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केशव सेन का मंडी चित्रकला को विकसित करने में विशेष योगदान
मंडी कलम की शुरूआत सोलहवीं शताब्दी में हुई है। जब मुगल काल का दौर परवान पर था। मंडी रियासत के राजा केशव सेन जिसका शासनकाल 1592—1637 ई. रहा है। केशव सेन मुगल सम्राट अकबर का समकालीन था जो एक कलाप्रेमी राजा रहा है। केशव सेन ने अपने शासनकाल में एक भी व्यक्ति पर न तो मुकदमा चलाया और न ही किसी को मृत्युदंड दिया। केशव सेन प्रकृति और कला प्रेमी राजा था। मंडी चित्रकला को विकसित करने में उसका विशेष योगदान रहा है। यह अलग बात है कि कांगड़ा कलम की तरह मंडी कलम को वह ख्याति नहीं मिल पाई। मगर इसके बावजूद मंडी कलम के वजूद को बनाए रखने के प्रयास निरंतर होते रहे।
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मण्डी चित्रशैली में लोककला और राजसी वैभव का समावेश
मण्डी चित्रशैली में लोककला और राजसी वैभव का समावेश रहा है। साधारण जनमानस के हाथों सवंरी और कुशल चितेरों के संरक्षण में बढ़ी मंडी कलम निचले स्तर की आम गृहणी से लेकर राजदरबार में संरक्षण प्राप्त चित्रकार की तुलिका से उकेरी गई। गृहणियों द्वारा घर के आंगन में लिखणू और डहर के रूप में तथा पंडितों और विद्वानों द्वारा जन्म पत्रियों, धार्मिक और तांत्रिक पुस्तकों , पांडुलिपियों से लेकर आदमकद तस्वीरों, भिती चित्रों और कपड़ों पर मंडी कलम उकेरी गई है। यहां तक कि काम शास्त्र के रंगीन चित्रों को बारीकी से उकेरा गया है। मंडी कलम की एक छोटी और दुर्लभ पुस्तक सर्वेक्षण के दौरान पुरानी मंडी में प्राप्त हुई है। जिसमें सपनों के संसार का जिस बारीकी से चित्रण किया गया है वो अपने आपमें दुर्लभ है। जिसमें गणेश, सूर्य, नव ग्रह, पांडवों, दुर्गा, काली के धार्मिक चित्रों के अलावा सैनिक, यमराज, नारी, जलकुभ आदि का चित्रण किया गया है। सपने में इनके दिखाई देने पर शुभ और अशुभ होने बारे विस्तार से वर्णन किया गया है। इन चित्रों में लगे रंगों की चटख आज भी वैसी ही जैसी कई सौ साल पहले थी। इनमें वनस्पति, धातू, मिट्टी और पत्थर के रंगों का अनूठा समिश्रण किया गया है।
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मण्डी कलम पर मुगल चित्रशैली का प्रभाव भी देखने को मिलता है
मण्डी कलम का विकास 17 वीं शताब्दी में अधिक हुआ है। इस दौरान कुछ चितेरे मुगल शासक औरंगजेब के भय से पहाड़ों की ओर रूख कर चुके थे। मण्डी रियासत में भी ऐसे कुछ चितेरों को पनाह मिली। जिसके कारण मंडी कलम पर मुगल चित्रशैली का प्रभाव भी देखने को मिलता है। मण्डी कलम में तत्कालीन वेशभूषा, जनजीवन और नायिकाओं के तीखे नैन —नक्श बारीकी से उकेरे गए हैं। मंडी रियासत के सबसे पुराने राजमहल दमदमा महल की दीवारों पर आज भी मंडी कलम के चित्र उकेरे हुए हैं। हालांकि उनका रंग फीका पड़ गया है।

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मण्डी कलम में जिन चित्रकारों का नाम आज भी जनमानस की जुबान पर है। उनमें चित्रकार मुहम्मदी, लोक कलाकार बातू द्वारा बनाई गई बनमाली, अंबके री तस्वीर और नंदा री तस्वीर उल्लेखनीय है। इसके अलावा गाहिया नरोतम का नाम मंडी कलम के चितेरों में प्रमुख है। उनके द्वारा राम चंद्रिका में बनाए गए दुर्लभ चित्रों के अलावा मंडी और रामपुर बुशहर राज घरानों के चित्र भी प्रमुख हैं। उनके द्वारा रामचंद्रिका में बनाए गए दुर्लभ चित्रों के अलावा मंडी और रामपुर बुशहर राजघरानों के चित्र भी प्रमुख हैं। इसके अलावा पुराने भवनों, हवेलियों में भी भित्ती चित्रों में मंडी कलम के कई अनूठे चित्र मौजूद हैं। जिनमें मियां की हवेली की दीवार पर उकेरा गया मंडी शिवरात्रि का कई साल पुराना चित्र आज भी मौजूद है। जिसमें राजदेवता माधोराय की जलेब में हाथी पर सवार राजा और सेरी बाजार में हो रहे खेल तमाशे, देवी देवताओं के रथों के आगे नतमस्तक होते श्रद्धालु और रनीवास के चौबारे से झांकती राज परिवार की महिलाएं इस चित्र में उकेरी गई है।
प्रदेश सरकार द्वारा समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के सभी स्वरूपों के संरक्षण एवं प्रदर्शन को सुनिश्चित बनाने तथा कलाकारों, शिल्पकारों, कवियों, साहित्यकारों और शोधार्थियों को प्रोत्साहन देने के लिये अनेक योजनाएं आरम्भ की गयी हैं। सरकार बहुमूल्य पुरातन पाण्डुलिपियों, छायाचित्रों, पेंटिग्ज, ऐतिहासिक दस्तावेजों तथा अन्य पुरातात्विक एवं अभिलेखीय वृति की महत्वपूर्ण वस्तुओं के संग्रहण एवं संरक्षण पर विशेष बल दे रही है।
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