राजधानी के चारों ओर छह-सात मील तक बिलासपुरी या कहलूरी बोली जाती है

खूबसूरती और आस्था की अनूठी मिसाल : बिलासपुर

हिमाचल प्रदेश खूबसूरती से लबालब पर्यटन स्थल है जहां सैंकड़ों की तादाद में पर्यटक देश-विदेशों से यहां की खूबसूरती को निहारने के लिए पहुंचते हैं। हिमाचल प्रदेश जहां पहाड़ी राज्य है वहीं इसकी संस्कृति, वेशभूषा, रहन-सहन और खान-पान की भी हर जिले की अपनी एक महत्ता है। आज हालांकि प्रदेश में बहुत से बदलाव देखने को मिल रहे हैं लेकिन यहां की हरी-भरी वादियां और यहां की परम्पराएं, संस्कृति तथा पौराणिक सभ्यता आज भी जीवित हैं। यही वजह है जो एक बार इस देवभूमि में पहुंचता है वो यहां की खूबसूरत वादियों को निहारने तथा यहां की लोक संस्कृति का आनंद लेने के लिए बार-बार आने के लिए विवश होता है। हम हिमाचल के खूबसूरत बिलासपुर जिले के बारे में आपको बताने जा रहे हैं। अगर बिलासपुर जिले के इतिहास के बारे में बात की जाए तो कहा जाता है कि गोरखों के अतिक्रमण से पहले 1894 तक बिलासपुर स्वतंत्र पंजाब हिल स्टेट की राजधानी था।

बिलासपुर जि़ले का मुख्य नगर है, जिसकी नींव राजा दीपचंद्र ने 1653 ई. में रखी थी

बिलासपुर जि़ले का मुख्य नगर है, जिसकी नींव राजा दीपचंद्र ने 1653 ई. में रखी थी। उन्होंने महाभारत काल महर्षि व्यास की स्मृति में इस नगर को बसाया था और इसका मूल नाम व्यासपुर ही रखा था जो बाद में बिलासपुर बन गया। लेकिन पुराने महल और एक प्रसिद्ध मंदिर समेत लगभग पूरा नगर गोविंदसागर में जलमग्न हो गया था। 1950 के दशक के कुछ बाद नए नगर का निर्माण किया गया था। ऐसा कहा जाता है कि वेदव्यास ने इस स्थान के पास एक गुफा में तपस्या की थी। सतलुज के वामतट पर एक पहाड़ी के नीचे व्यास गुफा अब तक स्थित है। मार्कंडेय का आश्रम भी यहां से चार मील दूर है। कहा जाता है कि दोनों ऋषि एक सुरंग द्वारा परस्पर मिलने आते-जाते थे। बिलासपुर एक पर्यटन स्थल है। बिलासपुर नगर के पास कई मंदिर स्थापित है- रवानम, रवेनसर, रद्युनाथ, मुरली मनोहर और काकरी। ऐसा कहा जाता है कि इन मन्दिरों को पाडंवों ने बनवाया था।

भाखड़ा बांध

भाखड़ा बांध

बिलासपुर को प्राचीन किलों के लिए भी जाना जाता है

बिलासपुर भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश का एक जिला है। सतलुज नदी के दक्षिण पूर्वी हिस्से में स्थित बिलासपुर समुद्र तल से 670 मीटर की ऊंचाई पर है। यह नगर धार्मिक पर्यटन में रूचि रखने वाले लोगों को काफी पंसद आता है। न्यू बिलासपुर टाउनशिप को देश का सबसे प्रथम नियोजित हिल टाउन के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है। यहां के नैना देवी का मंदिर निकट और दूर-दराज के लोगों के बीच आकर्षण का केन्द्र रहता है। यहां बना भाखड़ा बांध भी अपनी ग्रेविटी के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है। बिलासपुर को प्राचीन किलों के लिए भी जाना जाता है। यहां आने वाले सैलानियों का अनुभव अन्य स्थानों से एकदम अलग होता है। कुछ अलग तरह के पर्यटन के शौकीन लोगों को यह स्थान काफी पसंद आता है। इसके उत्तर में मंडी और हमीरपुर जिले हैं, पश्चिम में ऊना और दक्षिण में सोलन जिले का नालागढ़ क्षेत्र है।
अगर यहां के मुख्य आकर्षण की बात की जाए तो यहां नैना देवी मंदिर, सरियन किला, व्यास गुफा,  गोविंदसागर झील, बहादुरपुर ग्रीन वैली, मार्कंडेय मंदिर, स्वारघाट, भांखड़ा बांध और कंदरौर पुल हैं। जो मुख्यरूप से पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहते हैं। बिलासपुर की हरी भरी वादियां बहुत ही मनमोहक लगती हैं।

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नैना देवी मंदिर

नैना देवी मंदिर : बिलासपुर में पहाड़ी की चोटी पर नैना देवी मंदिर है जिसे राजा वीरचंद (697-780 ई.) ने बनवाया था। यह मंदिर रोपड़ से 50 मील और शिमला से 37 मील दूर है। यूरोपीय यात्री विग्ने ने 1838 ई. में इस नगर के सौंदर्य तथा वैभव के बारे में अपने संस्मरण लिखे थे। प्राचीन बिलासपुर भाखड़ा-नंगल बांध के कारण अब जलमग्न हो चुका है। नैना देवी मंदिर में श्रद्धालु माता के दर्शनों को दूर-दूर से पहुंचते हैं। मंदिर के शुरू में एक सुंदर बाजार है जहां से श्रद्धालु मंदिर में चढ़ाने के लिए पूजा की सामाग्री व प्रसाद खरीदते हैं। नैना देवी का मंदिर हिमाचल और पंजाब की सीमा पर सटे होने की वजह से यहां श्रद्धालुओं की भारी तादाद देखने को मिलती है। खासकर मंगलवार और रविवार को यहां श्रद्धालु भारी संख्या में माता के दर पर शीश नवाजने पहुंचते हैं। रोपड़ के पवित्र नगर आनंदपुर साहिब से इस मंदिर की ऊंचाई 915 मीटर है। पहाड़ी पर बने इस मंदिर तक पहुंचने के लिए पत्थर की सीढिय़ों का इस्तेमाल किया गया है। गाडिय़ों के जरिए मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।

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बहादुरपुर ग्रीन वैली

बहादुरपुर ग्रीन वैली

बहादुरपुर ग्रीन वैली: बहादुरपुर नामक पहाड़ी की चोटी जिसे पहले बहादुरपुर किले के नाम से जाना जाता था जहां पहले किला हुआ करता था। यह किला 1835 में बनवाया गया था जो अब पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुका है लेकिन अब इस स्थान को बहादुरपुर ग्रीन वैली के नाम से जाना जाता है। यह 198० मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसे जिले का सबसे ऊंचा प्वाइंट माना जाता है। परगना बहादुरपुर के टेपरा गांव के निकट बनी यह ग्रीन वैली बिलासपुर से 4० कि.मी. की दूरी पर स्थित है। आस-पास देवदार और बान के सुंदर जंगलों ने इस स्थान को चारों तरफ से घेर रखा है। इस वैली से जहां नैना देवी की पहाडी़, रोपड़ के मैदान और शिमला की पर्वत श्रृंखलाएं देखी जा सकती हैं वहीं इस वैली पर पीडब्ल्यूडी का एक बेहतरीन सरकारी रेस्टहाऊस भी है जहां ठहरने की उचित व्यवस्था भी है। यहां के हरे-भरे पेड़ और शांत वातावरण मन को छू लेता है। यहां से आसपास की बहुत ही सुंदर मनमोहक हरी वादियां आंखों को और मन को एक अजब सा सुकून देती हैं।

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मार्कंडेय मंदिर बिलासपुर

मार्कंडेय मंदिर: यह लोकप्रिय मंदिर बिलासपुर से 2० कि.मी. दूर तहसील सदर में स्थित है। पहले इस मंदिर में ऋषि मार्कंडेय रहते थे और अपने आराध्य की आराधना करते थे। इसी कारण इस मंदिर को मार्कंडेय कहा जाता है। यहां के आसपास के गांव के लोगों की मान्यता है कि मारकंड जोकि एक तीर्थ स्थल है। यहां माता-पिता अपनी बेटी के साथ उसके विवाह से पहले और बेटी के कन्यादान करने से पूर्व इस तीर्थ स्थल में आकर बेटी के सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करने आते हैं। क्योंकि उनका मानना है कि यहां आकर बेटी के वैवाहिक जीवन के लिए प्रार्थना करने से बेटी का वैवाहिक जीवन सुख से व्यतीत होता है। यहां एक प्राचीन पानी का झरना भी है, जहां बैसाखी की रात्रि में वार्षिक पर्व व मेेले का आयोजन भी किया जाता है।

सरियन किला: यह किला बिलासपुर से 58 किमी. की दूरी पर स्थित है। इस किले को मूल रूप से सुकेत राज्य के राजा ने बनवाया था। यहां के स्थानीय लोगों में यह अंधविश्वास प्रचलित है कि किले में इस्तेमाल किए गए पत्थरों को स्थानीय इमारतों में प्रयुक्त नहीं किया जाना चाहिए। इसलिए यहां के किले में प्रयोग किए गए पत्थरों का किसी इमारत बनाने के लिए प्रयोग नहीं किया जाता।

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व्यास गुफा

व्यास गुफा: व्यास गुफा में ऐसा माना जाता है कि ऋषि व्यास ने तपस्या की थी। व्यासपुर गांव के नाम की उत्पत्ति भी इसी गुफा के कारण हुई थी। महाभारत से संबंध रखने वाले व्यास ऋषि एक महान दार्शनिक थे, जो सतलुज नदी के बांए तट पर बनी इस गुफा में ध्यान लगाया करते थे। इस गुफा को एक पवित्र तीर्थस्थल माना जाता है। यह गुफा न्यू टाउनशिप के तल पर स्थित है।

स्वारघाट: बिलासपुर से 40 किमी. दूर बिलासपुर-चंडीगढ़ रोड़ पर स्वारघाट स्थित है। समुद्रतल से 1220मीटर ऊंचे स्वारघाट से आसानी से नैना देवी मंदिर और भांखड़ा बांध पहुंचा जा सकता है। स्वारघाट में लक्ष्मी नारायण को समर्पित एक मंदिर बना हुआ है। कुछ दिन शांति से गुजारने के लिए यह एक आदर्श स्थान है। हाल ही में हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम ने यहां एक आठ कमरों का होटल बनवाया है। श्री लक्ष्मी नारायण मन्दिर परिसर की शोभा देखने लायक है जब कभी भी आपको यहां आने का अवसर मिले तो देखिएगा कि इस मन्दिर की शोभा कितनी निराली है।
भाखड़ा बांध: बिलासपुर के भाखड़ा गांव में स्थित यह बांध नंगल टाउनशिप से 13 किमी.दूर है। यह बांध विश्व का सबसे ऊंचा ग्रेविटी बांध है। बांध पर बनी झील लगभग 9० किमी. लंबी है। यह बांध लगभग 168 वर्ग किमी.के क्षेत्र में फैला हुआ है। यह बांध बिलासपुर का 9० प्रतिशत और ऊना जिले का 1० प्रतिशत हिस्सा घेरता है। इस बांध को 20 नवम्बर 1963 को पंडित जवाहर लाल नेहरू ने राष्ट्र को समर्पित किया था। बांध से आसपास के क्षेत्र का नज़ारा देखा जा सकता है। यहां के आसपास का वातावरण बहुत ही सुंदर व मनमोहक है।

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कन्द्रौर पुल

कंदरौर पुल: सतलुज नदी पर बना यह शानदार पुल राष्ट्रीय राजमार्ग-88 पर बना हुआ है। इस ब्रिज का निर्माण कार्य अप्रैल 1959 में शुरू हुआ जो 1965 में जाकर पूरा हुआ। यह पुल 280 मीटर लंबा और 7 मीटर चौड़ा है। नदी के तल से 80 मीटर ऊंचे इस पुल को विश्व के सबसे ऊंचे पुलों में माना जाता है। ऊंचाई के मामले में यह ब्रिज एशिया में प्रथम स्थान रखता है। इस पुल का शिलान्यास उस समय के परिवहन मंत्री राज बहादुर ने 1965 में किया था।

आवागमन: बिलासपुर पहुंचने के लिए जहां बिलासपुर का निकटतम एयरपोर्ट चंडीगढ़ और भुंतर में है। चंडीगढ़ बिलासपुर से 135 और भुंतर 131 किमी. की दूरी पर है। यहां तक पहुंचने के लिए अपनी गाड़ी में पर्यटक पहुंच सकते हैं या फिर प्राइवेट गाड़ी भी की जा सकती है। यहां तक आने के लिए हिमाचल पथ परिवहन निगम की बसों की भी उचित व्यवस्था है। रेल द्वारा भी कीरतपुर बिलासपुर का नजदीकी रेलवे स्टेशन है, जो बिलासपुर से 6० किमी.की दूरी पर है। जहां से उसके बाद बस या फिर प्राइवेट गाड़ी द्वारा आया जा सकता है।  राष्ट्रीय राजमार्ग 21 बिलासपुर को सडक़ मार्ग से जोड़ता है। चंडीगढ़ से बिलासपुर के लिए नियमित डीलक्स और साधारण बसें चलती हैं। शिमला से दाड़लाघाट होते हुए भी बिलासपुर पहुंचा जा सकता है। यह नगर राज्य की राजधानी शिमला के पश्चिमोत्तर में एक कृत्रिम झील गोविंदसागर के समीप स्थित है। बिलासपुर, कहलूर भी कहलाता है। यहां के सुंदर मनमोहक दृश्य मन को ही नहीं लुभाते बल्कि यहां के धार्मिक पर्यटन स्थल भी आस्था की अनूठी मिसाल कायम किए हुए है।
हिमाचल प्रदेश टूरिज़्म के होटलों में जहां रहने की बेहतरीन व्यवस्था उपलब्ध है वहीं आपको यहां ठहरने के लिए हर बजट के हिसाब से होटल, गेस्ट हाउस बने हुए मिल जाएंगे। जिनमें आप ठहर सकते हैं।

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