आइये जानें क्यों करते हैं मंदिर की ...."परिक्रमा"

क्यों की जाती है “परिक्रमा”

  • भगवान की परिक्रमा करने से होती है अक्षय पुण्य की प्राप्ति

  • धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि भगवान की परिक्रमा करने से होती है अक्षय पुण्य की प्राप्ति

मंदिर में पूजा व आराधना के बाद हम मंदिर या प्रतिमा के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। सामान्यत: देवी-देवताओं की

धर्म ग्रंथो के अनुसार देवी-देवताओ की पूजा के बाद मंदिर की परिक्रमा अनिवार्य

धर्म ग्रंथो के अनुसार देवी-देवताओ की पूजा के बाद मंदिर की परिक्रमा अनिवार्य

परिक्रमा सभी करते हैं, लेकिन अधिकांश लोग यह नहीं जानते कि परिक्रमा क्यों की जाती है। इस संबंध में धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि भगवान की परिक्रमा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। ऐसा करने से हमारे पाप खत्म होते हैं। देवी-देवताओं की कृपा से मुक्ति मिलती है और घर-परिवार में प्रेम बना रहता है। आरती, पूजन और मंत्र जप के असर से मंदिर क्षेत्र में हमेशा सकारात्मक ऊर्जा पैदा होती रहती है। जब परिक्रमा करते हैं तो मंदिर की सकारात्मक ऊर्जा हमें अधिक मात्रा में मिलती है और इसी वजह से श्रद्धालुओं को शांति और सुख का अनुभव होता है। मंदिर से प्राप्त होने वाली सकारात्मक ऊर्जा व दैवीय शक्ति हमें चिंताओं से मुक्त करती है। हमारा मन भगवान की भक्ति में रम जाता है।

  • भावनाओं को करते हैं भगवान को समर्पित

हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि देवी-देवता की आराधना करने से जितना पुण्य प्राप्त होता है उतना ही परिक्रमा से पुण्य प्राप्त हो जाता है। परिक्रमा का अर्थ है अपनी मानसिक और शारीरिक भावना को अपने देवता या जिसकी भी आप परिक्रमा कर रहे हैं उसके प्रति अपने आपको समर्पित कर देना।

  • परिक्रमा के माध्यम से हम ग्रहण कर पाते हैं दैवीय शक्ति

परिक्रमा के माध्यम से हम दैवीय शक्ति ग्रहण कर पाते हैं, इसी वजह से परिक्रमा की परंपरा बनाई गई है। जिससे भक्तों की सोच भी सकारात्मक बनती है और बुरे विचारों से मुक्ति मिलती है। प्रतिमा की परिक्रमा करने से हमारे मन को भटकाने वाले विचार खत्म हो जाते हैं और शरीर ऊर्जावान होता है। कार्यों में सफलता मिलती है।

  • धर्म ग्रंथो के अनुसार देवी-देवताओं की पूजा के बाद मंदिर की परिक्रमा अनिवार्य

  • वैज्ञानिक मान्यता भी

परम्परागत रूप से हम मंदिर की पूजा आराधना के बाद देवी-देवताओं या मंदिर की परिक्रमा करते है तथा यह परम्परा कई वर्षो से ऐसे ही चली आ रही है फिर भी अधिकांश लोग बिना इसकी महत्ता जाने मंदिर की परिक्रमा करते हैं। धर्म ग्रंथो के अनुसार देवी-देवताओं की पूजा के बाद मंदिर की परिक्रमा अनिवार्य है, क्योंकि इसके पीछे न केवल धर्मिक मान्यता बल्कि वैज्ञानिक मान्यता भी है। देवी-देवताओं के पूजा के बाद मंदिर की परिक्रमा एक तय संख्या में ही की जानी चाहिए, बिना विधि-विधान के की गई पूजा एवं परिक्रमा के कारण फल प्राप्ति में कमी आ सकती है।

पूजा अराधना के साथ ही मंदिर की परिक्रमा करने के पश्चात पूजा पूर्ण मानी जाती है तथा इसके प्रभाव से अक्षय पूण्य की प्राप्ति होती है। हर बुराई और पापों से मुक्ति मिलती है व घर में सुख सम्पदा आती है। देवी-देवताओं के पूजा पाठ एवं परिक्रमा से संबंधित एक कथा गणेश जी के संबंध में भी है जब उनसे और उनके भाई कार्तिकेय से संसार के चक़्कर लगाने को कहा जाता है तो गणेश भगवान अपने माता-पिता शिव और पार्वती के ही चक्कर लगाते हैं तथा संसार की परिक्रमा पूरी हो जाने की बात कहते हैं।

  • परिक्रमा करने से अधिक मात्रा में मिलती है मंदिर में उपस्थित सकारात्मक ऊर्जा

परिक्रमा करने से मंदिर में उपस्थित सकरात्मक ऊर्जा मिलती है अधिक मात्रा में

परिक्रमा करने से मंदिर में उपस्थित सकारात्मक ऊर्जा मिलती है अधिक मात्रा में

आरती पूजा मन्त्र तथा जप के प्रभाव से मंदिर में एक सकारात्मक ऊर्जा उतपन्न होती है। जब हम मंदिर की परिक्रमा करते हैं तो हमें मंदिर में उपस्थित सकारात्मक ऊर्जा अधिक मात्रा में मिलती है इसी कारण मंदिर में पूजा व आराधना के बाद श्रृद्धालु अत्यधिक शांत एवं सुख का अनुभव करते हैं। यह सकारात्मक ऊर्जा हमें देवीय शक्तियों से जोड़ते है तथा हमारे आस-पास के वातावरण को भी सकारात्मक बनाते हैं। परिक्रमा के माध्यम से हम देवीय शक्तियों को ग्रहण करते हैं। हमारे मस्तिक से हर प्रकार के नकारात्मक विचार दूर होते हैं। इसके प्रभाव से हमारा शरीर ऊर्जावान होता है अतः इसी वजह से परिक्रमा की मान्यता बनाई गई है।

  • मंदिर परिक्रमा सही दिशा में और सही तरीके से ही की जानी चाहिए

मंदिर परिक्रमा सही दिशा में और सही तरीके से ही की जानी चाहिए। ध्यान रखें कि जब आप मंदिर की परिक्रमा शुरू करें तो हर समय भगवान की प्रतिमा आपके दाईं ओर रहनी चाहिए। इसका सीधा सा तरीका है कि हमेशा अपने बाएं हाथ की ओर से मंदिर की परिक्रमा शुरू करें। मंदिर की परिक्रमा हमेशा घड़ी की सूई की दिशा में होनी चाहिए, मतलब जैसे घड़ी की सूई घूमती है, उसी तरह साधक को घूमना चाहिए। साथ ही जिस देव की परिक्रमा कर रहे हैं उसके मंत्र का जाप करते रहें.भगवान गणेश की पूजा करते समय मंदिर की एक परिक्रमा तथा शिवजी की पूजा के समय मंदिर की 2 परिक्रमा करनी चाहिए। इसी प्रकार यदि पूजा भगवान विष्णु की हो तो मंदिर की 3 परिक्रमा करनी चाहिए और दुर्गा माता की पूजा के समय मंदिर की 6 परिक्रमा करनी चाहिए।

भारतीय शास्त्रों और धार्मिक ग्रथों में देवी-देवताओं की पूजा पाठ करने के साथ-साथ परिक्रमा का भी प्रावधान है। परिक्रमा का मतलब है पूरे मन और शरीर से उस देवी या देवता को प्रसन्न करना। क्योंकि परिक्रमा से भगवान जल्दी मन्नतें पूरी करते हैं। परिक्रमा लगाने से इंसान की सेहत पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कई तरह के गंभीर रोग तक ठीक हो जाते हैं। परिक्रमा कई तरह से होती है। जैसे विवाह के समय अग्नि की सात परिक्रमा, मंदिर या किसी देवी देवता की तीन परिक्रमा और शिक्षक या गुरू की एक परिक्रमा।

  • रूके कार्य होते हैं पूरे

इसी प्रकार पीपल वृक्ष की 1, 3, 101, 108 परिक्रमा का विधान है। परिक्रमा लगा कर भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी, पितृदेवों को प्रसन्न किया जाता है। वृंदावन की परिक्रमा करने से भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति प्राप्त होती है और रूके हुए कार्य जल्दी पूरे होते हैं।

शास्त्रों में लिखा है जिस स्थान पर मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई हो, उसके मध्य बिंदु से लेकर कुछ दूरी तक दिव्य प्रभा अथवा प्रभाव रहता है,यह निकट होने पर अधिक गहरा और दूर दूर होने पर घटता जाता है, इसलिए प्रतिमा के निकट परिक्रमा करने से दैवीय शक्ति के ज्योतिर्मडल से निकलने वाले तेज की सहज ही प्राप्ती हो जाती है.हम भगवान की परिक्रमा करते हैं? इससे लाभ क्या होता है और भगवान की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए?दरअसल भगवान की परिक्रमा का धार्मिक महत्व तो है ही, विद्वानों का मत है भगवान की परिक्रमा से अक्षय पुण्य मिलता है, सुरक्षा प्राप्त होती है और पापों का नाश होता है। परिक्रमा करने का व्यवहारिक और वैज्ञानिक पक्ष वास्तु और वातावरण में फैली सकारात्मक ऊर्जा से जुड़ा है।

मंदिर में भगवान की प्रतिमा के चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा का घेरा होता है, यह मंत्रों के उच्चारण, शंख, घंटाल आदि की ध्वनियों से निर्मित होता है। हम भगवान की प्रतिमा की परिक्रमा इसलिए करते हैं कि हम भी थोड़ी देर के लिए इस सकारात्मक ऊर्जा के बीच रहें और यह हम पर अपना असर डाले। इसका एक महत्व यह भी है कि भगवान में ही सारी सृष्टि समाई है, उनसे ही सब उत्पन्न हुए हैं, हम उनकी परिक्रमा लगाकर यह मान सकते हैं कि हमने सारी सृष्टि की परिक्रमा कर ली है।

  • परिक्रमा लगाने का क्या विधान है शास्त्रों में।

परिक्रमा लगाने के बारे में जो जानकारी हमें मिलती है वह नारद पुराण में है। इस पुराण के अनुसार-

 ”  मां दुर्गा की एक परिक्रमा लगानी चाहिए।

   विष्णु भगवान की चार परिक्रमा।

   भगवान सदा शिव की आधी परिक्रमा।

   अग्नी की सात परिक्रमा।

   श्री गणेशा भगवान की तीन परिक्रमा।

   सूर्य देव की सात परिक्रमा आदि।”

वट सावित्री में पति की दीर्घायु और बेहतर स्वास्थ के लिए महिलाएं व्रत रखती हैं। इस दिन वट के पेड़ की तीन से एक सौ

धर्म ग्रंथो के अनुसार देवी-देवताओ की पूजा के बाद मंदिर की परिक्रमा अनिवार्य

धर्म ग्रंथो के अनुसार देवी-देवताओं की पूजा के बाद मंदिर की परिक्रमा अनिवार्य

आठ परिक्रमा लगती है। जो महिलाओं की खुशी और स्वास्थ के लिए भी फायदेमंद होती है।

माता लक्ष्मी, भगवान विष्णु और पित्रों को खुश करने और इनकी छाया प्राप्त करने के लिए आपको इनकी कम से कम तीन परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा से कृष्ण भक्ति प्राप्त होती है जिससे आपके कष्ट भगवान स्वंय हर लेते हैं। गायत्री मंत्र का जप करने वाला कोई भी इंसान, श्राद्ध लेने वाला पंड़ित और मार्जन के जानकर इंसान को खाना खिलाकर इनकी चार परिक्रमा करनी चाहिए। इसी तरह से पीपल के पेड़ की एक, तीन, एक सौ आठ और एक सौ एक परिक्रमा करने का प्रावधान है।

भारतीय शास्त्रों में पेड़ों , पर्वतों और नदियों की परिक्रमा के साथ-साथ पूजा पूरी होने के बाद भी परिक्रमा लगाने का विधान दिया हुआ है। जिससे इंसान को कई तरह से फायदा मिलता है।

  • परिक्रमा कैसे करें ?

  • परिक्रमा से पहले देवता से प्रार्थना करें।

  • हाथ जोड़कर, भाव पूर्ण नाम जप करते हुए मध्यम गति से परिक्रमा लगाएं। ऐसा करते समय गर्भगृह को स्पर्श न करें।

  • परिक्रमा लगाते हुए, देवता की पीठ की ओर पहुंचने पर रुकें एवं देवता को नमस्कार करें।

  • प्रत्येक परिक्रमा के उपरांत रुककर देवता को नमस्कार करें।

  • क्या करें परिक्रमा करते वक्त

परिक्रमा करने का भी विधान है। देवी-देवता और मंदिर की तीन परिक्रमा करने का बहुमूल्य नियम है। पहले के स्कूल यानि गुरुकुल में गुरु की एक परिक्रमा का विधान था। विवाह आदि कार्यों के समय अग्नि की सात परिक्रमा करते हैं। किसी भी धार्मिक पूजा-पाठ में तीन परिक्रमा का विधान है और श्राद्ध आदि कर्म में जो ब्राह्मण तर्पण और गायत्री जप करने वाले हों, उनके भोजन करने के बाद उनकी चार परिक्रमा करने का विधान है।

  • जिस देवी-देवता की परिक्रमा की जा रही है, उनके मंत्रों का जप करना चाहिए। भगवान की परिक्रमा करते समय मन में बुराई, क्रोध, तनाव जैसे भाव नहीं होना चाहिए।

  • परिक्रमा नंगे पैर ही करनी चाहिए।

  • परिक्रमा करते समय बातें नहीं करनी चाहिए। शांत मन से परिक्रमा करें।

  • परिक्रमा करते समय तुलसी, रुद्राक्ष आदि की माला पहनेंगे तो बहुत शुभ रहता है।

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