प्राय: छोटे बच्चों के गुस्सा करने पर माता-पिता स्वयं तैश में आ जाते हैं। वे समझते हैं कि उनके डांटने या चीखने-चिल्लाने से बच्चा शांत हो जाएगा। किंतु ऐसा होता नहीं है। जब भी बच्चे को गुस्सा आए तो उसके साथ सहनशीलता से पेश आएं। उसके क्रोश का मूल कारण जानने का प्रयास करें क्योंकि बालपन बेहद नाजुक होता है। छोटी-छोटी बातें भी उसके लिए बहुत मायने रखती हैं।
अगर छोटा बच्चा गुस्से में आकर अपने हाथ-पांव पटकता है, सामान उठाकर फेंकता है या चीख-चीख कर रोता है तो उसके सामने से हट जाए। यह केवल आपके ध्यानाकर्षण के लिए ऐसा व्यवहार कर रहा है। आपके हटते ही उसकी यह गतिविधि बंद हो जाएगी। फिर उसका ध्यान बंटाएं। उसे गोद में उठाकर बाहर ले जाएं या खिलौना दे दें। सात-आठ बार यही प्रक्रिया दोहराने पर उसके इस व्यवहार में कमी आ जाएगी।
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माता-पिता अपने बच्चे के मनोभाव को पहचाने
कई बार छोटा बच्चा भी खेल के लिए साथ चाहता है। जब वह आपके दिए हुए सामान को पटकने लगे। बार-बार हाथ में देने पर भी गिराए तो जान लें कि वह आपके साथ खेलना चाहता है। इस समय यही उसके क्रोध का कारण है। अत: उसके साथ अवश्य खेलें।
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माता-पिता को अपने बच्चे के मनोभाव पहचानने चाहिए। उसके क्रोध को शांत करने के लिए मार-पीट करने की बजाए क्रोध का कारण जानें व उसे शांतिपूर्वक समझाएं।कई बार बालक प्यार से समझाने पर शांत हो जाते हैं।
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अगर आपका बालक मेहमानों की आवाजाही से आपकी व्यवस्तता पर क्रोधित है या नन्हें भाई-बहन के प्रति क्रोधित है तो उसे मेहमानों के स्वागत या नन्हें भाई-बहन के कामों में व्यस्त कर दें। वह इस प्रक्रिया का अंग बनकर गौरव महसूस करेगा तथा क्रोध भूल जाएगा।
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यदि बालक किसी अनुचित मांग के लिए क्रोध कर रहा है जिसे आप पूरा नहीं कर सकते तो वह अपने एक ही उत्तर पर दृढ़ रहें। यदि आपने एक बार न कहने के बाद उसके गुस्से को शांत करने के लिए हां कह दिया तो वह गुस्से को हथियार के रूप में इस्तेमाल करेगा।
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बच्चों को अकारण टोका-टोकी न करें। वे अपने मन के मालिक होते हैं। आपको उनकी प्रत्येक गतिविधि को कायद-कानूनों में बांध कर उनका बचपन नहीं छीनना चाहिए।
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जब भी बच्चे को गुस्सा आए तो उसे एक से 10 तक गिनती गिनने को कहें। ज्यों ही उसका ध्यान हटेगा, क्रोध छूमंतर हो जाएगा। सात-आठ वर्षीय बालक को आप ध्यान का अभ्यास भी करवा सकते हैं। इससे सहनशीलता आती है व मानसिक एकाग्रता भी बढ़ती है।
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बच्चे की रचनात्मक प्रतिभा को उभारें। खाली दिमाग शैतान का घर होता है जब वह अन्य कार्यों में व्यस्त रहेगा तो क्रोध के लिए समय ही कहां बचेगा।
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माता-पिता बच्चों के प्रत्येक कार्य में दोष न निकालें। बच्चों की अव्यवस्था व दोषों को एक सीमा तक सहन करना चाहिए।
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बच्चों के साथ संवाद स्थापित करें। घर में ऐसा खुशनुमा माहौल हो कि बच्चा आपसे मन का सुख-दुख कह सके।
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अपने क्रोध पर काबू रखें। अगर आप स्वयं बात करते-करते गुस्से में भर कर चीखने-चिल्लाने लगते हैं तो बालक को ऐसा करने से कैसे रोक पाएंगे?
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जब बच्चा अच्छे मूड में हो तभी उसे उसकी गलती समझाएं। उस समय वह क्रोधित होने की बजाए आपकी बात आसानी से समझ लेगा।
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बच्चे पर हर समय अविश्वास न करें। हो सकता है कि वो जो भी कह रहा हो, सच ही हो। बिना जांच किए किसी नतीजे पर न पहुंचे। आपका उसके प्रति अविश्वास उसे क्रोधित कर देता है।
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बच्चे को हर समय आदेश न दें। वह कोई मशीनी मानव नहीं जो आपके हर आदेश का पालन करेगा। कभी-कभी उसके मूड का भी ध्यान रखें।
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बच्चे की आयु को देखकर उसकी सोच का अनुमान लगाएं। बच्चा अपनी आयु के अनुसार ही सोचता है, तो एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। अगर वह अपनी आयु के हिसाब से सही सोच रहा हो तो उस पर अपनी सोच, इच्छा व विचारों का बोझ न लादें।