राखी में अटूट प्रेम, स्नेह, आदर्श भाव, मधुर भाव
प्राचीन काल से चल आ रहे त्यौहारों में से एक बहुत ही आर्दश प्रेम प्रतीकण् सद्भावनों से भरा हुआ त्यौहार रक्षाबन्धन माना गया है। कच्चे धागा का बन्धन समाज के लोगों में एक आदर्श प्रस्तुत करता है। रक्षाबन्धन का त्यौहार प्राचीन काल से पूरे भारतवर्ष में तथा विदेशों में जो भारतीय निवास करते है वे भी इसे धूमधाम से मनाते हैं।
राखी में अटूट प्रेम, स्नेह, आदर्श भाव, मधुर भाव
मुगलकालीन राज्य में भी राजा महाराजा की पत्नियाँ मुसलमान बादशाहों को राखी बांधती थी, जिससे एक दूसरे वर्ग में प्रेमभाव स्नेह भाव बना रहे, एक राज्य का दूसरे राज्य से सदैव बना रहें। आज भी बहुत से मुसलमान भाई हिन्दू बहनों से राखी वाले दिन राखी बंधवाने उनके घर जाते हैं। स्नेह, प्रेमभावण् बहन का आर्शीवाद, शुभकामनायें प्राप्त करते हैं। कैई राजपूत राजाओं की पत्नियों ने संकट के समय मुसलमानों राजाओं के हाथ में राखी बांधी है तथा उन्होंने प्रेमभाव, स्नेह का सुन्दर उपदेश देकर अपनी ओर खीच लिया है। कच्चे धागे की राखी दो दिलों को मिलाने वाली भूमिका निभाती है। इस राखी में अटूट प्रेम, स्नेह, आदर्श भाव, मधुर भाव भरे होते हैं।
रक्षा बंधन भाई-बहन के प्यार का त्योहार है, एक मामूली सा धागा जब भाई की कलाई पर बंधता है, तो भाई भी अपनी बहन की रक्षा के लिए अपनी जान न्योछावर करने को तैयार हो जाता है। क्या आप जानते हैं कि रक्षाबंधन का इतिहास काफी पुराना है, जो सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा हुआ है। असल में रक्षाबंधन की परंपरा उन बहनों ने डाली थी जो सगी नहीं थीं, भले ही उन बहनों ने अपने संरक्षण के लिए ही इस पर्व की शुरुआत क्यों न की हो, लेकिन उसकी बदौलत आज भी इस त्योहार की मान्यता बरकरार है।
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6 हजार साल पुराना है रक्षा बंधन का इतिहास!
रक्षाबंधन की कथा : इतिहास के पन्नों को देखें तो इस त्योहार की शुरुआत 6 हजार साल पहले बताया जाता है। इसके कई साक्ष्य भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। इतिहास के पन्नों को देखें तो इस त्योहार की शुरुआत 6 हजार साल पहले माना जाता है। इसके कई साक्ष्य भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। रक्षाबंधन की शुरुआत का सबसे पहला साक्ष्य रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं का है। मध्यकालीन युग में राजपूत और मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था, तब चित्तौड़ के राजा की विधवा रानी कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख हुमायूं को राखी भेजी थी। तब हुमायू ने उनकी रक्षा कर उन्हें बहन का दर्जा दिया था।
इतिहास का एक दूसरा उदाहरण कृष्ण और द्रोपदी को माना जाता है। कृष्ण भगवान ने राजा शिशुपाल को मारा था। युद्ध के दौरान कृष्ण
आर्दश प्रेम प्रतीकण् सद्भावनों से भरा हुआ त्यौहार रक्षाबन्धन
के बाएं हाथ की उंगली से खून बह रहा था, इसे देखकर द्रोपदी बेहद दुखी हुईं और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की उंगली में बांध दी, जिससे उनका खून बहना बंद हो गया। इस दिन सावन पूर्णिमा की तिथि थी।
कहा जाता है तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था। सालों के बाद जब पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था, तब कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाई थी।
भविष्य पुराण में लिखा है, उसके अनुसार सबसे पहले इन्द्र की पत्नी ने देवराज इन्द्र को देवासुर संग्राम में असुरों पर विजय पाने के लिए मंत्र से सिद्ध करके रक्षा सूत्र बंधा था। इससे सूत्र की शक्ति से देवराज युद्ध में विजयी हुए।
रक्षा बंधन पर्व मनाने की विधि : रक्षा बंधन के दिन सुबह भाई-बहन स्नान करके भगवान की पूजा करते हैं। इसके बाद रोली, अक्षत, कुंमकुंम एवं दीप जलकर थाल सजाते हैं। इस थाल में रंग-बिरंगी राखियों को रखकर उसकी पूजा करते हैं फिर बहनें भाइयों के माथे पर कुंमकुंम, रोली एवं अक्षत से तिलक करती हैं।
इसके बाद भाई की दाईं कलाई पर रेशम की डोरी से बनी राखी बां धती हैं और मिठाई से भाई का मुंह मीठा कराती हैं। राखी बंधवाने के बाद भाई बहन को रक्षा का आशीर्वाद एवं उपहार व धन देता है। बहनें राखी बांधते समय भाई की लम्बी उम्र एवं सुख तथा उन्नति की कामना करती है।
इस दिन बहनों के हाथ से राखी बंधवाने से भूत-प्रेत एवं अन्य बाधाओं से भाई की रक्षा होती है। जिन लोगों की बहनें नहीं हैं वह आज के दिन किसी को मुंहबोली बहन बनाकर राखी बंधवाएं तो शुभ फल मिलता है। इन दिनों चांदी एवं सोनी की राखी का प्रचलन भी काफी बढ़ गया है। चांदी एवं सोना शुद्ध धातु माना जाता है अतः इनकी राखी बांधी जा सकती है लेकिन, इनमें रेशम का धागा लपेट लेना चाहिए।
येन बद्धो बलिः राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥
रक्षाबंधन का मंत्र : येन बद्धो बलिः राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥
रक्षाबंधन का धार्मिक महत्व : भाई बहनों के अलावा पुरोहित भी अपने यजमान को राखी बांधते हैं और यजमान अपने पुरोहित को। इस प्रकार राखी बंधकर दोनों एक दूसरे के कल्याण एवं उन्नति की कामना करते हैं। प्रकृति भी जीवन के रक्षक हैं इसलिए रक्षाबंधन के दिन कई स्थानों पर वृक्षों को भी राखी बांधा जाता है। ईश्वर संसार के रचयिता एवं पालन करने वाले हैं अतः इन्हें रक्षा सूत्र अवश्य बांधना चाहिए।
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। इसे आमतौर पर भाई-बहनों का पर्व मानते हैं लेकिन, अलग-अलग स्थानों एवं लोक परम्परा के अनुसार अलग-अलग रूप में रक्षाबंधन का पर्व मानते हैं। वैसे इस पर्व का
लोक परम्परा के अनुसार अलग-अलग रूप में मानते हैं रक्षाबंधन का पर्व
संबंध रक्षा से है। जो भी आपकी रक्षा करने वाला है उसके प्रति आभार दर्शाने के लिए आप उसे रक्षासूत्र बांध सकते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने रक्षा सूत्र के विषय में युधिष्ठिर से कहा था कि रक्षाबंधन का त्योहार अपनी सेना के साथ मनाओ इससे पाण्डवों एवं उनकी सेना की रक्षा होगी। श्रीकृष्ण ने यह भी कहा था कि रक्षा सूत्र में अद्भुत शक्ति होती है। रक्षाबंधन से सम्बन्धित इस प्रकार की अनेकों कथाएं हैं।
आधुनिक काल में भाई-बहन के प्यार स्नेह, रिश्तों में खटास सी आ गई है, जिससे पहले जैसा प्यार, स्नेह कम दिखाई देने लगा है। बहुत से भाई अंहकार धनवान होते के कारण गरीब बहने को महत्वपूर्ण रक्षाबंधन के अवसर पर बुलाना उचित नहीं समझते है तथा अपने अहंकार में बहनों से घृणा करते हैं ऐसी भावना भाईयों के अलावा आधुनिक काल में नई फैशन तथा शिक्षा के अभाव में बहनें भी भाई के राखी बांधने से कोना काटती है। सामाजिक हित में ऐसा होना उचित नहीं हैं।