अनमोल प्राकृतिक सम्पदा के लिये विख्यात “भंगाल”

धरती पर प्रकृति का स्वर्ग “हिमाचल का भंगाल”

छोटा भंगाल

भंगाल

भंगाल

इस घाटी के लिए सफर घटासनी से शुरू होता है। पठानकोट-मंडी राजमार्ग पर जोगिन्दर नगर से महज 12 किलोमीटर दूर एक सड़क बाएं मुडती है। इस सड़क पर वाहन ले जाते ही एक बैरियर रास्ता रोकता है। यह जगह घटासनी है और बैरियर रास्ता वन विभाग का घटासनी की चढ़ाई नापते ही ऐसा लगने लगता है जैसे हम आकाश पथ की ओर बढ़े जा रहे हैं। सर्पीली, बलखाती सड़क निरंतर ऊंचाई पर लेती जाती है। घाटी के एक तरफ खेत, दूसरी तरफ गहरा ढलान और बीच में सरपट भागता वाहन रोमांच की दुनिया के नए-नए वर्क खोलता है। कुछ मोड़ पार करते ही बाईं तरफ के खेतों का स्थान चीड़ के पेड़ गायब होने लगते हैं। सड़क के दोनों तरफ देवदार के पेड़ इतने घने होते जाते हैं कि सूरज की रोशनी नीचे सड़क तक आने के लिए जद्दोजहद करती मालूम पड़ती है। कुछ मोड़ नाप कर एक ही झटके से हम देवदार के घने जाल से बाहर आ जाते हैं। यह स्थल है-झटीगरी। घटासनी से इसकी दूरी महज पांच किलोमीटर है। झटीगरी में एक प्राचीन राजमहल भी है जो कि मंडी के ही किसी राजा ने बनवाया था| लकड़ी से निर्मित इस राजमहल की हालत तो खस्ता है लेकिन इस महल में घुसते ही रजवाड़ों के दिनों की कल्पनाएं जीवंत होने लगती है। झटीगरी में सड़क के साथ ही एक खुला मैदान है। जिसके छोर पर देवदार के पेड़ इसकी सुंदरता में चार चाँद लगाते मालूम पड़ते हैं। झटीगरी में एक छोटा सा बाज़ार है जहां कुछ खरीदारी की जा सकती है।

छोटा भंगाल

छोटा भंगाल

  • घाटी में आलू, मटर और राजमा की खूब पैदावार

झटीगरी से आगे निकलते ही भेड़-बकरियों का लंबा काफिला आता दिखाई देता है। गददी (पुआल) की सीटियां समूची घाटी में सुनाई पड़ती हैं। गर्मियों में ढलानों पर बुरांस के पेड़  दहकते मालूम पड़ते है| ठण्ड की वजह से यहां का फसल चक्र मैदानी इलाकों से मेल नहीं खाता है। थोड़ा आगे टिक्कन नामक स्थल  है। यहाँ आठ-दास दुकाने हैं  और पन्द्रह-बीस घर है इस घाटी में आलू, मटर और राजमा की खूब फसल होती है यहाँ की अर्थव्यस्था इन्ही फसलों पर टिकी है। राजमा यहां एक नहीं पांच रंगों में मिलता है और स्वाद में कश्मीर के राजमा को भी मात करता है। टिक्कन से बाहर आते ही वन्य प्राणी विभाग के एक बोर्ड पर हिमालय के राज्या पक्षी मोनाल का चित्र नीचे वन्य प्राणियों को संरक्षण देने की हिदायते लिखी है। इस घाटी के जंगलों में वन्य जीवों की बहुतायत है और कई पर्वतीय पंछी यहां के वातावरण में रस घोलते मालूम पड़ते हैं। टिक्कन से बरोट 12 किलोमीटर है और रास्ते में कई छोटे-छोटे गांव आते हैं। टिक्कन से कच्ची सड़क शुरू हो जाती है। रास्ते में कई जगह जलप्रपातों के फुवारे सड़क तक आ रहे हैं।

हरी-भरी वादियां, अदभुत सुनहरे मनमोहक दृश्य यहां आने वालों को बार-बार आने के लिए मजबूर करते हैं तो वहीं छोटे-छोटे गांव के बड़े-बड़े दिल वाले लोग  सैलानियों के लिए हर प्रकार के सहयोग के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। ये भी वजह है कि हिमाचल की खूबसूरती हरी वादियों के साथ-साथ यहाँ के भोले-भाले लोगों की अच्छाई भी सैलानियों को खूब भाती है।

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