डॉ. भीमराव अंबेडकर से जुड़ी 10 रोचक बातें, जानिए राजनीतिक सफर से लेकर संघर्ष तक की कहानी…

नई दिल्लीःडॉ. भीम राव अंबेडकर ने अपने संघर्षों एवं अपनी शिक्षा से सामाजिक मूल्यों को विकसित किया। वे जीवनभर अपने मूल्यों से कभी विचलित नहीं हुए। उनका व्यक्तित्व विराट था। स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माण के लिए साल 1947 में भीमराव अंबेडकर को संविधान सभा के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था। आज ही के दिन यानी 14 अप्रैल, 1891 को देश के इस महान समाज सुधारक एवं संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म मध्य प्रदेश में हुआ था। डॉ. अंबेडकर की जयंती को सभी हम सभी भारतवासी एक पर्व के रूप में मनाते हैं। आइए जानते डॉ. अंबेडकर के जीवन से जुड़ी कुछ प्रमुख बातें।

डॉ. अंबेडकर का संघर्ष: डॉ. अंबेडकर का जन्म  14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश में हुआ था। वे हिंदू महार जाति से संबंध रखने वाले थे। जो उस समय अछूत जाती कही जाती थी। अपने जाति के कारण डॉ. अंबेडकर को समाजिक छुआछुत का सामना करना पड़ा था।

डॉ. भीमराव अंबेडकर 1950 के दशक में बौद्ध धर्म से प्रभावित हुए और 14 अक्टूबर, 1956 को नागपुर में अपने समर्थकों के साथ बौद्ध धर्म को अपना लिया। इस दौरान उन्होंने 22 प्रतिज्ञाएं लीं थी।

बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने छुआछूत को गुलामी से भी बदतर कहा था। उन्होंने छुआछुत के खिलाफ अनेकों सार्वजनिक आंदलोन और अछूतों को हर जगह पर प्रवेश दिलाने के लिए संघर्ष किया था।

डॉ. अंबेडकर कोलंबिया यूनिवर्सिटी और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधी धारण की थी। इसके शिवाय उन्होंने विधिशास्त्र, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में रिसर्च किया था। उन्होंने समाज में कमजोर वर्ग के लोगों को सक्षम बनाने के लिए हर संभव मदद की।

डॉ. अंबेडकर ने संविधान में दलितों को शिक्षित और अपने अधिकारों को लड़ने के लिए आग्रह किया। उन्होंने सभी को समान अधिकार देते हुए हिंदू ब्राम्हणों के एकाधिकार को समाप्त किया।

डॉ. भीमराव अंबेडकर का रानजीतिक सफर

बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर का राजनीतिक कैरियर 1926 में शुरू हुआ और 1956 तक वो राजनीतिक क्षेत्र में विभिन्न पदों पर रहें। वे 1936 तक बॉम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य थे।

1936 में बी आर अंबेडकर ने स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की, जो 1937 में केंद्रीय विधान सभा चुनावों में 13 सीटें जीती। डॉ. अंबेडकर को बॉम्बे विधान सभा के विधायक के रूप में चुना गया था। वह 1942 तक विधानसभा के सदस्य रहे इस दौरान वे बॉम्बे विधान सभा में विपक्ष के नेता के रूप में भी कार्य किए।

डॉ. अंबेडकर ने 15 मई 1936 को अपनी पुस्तक ‘एनीहिलेशन ऑफ कास्ट’ (जाति प्रथा का अंत) प्रकाशित की, जो उन्होंने न्यूयॉर्क में लिखे एक शोधपत्र के आधार पर लिखी थी। पुस्तक में बाबा साहब अंबेडकर ने हिंदू धार्मिक नेताओं और जाति व्यवस्था की कड़ी निंदा की।

डॉ. अंबेडकर ने अछूत समुदाय के लोगों को गांधी द्वारा रचित शब्द हरिजन पुकारने के कांग्रेस के फैसले की कडी निंदा की।

1955 के बीबीसी साक्षात्कार के एक साक्षात्कार में उन्होंने गांधी पर उनके गुजराती भाषा के पत्रों में जाति व्यवस्था का समर्थन करना तथा अंग्रेजी भाषा पत्रों में जाति व्यवस्था का विरोध करने का आरोप लगाया।

15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद, कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार ने डॉ. अंबेडकर को स्वतंत्र भारत का पहला न्याय मंत्री बनाया गया।

29 अगस्त 1947 को डॉ. अंबेडकर को स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माण के लिए संविधान के प्रारुप समिति के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया। इस दौरान उन्होंने लगभग 60 देशों के संविधान का अध्ययन किया।

बाबासाहेब अंबेडकर के बारे में रोचक तथ्य

भारत के झंडे पर अशोक चक्र लगवाने वाले डाॅ. बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर ही थे।

डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर लगभग 9 भाषाओं को जानते थे।

भीमराव अंबेडकर ने 21 साल की उम्र तक लगभग सभी धर्मों की पढ़ाई कर ली थी।

भीमराव अंबेडकर ऐसे पहले इन्सान थे जिन्होंने अर्थशास्त्र में PhD विदेश जाकर की थी।

भीमराव अंबेडकर  के पास लगभग 32 डिग्रियां थी।

बाबासाहेब आजाद भारत के पहले कानून मंत्री थे।

बाबासाहेब ने दो बार लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन दोनों बार हार गए थे।

भीमराव अम्बेडकर हिन्दू महार जाति के थे, जिन्हें समाज अछूत मनाता था।

भीमराव अम्बेडकर कश्मीर में लगी धारा नंबर 370 के खिलाफ थे।

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