सेब में कली विकास की विभिन्न अवस्थाएं भी कम समय में पूर्ण
इस समय किसी भी छिड़काव की आवश्यकता नहीं
इस वर्ष मार्च के महीने में जितनी तीव्रता तापमान की बढ़ोतरी में देखी गई है वह अप्रत्याशित है जबकि फरवरी माह में लगातार हिमपात का क्रम जारी रहा। सामान्य तापमान से 7 – 11 डिग्री सेल्सियस अधिकतम तापमान नि:संदेह चिंता का विषय है परंतु जनवरी-फरवरी में प्राप्त वर्षाजल तथा हिमपात की मात्रा भूमि में नमी की मात्रा को संतुलित रखने में सहायक सिद्ध हुई है। न्यूनतम तापमान अभी तक शीतोष्ण क्षेत्रों में 14 डिग्री सेल्सियस तथा अधिकतम 25 डिग्री सेल्सियस के बीच में ही रिकॉर्ड किया गया है।
बागवानी विशेषज्ञ डा. एस.पी. भारद्वाज
गुटलीदार फलों में विशेष चैरी, प्लम, खुमानी, आड़ू में फूल खिलने की प्रक्रिया पूर्ण होकर फल बनने तक संपूर्ण हो चुकी है। सेब उत्पादित क्षेत्रों में निचली पहाड़ी क्षेत्रों से मध्य पहाड़ी क्षेत्रों में पूर्ण रुप से फूल खिलकर फल बनने की प्रक्रिया भी अभी तक सामान्य रूप से चल रही है। ऊँचे पहाड़ी क्षेत्रों जिनकी समुद्रतल से 8,000 फुट से अधिक ऊंचाई है इनमें गुलाबी कली अवस्था चल रही है और एक सप्ताह भर में फूल खिलने की अवस्था आरंभ हो जाने की संभावना है। इस वर्ष सेब बागीचों में फूल लगभग 15 दिन पहले खिल रहे हैं जबकि सामान्यत: यह अवस्था अप्रैल के प्रथम सप्ताह से अंतिम सप्ताह के मध्य पूर्ण हो जाती है।
फूलों पर मधुमक्खियों तथा अन्य परागण कीटों की जीवसंख्या भी सामान्य
बढ़ते तापमान के कारण सेब बागवान चिंतित है कि इससे हानि अवश्यंभावी है। इस समय सामान्य तापमान सेब बहुल क्षेत्रों में 16 – 24 डिग्री सेल्सियस के मध्य है और यह परागण प्रक्रिया के लिए अत्यंत उपयुक्त है। फूलों पर मधुमक्खियों तथा अन्य परागण कीटों की जीवसंख्या भी सामान्य रूप में देखी गई है और यह परागण के लिए सहायक है। जिसके कारण फल बनने की संभावनाएं भी प्रबल हैं। सेब में कली विकास की विभिन्न अवस्थाएं भी कम समय में पूर्ण हो रही हैं जिसके फलस्वरूप कीटनाशक व अन्य पोषक तत्व के छिड़काव में भी कमी आई है। कीटनाशकों के कम छिड़काव के कारण मधुमक्खियों की जीव संख्या में भी कमी होने की आशंका भी नगण्य है। इस समय किसी भी छिड़काव की आवश्यकता नहीं है। फल बनने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही अपने बागीचे की परिस्थिति को ध्यान में रखकर यह निर्णय करें।
बागीचे में जब फूल खिलने आरंभ हो जाते हैं तो किसी भी कीटनाशक का प्रयोग नहीं करना चाहिए
सेब बगीचों में थ्रिप्स की जीवसंख्या भी बहुत कम है इसलिए कोई छिड़काव ना करें। जब फूल खिलने आरंभ हो जाते हैं तो किसी भी कीटनाशक का प्रयोग बागीचे में नहीं करना चाहिए। कीटनाशक मधुमक्खियों व अन्य परागण कीटों व प्राकृतिक ईट शत्रुओं के लिए घातक होते हैं जिन बागीचों में कीटनाशकों का प्रयोग होता है वहां परागण कीट कम संख्या में आते हैं जिससे फल बनने की प्रक्रिया बाधित होती है। इस समय मित्र कीटों की जीव संख्या सर्वाधिक होती है इन्हें हर हालत में बचाएं जिससे प्राकृतिक संतुलन बना रहे अन्यथा विकट नाशि कीट का प्रभाव देखने में मिलता है और फल गुणवत्ता प्रभावित होती है।
इस समय बागीचों में विशेषकर तौलिए के क्षेत्र में कोई खुदान का कार्य न करें
बागीचों में विशेषकर तौलिए के क्षेत्र में कोई खुदान का कार्य इस समय न करें। इस समय जितनी नमी भूमि में विद्यमान है उसे बनाए रखें। तौलियों को घास से ढक दें या फिर पॉलीथिन शीट का भी प्रयोग किया जा सकता है। भूमि में किसी प्रकार की खाद या उर्वरक मिलाने का वर्तमान परिस्थितियों में कोई भी औचित्य नहीं है। यदि संभव हो तो शाम के समय सिंचाई की व्यवस्था करें।
फल बनने के तुरंत बाद किसी भी पोषक तत्व का प्रयोग न करें
मौसम की वर्तमान परिस्थितियों में फल बनने की प्रक्रिया सुचारू रूप से पूर्ण होने की प्रबल संभावना
मधुमक्खियों की कमी का मुख्य कारण गुलाबी कली अवस्था से पंखुड़ी पात तक अधिक कीटनाशकों का प्रयोग
फल बनने के तुरंत बाद किसी भी पोषक तत्व का प्रयोग न करें। फल कितना बना है इसका आंकलन करें तथा 8-10 दिनों उपरांत ही पोषक तत्व का प्रयोग करें। तुरंत किए गए छिड़काव से कमजोर फल जिन्हें कुछ दिनों के बाद गिरना था वह भी पोषक तत्वों का उपयोग कर कुछ समय पौधों पर टिके रहेंगे और सड़कर फिर गिर जाएंगे ऐसे में फल का साइज प्रभावित होता है। मौसम की वर्तमान परिस्थितियों के संदर्भ में यह स्पष्ट है कि सेब बागीचों में फल बनने की प्रक्रिया सुचारू रूप से पूर्ण होने की प्रबल संभावना है। कम फल बनने की समस्या केवल उन्हीं बागीचों में देखी जा सकती है जिनमें गत वर्ष सामान्य से अधिक फल प्राप्ति की गई हो या उन बागीचों में जहां अधिकांश पत्तियां समय से पूर्व यानी अगस्त-सितंबर में झड़ गई हों चाहे यह पूर्व पति झड़ रोग के प्रकोप के कारण हो या फिर रेड माईट के आक्रमण से हुआ हो। इसके अतिरिक्त सेब बागीचों में 20 प्रतिशत से कम परागण किस्मों का ना होना भी फल उत्पादन को प्रभावित करता है। मधुमक्खियों व अन्य कीट जो परागण प्रक्रिया में अभूतपूर्व योगदान करते हैं कि जीव संख्या कम होने पर पर भी फल बहुत कम बन पाते हैं। यह जानना भी आवश्यक है कि मधुमक्खियों की कमी का मुख्य कारण अधिक कीटनाशकों का प्रयोग गुलाबी कली अवस्था से पंखुड़ी पात तक करने से कारण होता है। अधिकतर बागवान इस पहलू पर ध्यान नहीं देते और परागण कीटों की कमी के कारण न केवल अपना परंतु पूरे क्षेत्र में उत्पादित फल को प्रभावित कर हानि पहुंचाते हैं। अतः इस समय किसी कीटनाशक का प्रयोग ना करें। प्रत्येक बीमे से कमजोर फल को काट दें और स्वस्थ फल और वह भी 1-2 से अधिक ना रखें। प्रत्येक बीमे पर फल ना हो, एक बीमा खाली व एक पर फल होना चाहिए इससे प्रत्येक वर्ष गुणवत्ता फल प्राप्ति की संभावना अधिक होती है।
वैज्ञानिक सलाह से ही फल उत्पादन का कार्य करें
किसी संकोच की अवस्था में वैज्ञानिक सलाह लेना न भूलें
यदि परागण किस्मों में फल अधिक लगा है तो मटर के आकार होने पर विरलन करें। इसके लिए प्लैनोफिक्स 90 मि.लि. प्रति 200 लिटर पानी में मिलाकर छिड़कें। इस छिड़काव से पौधों पर लगे 50 प्रतिशत फल का विरलन हो जाता है। छिड़काव सही अवस्था में करें, देरी करने पर विरलन नहीं हो पाता। बागवानों को यह समझना आवश्यक है कि अधिक फल प्राप्ति किसी प्रकार से लाभप्रद नहीं है। पहले वर्ष फल अधिक होने पर आकार कम विकसित होता है और प्रति पेटी फल अधिक भरना पड़ता है और दाम बहुत कम मिलते हैं। अगले वर्ष इन पौधों में फल बहुत कम लगते हैं और कई बार तो व्यय भी पूरा नहीं हो पाता। इसलिए सामान्य गुणवत्ता युक्त फसल प्रति वर्ष लेने का प्रयत्न करें इससे आय तो बढ़ेगी ही इसके अतिरिक्त पौधों का स्वस्थ भी उत्तम होगा और पौधे लंबे समय तक फल उत्पादित करते रहेंगे। वैज्ञानिक सलाह से ही फल उत्पादन का कार्य करें। किसी संकोच की अवस्था में वैज्ञानिक सलाह लेना न भूलें।