आकृति सतान/ कोटखाई
ऐतिहासिक धरोहर कोटखाई पैलेस
शिमला का छोटा सा खुबसूरत शहर “कोटखाई”
कोटखाई : बागीचों में काम करते लोग, सिर पर पहाड़ी टोपी पहने पुरुष व ढाट्टू ओढ़े महिलाएं
यहाँ के लोगों का मुख्य व्यवसाय बागवानी
“कोटखाई का शांतिपूर्ण वातावरण और प्राकृतिक सौंदर्य दूर-दराज के क्षेत्रों से पर्यटकों को आकर्षित करता है
सुबह से लेकर शाम तक प्रकृति की गोद में हर मौसम का अद्भुत नजारा
कोटखाई के पुजाली गांव में दुर्गा माता नंदराडी का बड़ा ही प्रसिद्ध मन्दिर
“कोटखाई पैलेस”
पैगोड़ा शैली की छत के साथ तिब्बती वास्तुकला की शैली दर्शाता है
शिमला में बहुत से खूबसूरत पर्यटक स्थल हैं। जोकि पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं उन्हीं में से एक शिमला का छोटा सा खुबसूरत शहर “कोटखाई” है। जी हाँ, इस बार हम आपको शिमला के “कोटखाई” के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं जोकि पर्यटन के साथ धार्मिक आस्था के लिए भी जाना जाता है और हिमाचल के खास फल सेब की बागवानी के लिए भी प्रसिद्ध है, लेकिन इसकी एक अन्य विशेषता और भी है वो है यहां के राजा राणा साहब द्वारा बनाया गया “कोटखाई पैलेस”। जोकि पर्यटकों के लिए मुख्यरूप से आकर्षण का केंद्र माना जाता है।
शिमला का छोटा सा खुबसूरत शहर “कोटखाई”
यहाँ की हरी-भरी वादियां लोगों को काफी सुहाती हैं। “कोटखाई” हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले में 1800 मीटर की ऊंचाई पर बसा है। इस जगह का यह नाम एक खाई पर स्थित राजा के महल से पड़ा। ‘कोट’ का शाब्दिक अर्थ है महल और ‘खाई’ का खाई। “कोटखाई का शांतिपूर्ण वातावरण और प्राकृतिक सौंदर्य दूर-दराज के क्षेत्रों से पर्यटकों को आकर्षित करता है। यह जगह 23,000 हेक्टेयर के क्षेत्र में फैले अपने सेब के बगीचों के लिए जाना जाता है। बागवानी गतिविधियाँ कोटखाई के क्षेत्र में प्रमुख हैं। गिरी नदी शहर के निकट बहती है, जो मिट्टी की उर्वरता
का कारण है। यहाँ के लोगों का मुख्य व्यवसाय बागवानी है। सेब के पेड़ों के पत्तों की हरियाली, फिर उन पेड़ों पर खूबसूरत फूलों का खिलना और फिर उन
बागीचों में काम करते लोग, सिर पर पहाड़ी टोपी पहने पुरुष व ढाट्टू ओढ़े महिलाएं
टहनियों पर सेब का आना। सुबह से लेकर शाम तक प्रकृति की गोद में हर मौसम का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। दिसम्बर से मार्च तक के बीच में यहाँ काफी बर्फबारी भी होती है जोकि सेब के बागीचों के लिए काफी फायदेमंद होती है।
बागीचों में काम करते लोग, सिर पर पहाड़ी टोपी पहने पुरुष, ढाट्टू ओढ़े महिलाएं अपनी धुन में खेलते बच्चे। दुनिया की भीड़-भाड़ से अलग खूबसूरत प्रकृति का अद्भुत नजारा, आस्था से सराबोर और इतिहास को अपने में जीवित रखे शिमला का एक छोटा सा खुबसूरत शहर “कोटखाई”।
चार धाम की यात्रा पर निकलने के बाद कोटखाई क्षेत्र में नहीं होते कोई भी धार्मिक अनुष्ठान
कोटखाई के पुजाली गांव में दुर्गा माता नंदराडी का बड़ा ही प्रसिद्ध मन्दिर है, जोकि यहां के लोगों के साथ-साथ बाहर से आने वाले लोगों के लिए भी विशेष रूप से आस्था का केंद्र है। इस वर्ष मार्च में कोटखाई के पुजाली गांव से पैदल केदरानाथ तीर्थ यात्रा पर निकली दुर्गा माता नंदराडी व उनका दल केदारनाथ गया था जो यात्रा 38 दिनों में पूरी की गई। नंदराडी दुर्गा माता 33 लोगों के साथ पिछले साल 28 मार्च को पुजाली गांव से केदारनाथ के लिए रवाना हुई थी। केदारनाथ के बाद दल ब्रदीनाथ धाम रवाना हुआ और उसके बाद पैदल वापस यात्रा कर लौटा। ऐसी मान्यता है कि चार धाम की यात्रा पर निकलने के बाद कोटखाई के क्षेत्र में किसी भी
जातर फोटो
प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन नहीं होता। गांव में शादी व अन्य समारोह
जातर रथ
पर भी तीर्थ यात्रियों के वापस पहुंचने तक पूर्ण प्रतिबंध रहता है। चार धाम यात्रा से लौटने के बाद ही सभी प्रतिबंध हटते हैं। यहां के लोगों की यहां के देवी-देवताओं के प्रति गहरी आस्था है। इतना ही नहीं, बाहर से आने वाले लोग भी यहां के मंदिरों में आकर नत-मस्तक होते हैं। पिछले साल ही कोटखाई में दुर्गा माता का जातर उत्सव का आयोजन किया गया था। कोटखाई के पुजाली गांव में दुर्गा माता नंदराडी की जातर का आगाज हुआ। जोकि पूरे एक माह चली। पुजाली के अंतर्गत जितने भी गांव आते हैं वहां तक जातर होती है।
कोटखाई में जातर उत्सव का आयोजन कोटखाई के बलोग में किया गया। इसमें सैकड़ों की संख्या में लोगों ने भाग लिया। यह उत्सव कई सालों बाद मनाया गया। इस उत्सव के दौरान कोटखाई के चलनेर में भारी संख्या में लोग एकत्रित हुए। ग्रामीणों ने नंदराडी देवता की पालकी के साथ वाद्य यंत्रों की धुनों पर डटकर नृत्य किया। ग्रामीणों ने नंदराडी देवता की पूजा-अर्चना की। यह उत्सव पिछले साल नवम्बर 2015 में मनाया गया था।
राजा राणा साहब ने बनाया था “कोटखाई पैलेस”
महल पैगोड़ा शैली की छत के साथ तिब्बती वास्तुकला की शैली दर्शाता है। यह एक ऊँचे मंच पर
“कोटखाई पैलेस का दरबार