बुवाई का समय एवं पौधों की दूरी : पालक की बुवाई का समय मुख्य फसल का सितम्बर से नवम्बर के शुरू तक का है तथा देर से बोई जाने वाली फसल फरवरी के महीने में भी बोई जाती है जोकि देर तक सबजी देती है। इस प्रकार से नवम्बर से अप्रैल तक पालक की सब्जी मिलती रहती है।

पालक के खेत के लिये बीज की 40 किलो प्रति हेक्टर की आवश्यकता
पालक को कतारों में भी बोया जाता है, जोकि आगे सुविधाजनक रहता है। कतार से कतार की दूरी 20-35 सेमी. तथा पौधों से पौधों की दूरी 5-10 सेमी. रखते हैं। बीज की गहराई 1-2 सेमी. रखनी चाहिए।
बुवाई का ढंग एवं बीज की मात्रा : पालक की बुवाई दो तरीकों से की जाती है। पहली विधि में बीज को खेत में छिटककर बोते हैं तथा दूसरा विधि में बीज को समान दूरी पर कतारों में बोते हैं। कतारों की विधि सबसे अच्छी रहती है। इस विधि में निराई-गुड़ाई तथा कटाई आसानी से हो जाती है।
पालक के खेत के लिये बीज की 40 किलो प्रति हेक्टर की आवश्यकता होती है। अच्छे अंकुरण के लिये खेत में नमी का होना अति आवश्यक है। बुवाई के बाद बीज को भूमि की ऊपरी सतह में मिला देना चाहिए। बगीचे के लिए बीज की मात्रा 100-125 ग्राम 8-10 वर्ग मी. क्षेत्र के लिये पर्याप्त होती है। पालक को गमलों में भी लगाया जा सकता है। एक गमले में 4-5 बीज बोने चाहिए। गमलों से भी समय-समय पर अच्छी पैदावार मिलती है। बोने के बाद बीज को हाथ से मिट्टी में मिला देना चाहिए तथा पानी की मात्रा अंकुरण के लिए देनी चाहिए।
सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई: पालक की फसल के लिये पहली सिंचाई अंकुरण के 6-7 दिन के बाद करनी चाहिए। बीज की बुवाई भूमि में पर्याप्त नमी होने पर करनी चाहिए। इस प्रकार से जाड़ों में 12-15 दिन के अन्तराल से सिंचाई करते रहना चाहिए तथा जायद या देर से बोने वाली फसल के लिये सिंचाई की अधिक आवश्यकता पड़ती है। इस मौसम की फसल को 4-5 दिन के बाद पानी देते रहना चाहिए। इस प्रकार से पालक की फसल के लिये सिंचाई व नमी को लगातार बनाये रखना अति आवश्यक है।
बगीचे की फसल के लिये भी सिंचाई नमी के लिए आवश्यकतानुसार करते रहना चाहिए। जाड़ों की फसल के लिए 8-10 दिन के बाद तथा जायद की फसल की सिंचाई हल्की-हल्की 2-3 दिन में करते रहना अति आवश्यक है। अच्छी उपज के लिये सिंचाई का बहुत ही योगदान होता है। गमलों में नमी के अनुसार 2-3 दिन के बाद तथा जायद की फसल के लिए रोज शाम को ध्यान से पानी देते रहना चाहिए। पानी देते समय ध्यान रहे कि गमलों में लगे पौधे टूटे नहीं और फव्वारे से ऊपर की दूरी से नहीं देना चाहिए।
पालक की फसल में रवी फसल के खरपतवार अधिक हो जाते है। इनको पहली, दूसरी सिंचाई के तुरन्त बाद खेत में निकाई-गुड़ाई करते समय फसल से शीघ्र उखाड़ या निकाल देना चाहिए। इस प्रकार से 2-3 निकाई फसल में करनी अति आवश्यक हैं। ऐसा करने से फसल की उपज अधिक होती है।
पालक की कटाई : पालक की फसल की कटाई डेढ़-दो महीने के बाद आरम्भ हो जाती है। पालक की शाखों को कुछ ऊपर से काटना चाहिए जिससे अगला फुटाव शीघ्र तैयार हो जाये। नत्रजन की मात्रा देने से और भी शीघ्र शाखाएं तैयार हो जाती हैं। इस प्रकार से एक फसल से 4-5 कटाइयां मिल जाती हैं। बाद की कटाई न करके बीज के लिये छोड़ा जा सकता है। कटाइयां 8-10 दिन के अन्तर से करते रहना चाहिए। कटाई दरांती या हंसिया से करनी चाहिए।
उपज: पालक की उपज प्रत्येक जाति के ऊपर निर्भर करती है। पूसा आल ग्रीन 30 हजार किलो तथा पूसा ज्योति की उपज 40 हजार किलो प्रति हेक्टर उपज प्राप्त होती है। औसतन प्रत्येक जाति की उपज 25-35 हजार किलो प्रति हेक्टर पैदावार उपलब्ध हो जाती है। बगीचे में भी 20-25 किलो पत्तियां प्राप्त हो जाती हैं जो कि समय-समय पर मिलती रहती हैं।
रोगों से पालक के पौधों का बचाव : पालक की फसल में दो बीमारियों का अधिक प्रकोप होता है जो कि फसल को हानि पहुंचाती हैं- (1) डैपिग आफ, (2) पाउडरी मिलड्यू ।
डैपिग आफ की बीमारी सीडिला पर लगती है। छोटा पौधा पिचक जाता है तथा मर जाता है। यह पाइथीयम-अल्टीयम कवक द्वारा लगती है। इस पर नियन्त्रण के लिये सैरासन या सीडैक्स कवकनाशक से बीजों को उपचारित करके बोना चाहिए।
पाउडरी मिलड्यू बीमारी के द्वारा पालक की फसल की अधिक हानि होती है। इस बीमारी में पौधों की पत्तियों पर छोटे-छोटे पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं जो आगे चलकर बड़ा रूप धारण कर लेते हैं और पूरा पौधा नष्ट हो जाता है। नियन्त्रण के लिए सल्फर का धूल भी लाभदायक होता है। ऐसे रोगी पौधों को उखाड़कर जला देना चाहिए।
कीट-पतंगे तथा नियन्त्रण: पालक की फसल के लिए कुछ कीटों द्वारा भी क्षति पहुंचती है। कैटर पिलर व ग्रास होपर मुख्य कीट हैं जो फसल पर लगते हैं। इन पर नियंत्रण के लिए बी.एच. सी. या डी.टी.टी. पाउडर का छिडकाव करना चाहिए । पालक को छिड़काव से 10 दिन बाद तक प्रयोग में नहीं लाना चाहिए।
साभार: kaiseaurkya.com
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