कुदरत की रंगीन फिजाओं में बसा “नारकंडा”
हिमाचल की खूबसूरत वादियों को निहारने के लिए पर्यटक न केवल देशों से अपितु विदेशों से भी आते हैं। हरी-भरी वादियों से लबालब हिमाचल यहां बसने वालों के दिलों में तो बसता ही है। लेकिन बाहर से आने वाले पर्यटकों के दिल और आंखों में ऐसे बसता है कि जो भी एक बार यहां आता है वो बार-बार आना चाहता है। हिमाचल का एक ऐसा ही सुंदर पर्यटन स्थल है नारकंडा। जो बर्फ से ढके शक्तिशाली हिमालय पर्वत श्रृंखला और इसकी तलहटी पर हरे जंगलों का एक शानदार दृश्य प्रदान करता है। हिंदुस्तान-तिब्बत रोड पर 2708 मीटर की ऊंचाई पर स्थित, यह भारत के लोकप्रिय हिल स्टेशनों में से एक है। नारकंडा शहर के सभी पर्यटन स्थलों में हाटु पीक सबसे लोकप्रिय है क्योंकि यह यहाँ का उच्चतम बिंदु है। यहां की गगनचुम्बी पर्वत चोटियों की सुन्दरता एवं शीतल, शान्त वातावरण पर्यटकों को हमेशा मन्त्रमुग्ध किये रहता है।
देवदार और चीड़ के लम्बे वृक्ष, पूर्णिमा के चांद की रोशनी में धवल कैलाश श्रृखंलाएं, चारों ओर फैली सफेद बर्फ और गहरी घाटियां प्राकृतिक सौन्दर्य की अदभुत सम्पदा से लबालब नारकंडा बहुत ही खूबसूरत है। नारकंडा हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से कुछ दूरी पर स्थित एक छोटी सी जगह है। शिमला से नारकंडा का सफर करीब ढाई-तीन घण्टे का है। बर्फ से ढकी हिमालय की कैलाश श्रृखंलाएं, मनमुग्धा चांदनी और घाटी में मोतियों जैसे चमकते घर लोगों को अपनी और आकर्षित करते हैं।
नारकंडा बस अड्डे से लगभग आठ किलोमीटर दूर हाटू मन्दिर
नारकंडा बस अड्डे से लगभग केवल 8 किमी. की दूरी पर स्थित है हाटू मन्दिर। चोटी पर होने के कारण इसे हाटू पीक कहते हैं। हाटु माता मंदिर, स्थानीय लोगों द्वारा पूजा का एक पवित्र स्थान के रूप में माना जाता है, लंबी पैदल यात्रा शिखर तक पहुंचने के लिए एकमात्र विकल्प है। मध्यम गर्मी के साथ, अप्रैल से जून के दौरान की जलवायु, इस जगह की यात्रा के लिए अच्छा समय है। मंदिर के अलावा वहां एक पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस है, जो टूरिस्टों को आराम करने के लिए एक जगह उपलब्ध कराता है और चोटी पर एक तालाब है। धुमरी और जौबाग घास के मैदान के शानदार दृश्यों को भी इस चोटी से देखा जा सकता है। नारकंडा से सीधा रास्ता तिब्बत बॉर्डर को जाता है।
प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर पर्यटन स्थल मुख्य तौर पर स्कीइंग के लिये प्रसिद्ध
स्कीइंग और ट्रैकिंग के लिए प्रसिद्ध, नारकंडा साहसिक उत्साही के लिये हिमालय पर्वत श्रृंखला की बर्फीली ढलानों पर शीतकालीन खेलों में भाग लेने का अवसर प्रदान करता है। कुदरत की रंगीन फिजाओं में बसा यह छोटा सा उपनगर आकाश को चूमती तथा पाताल तक गहरी पहाड़ियों के बीच घिरा हुआ है। ऊंचे रई, कैल व तोश के पेड़ों की ठण्डी हवा यहां के शान्त वातावरण में रस घोलती रहती है। यह शान्त तथा प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर पर्यटन स्थल मुख्य तौर पर स्कीइंग के लिये प्रसिद्ध है। स्थानीय बाजार से दो किलोमीटर दूर धमड़ी नामक स्थल पर स्कीइंग केन्द्र स्थित है। इस केन्द्र में प्रतिवर्ष जनवरी से मार्च महीने तक स्कीइंग के प्रशिक्षण शिविर लगाये जाते हैं।
नारकंडा छोटा सा पर्यटन केन्द्र है। फिर भी बाहर से आने वाले सैलानियों के रात्रि ठहराव हेतु यहां पर लोकनिर्माण विभाग तथा राज्य पर्यटन विभाग का गेस्ट हाउस व होटल हैं। यूं तो शिमला से नारकंडा को सवेरे जाकर शाम को आसानी से लौटा भी जा सकता है। शिमला से नारकंडा का तीन घण्टे का सफर बड़ा ही मजेदार व जोखिमभरा है। सांप जैसी बलखाती तंग सड़क के दोनों तरफ कहीं गहरी खाईयां तो कहीं आकाश को छूती चोटियां हैं, जिनको देखकर एक बार तो दिल सहम जाता है।
बाजार के मध्य में स्थित काली माँ का मन्दिर
महामाया मंदिर, समय और परिवर्तन की देवी काली को समर्पित, एक अन्य लोकप्रिय मंदिर नारकंडा में स्थित है। सैंकडों वर्ष पुराना यह मन्दिर मां काली का है। यहां से कैलाश पर्वत श्रृखंलाएं स्पष्ट दिखाई देती हैं। इतनी ऊंचाई पर होने के कारण यहां कोई रहता तो नहीं है, परन्तु यहां बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, राजस्थान और गुजरात के लोग आज भी श्रद्धा से आते हैं। इतना दुर्गम रास्ता होने पर भी यहां सैंकडों लोग पहुंच जाते हैं। इस मन्दिर में बिजली की सुविधाएं होने पर भी श्रद्धालुओं ने सोलर सिस्टम से यहां प्रकाश की व्यवस्था की है।
नारकंडा नगर के बीच से गुजरते उच्च मार्ग के दोनों तरफ बने छोटे से बाजार में खरीद-फरोख्त तथा काम-धन्धा करने आये ग्रामीणों का अक्सर जमघट लगा रहता है। बाजार के मध्य में स्थित काली मन्दिर के आसपास रंग बिरंगे वस्त्र पहने गांवों की महिलाएं अपने-अपने गंतव्य जाने के लिये आमतौर पर बसों का इंतजार करती हुई नजर आती हैं। काली मन्दिर के ठीक पीछे छोटी पहाड़ी पर कुछ तिब्बती परिवार भी रहते हैं जो कि यहां पर दुकानदारी तथा अन्य धन्धों में लगे हुए हैं। स्थानीय सड़कों के किनारे आते-जाते छोटे-छोटे बच्चों के कन्धों पर लटके बस्ते तथा हाथ में लहराती लकड़ी की तख्तियां उनके विद्यार्थी होने का आभास कराती हैं। यह भोले-भाले बच्चे बाहर से आने वाले सैलानियों को यूं निहारते रहते हैं मानों उनके चेहरों पर छाई मासूमियत सदैव उनका अभिनन्दन करती रहती हो।
शान्त वादी की सुन्दरता पर्यटकों को यहां ठहरने पर करती है मजबूर
हिमाचल प्रदेश राज्य में स्थित, हाटु चोटी, नारकंडा शहर का एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। 3300 मीटर की ऊंचाई पर, यह
चोटी शहर का उच्चतम बिंदु है और हिमालय रेंज के एक विहंगमदृश्य प्रदान करता है जिसमें इसके बर्फ के पहाड़, पाइन के घने जंगल, सेब के बगीचे, और हरे धान के खेत शामिल हैं।
जहां इस शान्त वादी की सुन्दरता पर्यटकों को यहां ठहरने पर मजबूर करती है वहीं यह जगह उन्हें अपनी रंगीनियों की मोहताज भी बना लेती है। देवदार और चीड़ के लम्बे वृक्ष, पूर्णिमा के चांद की रोशनी में धवल कैलाश श्रंखलाएं, चारों ओर फैली सफेद बर्फ और गहरी घाटियां। प्राकृतिक सौन्दर्य की अदभुत सम्पदा से भरी पूरी स्थली नारकंडा का दृश्य साकार हो उठता है। नारकंडा हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से कुछ दूरी पर स्थित एक छोटी सी जगह है।
कैसे पड़ा नारकंडा का नाम
“नारकंडा” नाम कैसे पड़ा। बस स्टैण्ड के पास ही एक छोटी सी चट्टान है। मान्यता है कि इस पर कभी नाग देवता का वास हुआ करता था। लोगों ने वहां एक छोटा सा मन्दिर बनवा दिया। ‘कंडा’ का मतलब है कोई छोटी ढलानदार पहाड़ी। बस तभी से इसका नाम ‘नारकंडा’ पड़ गया। कहा जाता है कि यह कस्बा पठानों के आक्रमण के बाद बसना शुरू हुआ। मुहम्मद गौरी ने जब भारत पर आक्रमण किया तो बिहार और उत्तर प्रदेश के गरीब तबके के लोगों ने भागकर इन जगहों पर शरण ली और इसे सुरक्षित स्थान मानकर यहां के निवासी बन गये। 1803 में गोरखा आक्रमण पर यही लोग ढाल बनकर खड़े हो गये और गोरखाओं को पीछे हटना पड़ा। आजादी से पहले जब पूरे हिमालय में शिमला के अतिरिक्त कहीं और यात्रियों के रहने का

स्थान नहीं था तब अंग्रेजों ने नारकंडा को ही पर्यटन स्थल बना रखा था। उन्होंने यहां एक रेस्ट हाउस बना रखा था। उसमें लगभग 8-10 कमरे रहे होंगे जिनका आरक्षण सालों पहले हो जाया करता था। कमरे न मिलने पर भी अंग्रेज यहां आते और तम्बू लगाकर छुट्टियां व्यतीत करते थे। उस समय अच्छे गाइड भी हुआ करते थे जो पूरे हिमालय के बारे में जानकारी देते थे। वे लोग अच्छे महाराज भी हुआ करते थे। अंग्रेज उनकी सेवाओं से हमेशा प्रसन्न रहते थे।
नारकंडा के आसपास के क्षेत्र भी अपनी अलग-अलग विशेषता लिये हुए
नारकंडा के आसपास के क्षेत्र भी प्राकृतिक सौन्दर्य तथा अपनी-अपनी अलग-अलग विशेषता लिये हुए है। थानाधार एक ऐसी ही जगह है। यहां अमेरिका से आये सत्यानन्द स्टोक्स जिनका वास्तविक नाम सेमयुल स्टोक्स था नामक पादरी रहते हैं। उन्होंने एक भारतीय हरिजन लड़की से विवाह करके हिन्दु धर्म ग्रहण किया और अपना नाम सत्यानन्द स्टोक्स रखा। उन्होंने थानाधार की ऊपरी पहाड़ी पर एक सुन्दर मन्दिर बनवाया, जिस पर गीता के उपदेश लकड़ी की नक्काशी करके खुदवाये गये। यह मन्दिर उस समय की काष्ठकला का अद्वितीय नमूना है।
अमेरिका से लाया गया सेब का पौधा भी स्टोक्स ने सबसे पहले थानाधार में ही लगाया
थानेदार में स्थित प्रसिद्ध स्टोक्स फार्म, नारकंडा से थोड़ी दूरी पर स्थित है, जिसे व्यापक रूप से अपने सेब के बगीचे के लिए मान्यता प्राप्त है और एक अंतरराष्ट्रीय ख्याति भी है। ये फार्म एक अमेरिकी आदमी सैमुअल स्टोक्स की विरासत है, जिसने 18वीं सदी की शुरूआत में इसे शुरू किया। अमेरिका से लाया गया सेब का पौधा भी स्टोक्स ने सबसे पहले थानाधार में ही लगाया। थानाधार में कोटगढ़ नामक स्थान पर सेब के बगीचे अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। इन क्षेत्रों को एप्पल बेल्ट भी कहा जाता है।
















