किन्नौर की “शोजा घाटी”  प्रकृति का अनुपम श्रृंगार

घाटी में ऊंचे हरे भरे चीड़ एवं देवदार के मनमोहक  गगनचुंबी वृक्ष

जलौड़ी माता मंदिर तथा सुररलेसकर झील शोजा घाटी के मुख्य आकर्षण

टूरिज्म कॉलम में हर बार हम आपको हिमाचल के अलग-अलग पर्यटन स्थलों से अवगत करवाते हैं। वहीं इस बार के अपने टूरिज्म कॉलम में हम आपको किन्नौर की शोजा घाटी के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं। प्रदेश के पर्यटन में घाटियों का अपना ही महत्वपूर्ण स्थान है। यहां की खूबसूरत घाटियां, सुंदर हरे-भरे पेड़, ऊँचे पहाड़, मनमोहक दृश्य, बहती नदियाँ और शांत वातावरण अपनी ओर आकर्षित करता है। आज हम किन्नौर की शोजा घाटी के बारे में आपको जानकारी देने जा रहे हैं।

किन्नौर की शोजा घाटी को प्रकृति का मिला है अनुपम श्रृंगार

किन्नौर की शोजा घाटी को प्रकृति का अनुपम श्रृंगार मिला है। शोजा घाटी में चीड़ एवं देवदार के गगनचुंबी वृक्ष हैं। दूर-दूर तक सीढ़ीनुमा खेत दिखाई देते हैं तो घास के हरे-भरे मैदान भी अपनी खूबसूरती की अदभुत छटा बिखेरते हैं। शोजा के भोले-भाले लोग ऐसे दिखते हैं कि जैसे वे किसी देवलोक के वासी हों, इस भौतिकवादी दुनिया के नहीं-अभाव ग्रस्त परंतु संतुष्ट। दैनिक प्रयोग की अधिकांश वस्तुओं के लिए जलौड़ी दर्रा से 30 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। जलौड़ी माता मंदिर तथा सुररलेसकर झील घाटी के मुख्य आकर्षण हैं।

यहां के चिलगोजे और सेब प्रसिद्ध

सतलुज और ब्यास बड़ी नदियां हैं। पर्वतीय भाग होने के कारण यहां यातायात अत्यंत ही कठिन है। इस क्षेत्र को सड़क द्वारा शिमला से मिला दिया गया है। यह सड़क सतलुज के किनारे चटाने काटकर बड़ी कठिनाई से बनाई गई है। कम उपजाऊ भूमि होने के कारण यहां जीवन कठिन है। लोग भेड़, बकरी और खच्चर पालते हैं तथा उनका व्यापार करते हैं। यहां के चिलगोजे और सेब प्रसिद्ध हैं। जिले का मुख्यालय कल्पा से कुछ दूर रिकांगपियो में है, लेकिन कुछ महत्वपूर्ण कार्यालय अभी भी कल्पा में ही है। व्यास नदी के साथ कुल्लू घाटी 80 किलोमीटर लंबी है यह घाटी ऊंचे पहाड़ों से गिरी है। गेहूं, जौ, मक्की, चौलाई, अखरोट और दालें यहां की मुख्य पैदावार है।

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