछारें। पत्थर मारने वाले एकदम भाग खड़े होते थे। कुछ लोग ऐसे भी होते थे, जो छत पर पत्थर गिरने के बाद कहते थे राजी रहो, शाबाश तुसां जो, भगवान तुसां रा भला करे। मजे की बात यह है कि जो अधिक गालियां देते थे, बालक उनकी छत पर कुछ देर बाद दोबारा पत्थरों की बौछारें करते थे, जो चुप रहते थे, उनके यहां से लड़कों की टोली चुपचाप चली जाती थी। पत्थर चौथ वाले दिन प्रायः लोग पश्चिम की तरफ अपने घरों की खिड़कियां बंद रखते थे, ताकि चांद के दर्शन न हो पाएं। जिसे चांद दिखा नहीं फिर तो कलंक लगने का डर सताया नहीं। कहा जाता है कि इसके बाद तो लोगों की गालियां सुनकर उन्हें भी घरों की छत पर पत्थर मार कर ही इस कलंक के डर से मुक्ति मिलती है। वक्त बदलने के साथ रिवाज और परंपराएं भी बदल गईं। अब न तो पत्थर चौथ मनाई जाती है और न ही चांद दिखने पर गालियां सुनाई देती हैं। अभी यह रस्म धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है।

 “पत्थर चौथ” में की जाती है गणेश जी की पूजा अर्चना

“पत्थर चौथ” में की जाती है गणेश जी की पूजा अर्चना

गणेश चतुर्थी व्रत कथा

हर शुभ कार्य से पहले गणेश पूजन किया जाता है, गणेश जी ऋद्धि-सिद्धि, सुख-समृद्धि के देवता माने जाते हैं। आज भाद्र माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी है। इस दिन  गणेश जी की पूजा अर्चना की जाती है। आज के दिन चन्द्र दर्शन नहीं किया जाता। पौराणिक कथा है कि आज के दिन चांद देखने से झूठा कलंक लगता है। अगर ग़लती से चाँद के दर्शन हो जाएं तो यह कथा सुन लेनी चाहिए या इसका पाठ कर लेना चाहिए।

गणेश जी किसी कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अपने वाहन मूषक पर सवार होकर जा रहे थे। चंद्रमा ने उनका मज़ाक उड़ाया। चंद्रमा को अपने सौंदर्य, अपनी खूबसूरती पर बहुत अभिमान था। उनके अभिमान को भंग करने के लिए गणेश जी ने उन्हें शाप दे दिया कि जो भी तुम्हें देखेगा उसे कलंक लगेगा। परिणामस्वरूप चंद्रमा को अपनी ग़लती का अहसास हुआ तो उन्होंने गणपति से क्षमा याचना की। अंतत: गणेश जी ने प्रसन्न होकर उन्हें इस शाप से मुक्त करते हुए कहा कि इसका प्रभाव केवल भाद्रपद की शुक्ल चतुर्थी को रहेगा।

उपाय: कहा जाता है कि जो इस दिन भूलकर चंद्रमा का दर्शन कर लेता है। उसे 5 पत्थर किसी दूसरे की छत पर फेंकने होंगे।  ऐसा करने से इसका यह दोष समाप्त हो जाता है।

भादो माह की शुक्ल चतुर्थी की रात को चांद देखने पर कलंक लगने की कथा पुराणों में आती है। कहा जाता है कि एक बार, इस दिन भगवान श्री कृष्ण को गाय दुहते समय गाय के मूत्र में चांद दिख गया था। परिणामस्वरूप उन पर समयंतक मणि की चोरी का झूठा कलंक लगा। कथा कुछ इस प्रकार है –

भादो माह की शुक्ल चतुर्थी की रात को चांद देखने पर कलंक लगने की कथा पुराणों में आती है

भादो माह की शुक्ल चतुर्थी की रात को चांद देखने पर कलंक लगने की कथा पुराणों में आती है

सत्राजित यादव ने सूर्य भगवान की तपस्या कर उनसे समयंतक मणि प्राप्त की थी जिसका प्रकाश सूर्य के समान था। वह प्रतिदिन पूजा के बाद स्वर्ण प्रदान करती थी। एक दिन उस मणि को धारण कर सत्राजित श्रीकृष्ण के दरबार में गया तो लोगों ने श्री कृष्ण से कहा कि भगवान सूर्य आपके दर्शनों को पधारे हैं। श्रीकृष्ण ने कहा कि यह तो सत्राजित है। वास्तविकता पता चलने पर लोगों ने सत्राजित से वह मणि राजा उग्रसेन को सौंपने का आग्रह किया परंतु उसने इन्कार कर दिया।

एक दिन सत्राजित का छोटा भाई प्रसेन उस मणि को गले में डाल जंगल में गया। वहाँ एक शेर ने उसे मार कर मणि ले ली। आगे चल कर शेर को रीछ जामवंत ने मार डाला और मणि ले जाकर अपनी बेटी को दे दी। उधर प्रसेन के घर न लौटने पर सत्राजित ने अपनी पत्नी से शंका ज़ाहिर की कि मणि की ख़ातिर श्री कृष्ण ने मेरे भाई को मार दिया है। इस तरह धीरे-धीरे यह बात श्री कृष्ण की पटरानी तक पहुंची और पटरानी से श्री कृष्ण तक। आरोप को सुनकर भगवान श्री कृष्ण कुछ लोगों को साथ लेकर प्रसेन की तलाश में गए। जंगल में उन्हें प्रसेन का शव दिखा और शेर के पैरों के निशान नज़र आए। पैरों के निशानों का पीछा करते हुए वे आगे बढ़े तो थोड़ा आगे जाकर उन्होंने शेर को भी मृत पाया। पुन: वे रीछ के पैरों के निशानों का पीछा करते हुए एक गुफा के पास पहुँचे।

श्री कृष्ण ने अपने साथियों से गुफा के बाहर इंतज़ार करने को कहा और यह भी कहा कि 15 दिनों तक मैं न आऊँ तो आप लोग वापिस

भगवान श्री कृष्ण को गाय दुहते समय गाय के मूत्र में दिख गया था चांद

भगवान श्री कृष्ण को गाय दुहते समय गाय के मूत्र में दिख गया था चांद

लौट जाएं और मुझे मृत समझ लिया जाए। गुफा के भीतर प्रवेश कर श्री कृष्ण ने वहां जामवंत की बेटी को मणि के साथ खेलते देखा। वे उससे मणि लेने लगे तो बेटी ने जामवंत को आवाज़ दी। उस मणि के लिए दोनों में 27 दिनों तक रात-दिन युद्ध हुआ। अंतत: हार मानकर जामवंत ने अपनी बेटी जामावंती श्री कृष्ण को ब्याह दी और मणि उपहार में श्री कृष्ण को सौंप दी। इस प्रकार वापिस आकर श्री कृष्ण ने वह मणि सत्राजित को वापिस लौटा कर खुद पर लगे झूठे कलंक से मुक्ति पाई और बताया कि भाद्र चतुर्थी (चौथ का चांद) का चांद देखने के कारण मुझ पर यह झूठा कलंक लगा था। यह भी कहा कि अगर कोई ग़लती से भादों की चौथ का चांद देख ले तो उसे मणि की इस कथा का श्रवण या पाठ कर लेना चाहिए तो कलंक दूर हो जाएगा और भगवान गणेश प्रसन्न हो जाएंगे। सत्राजित ने अपनी बेटी सत्भामा का विवाह कर मणि श्री कृष्ण को भेंट कर दी।

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