बागीचों में फूल जितना आकर्षक व लम्बी अवधि तक खिला रहेगा, फल बनने की संभावना होगी अधिक: डॉ. भारद्वाज

बागीचों में फूल जितनी लम्बी अवधि तक खिला रहेगा, फल बनने की संभावना होगी उतनी ही अधिक: डॉ. भारद्वाज

  • तापमान में कमी की वजह से पौध रस की प्रक्रिया सामान्य समय से 15-20 दिन देरी से शुरू
  • फलों के सफल उत्पादन व गुणवत्ता के लिए मधुमक्खियों का महत्व सर्वोपरि

लम्बे वर्षों के अन्तराल के पश्चात मध्य दिसम्बर से मार्च अन्त तक चली सर्द ऋतु की अब समाप्ति हो गई है। लम्बे समय तक निरन्तर ठण्ड रहने के कारण सभी प्रकार के फल पौधों विशेषकर सेब, नाशपाती, खुमानी, बादाम, प्लम, आडू, चैरी, अखरोट, अनार, जापानी फल, पीकन नट, इत्यादि में तापमान में कमी होने के फलस्वरूप पौध रस चलने की प्रक्रिया लगभग सामान्य समय से 15-20 दिन देरी से आरम्भ हुई है। बागीचों में किए जाने वाले आवश्यक कार्य भी देरी से ही आरम्भ हो पाए हैं।

  • नत्रजन की आधी मात्रा प्रयोग करने का यह उचित समय
बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एस.पी. भारद्वाज

बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एस.पी. भारद्वाज

जिन बागीचों में खाद व उर्वरक डालने का कार्य पूरा नहीं किया जा सका है, उसे अभी भी किया जा सकता है। यह ध्यान रहे कि खाद व उर्वरक पौधों की तनों से लगभग 1 मीटर की दूरी के बाहरी क्षेत्र में ही 1 मीटर चौड़े घेरे में ही डालें। उर्वरक मिश्रण 12:32:16 का प्रयोग सेब, नाशपाती इत्यादि फलों में न करें। पोटाश की मात्रा 1.25-1.5 किलो प्रति पौधा की दर से प्रयोग करें। नत्रजन की आधी मात्रा इसी समय प्रयोग करने का उचित समय है।

  • आधा इंच पत्ती के आने पर एचएमओ 4 लिटर 196 लिटर पानी में मिलाकर करें छिडक़ाव

आधा इंच पत्ती के आने पर एचएमओ 4 लिटर 196 लिटर पानी में मिलाकर पौधों पर अच्छी तरह से छिडक़ाव करें। इस छिडक़ाव के करने पर सैजोस स्केल, यूरोपियन रैड माईट व अन्य अण्डे जो नाशिकीटों द्वारा दिए गए हैं, को सफलता पूर्वक नियंत्रित किया जा सकता है। इस एचएमओ के घोल में किसी की कीटनाशक को प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं है। बागवान अनावश्यक डर से बिना किसी कीट की उपस्थिति के भी कीटनाशकों का प्रयोग करते रहते हैं जिसके कारण मित्र कीट की जीव संख्या पर विपरीत असर पड़ता है और आने वाले समय में शत्रु कीटों की जीवसंख्या लगातार बढ़ती जाती है जिससे अनावश्यक खर्चा बढ़ जाता है और फल की गुणवत्ता प्रभावित होती है।

  • गुलाबी कली अवस्था में यूरिया तथा बोरिक एसिड पानी में मिलाकर छिडक़ें
एटालीयन मधु मक्खी एपीस मेलिफ़ेरा

एटालीयन मधु मक्खी एपीस मेलिफ़ेरा

यदि किसी कारणवश एचएमओ के छिडक़ाव में देरी हो जाती है या गुलाबी कली अवस्था दिखाई देने लगती है तो एचएमओ के छिडक़ाव को टाला जा सकता है। बागीचे में गुलाबी कली अवस्था जब लगभग 50 प्रतिशत तक दिखाई देने लगे तो यूरिया 1.5 किलो तथा बोरिक एसिड 200 ग्राम प्रति 200 लिटर पानी में मिलाकर छिडक़ें। इस समय किसी कीटनाशक व फफूंदनाशक को इस मिश्रण में मिलाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि मौसम में नमी की मात्रा 50 प्रतिशत है और अवस्था में किसी रोग व कीट का प्रकोप होने की संभावना बिल्कुल भी नहीं है। फूलों में थ्रिप्स का प्रकोप भी नहीं हो पाएगा क्योंकि विगत मौसम के रहते थ्रिप्स की जीवसंख्या बिल्कुल बढऩे की संभावना नहीं है। अत: किसी कीटनाशी या फफूंदनाशक का प्रयोग न करें।

  • बोटन के छिडक़ाव के कारण परागकणों में होगा सम्पूर्ण विकास
  • फूल जितना आकर्षक और लम्बी अवधि तक खिला रहेगा, फल बनने की संभावना होगी अधिक

यूरिया 1.5 किलो के प्रयोग से फूलों में आवश्यक आकर्षण उत्पन्न होगा तथा फूल सामान्य से लम्बी अवधि तक खिले रहेंगे जिसके कारण मधुमक्खियों के बार-बार आने की तीव्र संभावना बनी रहती है और फल सैटिंग की भी अच्छी संभावना होती है। यह छिडक़ाव पत्तियों के विकास में भी सहयोग करता है। बोटन के छिडक़ाव के कारण परागकणों में सम्पूर्ण विकास हो पाती है तथा यह फल बनने की संभावना को प्रबल बनाता है। फूल जितना आकर्षक और लम्बी अवधि तक खिला रहेगा उतना ही इसके फल बनने की संभावना अधिक होती है।

  • गुलाबी कली अवस्था से पूर्ण फूल खिलने की प्रक्रिया तक गंध रहित कीटनाशक का प्रयोग कदापि न करें
  • जिन बागीचों में मधुमक्खियों की जीवसंख्या कम हो वहां अतिरिक्त मौनगृहों का प्रबंध फूल खिलने से पहले कर लें

बागवानों को इस बात का ध्यान रखना भी आवश्यक है कि गुलाबी कली अवस्था से पूर्ण फूल खिलने की प्रक्रिया तक ऐसा किसी भी कीटनाशक या फफंूदनाशक या रसायन का प्रयोग कदापि न करें जिससे कोई गंध आती हो। अधिकतर बागवान बिना किसी समस्या के गुलाबी कली अवस्था में कीटनाशक या फफूंदनाशक का

गुलाबी कली अवस्था

गुलाबी कली अवस्था

अनावश्यक प्रयोग करते हैं जो अत्यन्त हानिकर है। ऐसे बागीचों में मधुमक्खियों की जीवसंख्या कम आती हैं जिससे फल भी कम बन पाता है। इसके अतिरिक्त मधुमक्खियों की जीवसंख्या में भी लगातार कमी हो जाती है। बागवानों को यह समझना होगा कि मुधमक्खियों को किसी प्रकार की हानि न हो क्योंकि यदि मधुमक्खियां होंगी तभी फल पौधों में परागण प्रक्रिया संभव हो पाएगी और फल की प्राप्ति होगी। अत: अनावश्यक छिडक़ाव न करें और जिस समस्या का सामना कर रहे हैं उसी पर आधारित नियंत्रण प्रक्रिया अपनाएं।

जिन बागीचों में मधुमक्खियों की जीवसंख्या कम हो वहां अतिरिक्त मौनगृहों का प्रबंध फूल खिलने से पहले कर लें। मौनगृह बागीचों में परागण प्रतिशत के आधार पर रखें। यदि परागण किस्में 3० प्रतिशत तक उपलब्ध है तो 2-3 मौनवंश उपयुक्त हैं। यदि बागीचे में परागण 15 प्रतिशत के आसपास है तो 8 मौनवंश प्रति हैक्टेयर के हिसाब से रखें।

  • मौनवंशों को बागीचों में स्थापित करना लाभप्रद
  • मौनवंशों के पास पानी का खुला बर्तन छोटी-छोटी लकडिय़ां डालकर अवश्य रखें
एर्यस्टलिस प्रजाति

एर्यस्टलिस प्रजाति

यह भी ध्यान रखें कि जब बागीचे में 5-10 प्रतिशत फूल खिल जाए तभी मौनवंशों को बागीचों में स्थापित करें। इससे पहले मौनवंशों को बागीचों में स्थापित करना लाभप्रद नहीं होगा। मौनवंशों के पास पानी का खुला बर्तन जिसमें छोटी-छोटी लकडिय़ां डाली हों जिस पर मधुमक्खी बैठकर पानी पी सके, का ख्याल रखना आवश्यक है अन्यथा पानी की तलाश में मधुमक्खियां बागीचे से दूर जाकर परागण प्रक्रिया में कम सहयोग करती हैं।

  • मौनवंश को बागीचे के सभी दिशाओं में खुले स्थान पर रखें
  • मधुमक्खियों की जीवसंख्या को बचाने व बढ़ाने के लिए सभी संभव प्रयत्न करने आवश्यक

मौनवंश को बागीचे के सभी दिशाओं में खुले स्थान पर रखें लेकिन बागीचे के किनारे पर नहीं। यह सर्वविदित है कि फलों के सफल उत्पादन व गुणवत्ता के लिए मधुमक्खियों का महत्व सर्वोपरि है और इनकी जीवसंख्या को बचाने व बढ़ाने के लिए सभी संभव प्रयत्न करने आवश्यक है ताकि गुणवत्तायुक्त फल प्राप्ति सुनिश्चित की जा सके।

 

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