किन्नौर के देव कारदारों का पहरावा; इस पहरावे के बिना देवालयों में प्रवेश नहीं कर सकते देव कारदार

सिर पर काली गोल टोपी, बदन पर छुबा और कमर में गाची पहनना जरूरी

देवभूमि हिमाचल अपनी परंपरा, रहन-सहन, खानपान, संस्कृति तथा प्रकृति की खूबसूरती से न केवल भारत में अपितु विश्व भर में जाना जाता है। हिमाचल प्रदेश का जिला किन्नौर जहां विभिन्न संस्कृतियों की क्रीड़ास्थली रही है वहीं यहां के लोगों का पहनावा, आभूषण आदि भी विशेष आकर्षण लिए हुए होते हैं।

प्रदेश के लोगों की देवी-देवताओं के प्रति गहरी आस्था

हमारे प्रदेश के लोगों की देवी-देवताओं के प्रति गहरी आस्था है। इसी पर आज हम आपको एक रोचक जानकारी देने जा रहे हैं। यूं तो शादी-ब्याह किसी भी समारोह, त्योहार-उत्सव, मेले आदि में नए और पारंपरिक वेशभूषा को पहना जाता है, वही देवी-देवताओं की पूजा के लिए भी विशेष परिधान पहन कर पूजा की जाती है। जी हां! हम बात कर रहे हैं हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिला की, जहां देवी-देवताओं की पूजा के दौरान खास परिधान पहनने की परंपरा है।

कारदारों द्वारा पहनी जाने वाली टोपी साधारण टोपी की तरह नहीं होती

किन्नौर के कुछ ग्राम्य देवालयों में प्रवेश करते समय सिर पर टोपी तथा कमर में गाची होना जरूरी होता है। निचले किन्नौर के ग्रामीण देवों के कारदारों को ग्राम्य देव के देवालयों में पूजा आदि के अवसरों पर सिर पर काली गोल टोपी, बदन पर छुबा (यानि चोगा) और कमर में गाची पहनना जरूरी होता है। कारदारों द्वारा पहनी जाने वाली टोपी साधारण टोपी की तरह नहीं होती। यह गोल और चारों ओर से घुमावदार मोड़ी हुई होती है। इस पहरावे के बिना कारदारों को देवालयों में प्रवेश करना मना होता है।

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