J&K और लद्दाख के सरकारी कर्मचारियों को तोहफा, 31 अक्‍टूबर से मिलेगा सातवें वेतन आयोग का लाभ

आत्‍मा, विवेक और स्‍वच्‍छ भारत!

  • स्‍वच्‍छ भारत विश्‍व के लिए भारत द्वारा दिया जाने वाला सबसे महत्‍वपूर्ण वक्‍तव्‍य है
  •  एम. वेंकैया नायडू
  • फीचर
एम. वेंकैया नायडू

एम. वेंकैया नायडू

महाराष्‍ट्र के वाशिम जिले के साईखेड़ा गांव की रहने वाली संगीता अहवाले ने अपने घर में शौचालय का निर्माण करवाने के लिए अपना मंगलसूत्र तक बेच दिया। छत्‍तीसगढ़ जिले के धमतारी जिले में स्थित कोटाभारी गांव की 104 वर्ष आयु की वृद्धा कुंवर बाई ने अपने घर में शौचालय बनवाने के लिए अपनी ब‍करियां बेच दीं। कोलारस ब्‍लॉक के गोपालपुरा गांव की आदिवासी नववधू प्रियंका अपनी ससुराल के घर में शौचालय न होने के कारण अपने माता-पिता के घर लौट आई। आंध्रप्रदेश के गुंटुर जिले की एक मुस्लिम महिला ने अपनी नई पुत्रवधू को एक शौचालय उपहार में दिया। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहां लड़कियों ने ऐसे घरों में शादी करने से मना कर दिया जहां शौचालय नहीं बने थे। इन सभी मामलों में महिलाएं ही आत्‍म सम्‍मान को कायम रखने के लिए नई भावना को जागृत करने में आगे रही हैं। स्‍कूल की छात्रा लावण्‍या तब तक भूख हड़ताल पर बैठी रही जब तक कर्नाटक स्थित उनके गांव हालनहल्‍ली के सभी 80 परिवारों में शौचालयों का निर्माण नहीं हो गया। स्‍वच्‍छ भारत की दिशा में आए बदलाव के इस भारी परिवर्तन की ये कुछ झलकियां ही हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी द्वारा 2 अक्‍तूबर, 2014 को शुरू किया गया स्‍वच्‍छ भारत मिशन पिछले दो वर्षों के दौरान शुरू की गई अग्रणीय पहलों में से एक है। निश्चित रूप से देश को स्‍वच्‍छ बनाने का यह विचार बिलकुल नया नहीं है। इससे पहले भी संपूर्ण स्‍वच्‍छता मिशन और निर्मल भारत अभियान जैसे इसी प्रकार के प्रयास किये गये हैं, लेकिन इस बार इसमें इरादे और कार्यान्‍वयन की शक्ति के अंतर का है। इस बार व्‍यवहार परिवर्तन पर ध्‍यान केंद्रित किया गया है जो शौचालयों के उपयोग के लिए बहुत जरूरी है। शौचालय बना लेना आसान है लेकिन सबसे बड़ी चुनौती यह है कि लोगों को उन्‍हें उपयोग करने के लिए प्रोत्‍साहित कैसे किया जाए।

यह उल्‍लेखनीय है कि आज से ठीक 100 साल पहले महात्‍मा गांधी ने बनारस हिंदू विश्‍वविद्यालय वाराणसी में बोलते हुए देश में सफाई की खराब स्थिति के बारे में अपनी आवाज उठाई थी। काशी में विश्‍व प्रसिद्ध काशी विश्‍वनाथ मंदिर को जाने वाली सभी सड़कों को देखकर वे स्‍तंभित रह गए थे। गांधी जी ने कहा था कि स्‍वच्‍छता, राजनीतिक आजादी जितनी ही महत्‍वपूर्ण है। भारत को औपनिवेशिक शासन से आजाद हुए 69 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन यह देश खुले स्‍थानों में चारों और फैली गंदगी के अभिशाप से आजाद नहीं हुआ है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने वर्ष 2019 तक देश को इस गंदगी से निजात दिलाने के लिए इस मिशन की शुरूआत की। युगों-युगों से भारतीय संस्‍कृति और लोकाचार में आत्‍मा की पवित्रता पर जोर दिया है। व्‍यक्तिगत मुक्ति के एक साधन के रूप में आत्‍मा की पवित्रता की अवधारणा वास्‍तव में प्रकृति के साथ सद्भाव से रहने के साथ-साथ वैचारिक प्रक्रियाओं और कार्यों के सभी पहलुओं से जुड़ी है। चारों और फैले कचरे के ढेर, खुले में कूड़ा करकट फैंकने, नहरों और नदियों को प्रदूषित करने, अवरूद्ध सीवर और नाले, बढ़ते हुए जल और वायु प्रदूषण, पेड़ों और वनों की कटाई, आत्‍मा की पवित्रता से प्रेरित जीवन की पवित्रता के अनुरूप नहीं हैं। स्‍वच्‍छ भारत मिशन का उद्देश्‍य लोगों के सोचने की प्रक्रियाओं और कार्यों के रुख और विश्‍वास में बदलाव लाकर आत्‍मा और प्रकृति के बीच सद्भाव बहाल करना है। ये सभी आशय व्‍यावहारिक संशोधन और समग्र विकास अनुरूप हैं।

खुले में शौच करना, ठोस और तरल अपशिष्‍ट प्रबन्‍धन स्‍वच्‍छ भारत के लक्ष्‍य को साकार करने के लिए दो महत्‍वपूर्ण घटक हैं। खुले में शौच ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में आम चिंता का विषय है, जबकि अपशिष्‍ट प्रबन्‍धन शहरी क्षेत्रों की प्रमुख चिंता है। सफाई की खराब स्थिति के कारण होने वाली बीमारियों के कारण गरीबों के ऊपर विशेष रूप से पड़ने वाले आर्थिक बोझ के सम्‍बन्‍ध में स्‍वास्‍थ्‍य के बारे में सबसे प्रमुख चिंता यह है कि स्‍वच्‍छ शहरों सहित पूरे देश को खुले में शौच से मुक्‍त बनाना आज समय की मांग है।

व्यावहारिक परिवर्तनों में शौचालय उपयोग की आदत को बढ़ावा देने, खुले में गंदगी न फैलाने, स्त्रोत पर ठोस कचरे को अलग-अलग करने, खाने से पहले हाथ धोने जैसे व्यवहारों को स्वच्छता आदत में शामिल करने, रिहायशी और कार्य स्थल तथा सार्वजनिक स्थानों को स्वच्छ बनाए रखने, लोक स्वच्छता प्रबंधन में जनभागीदारी, पार्क रख-रखाव को शामिल किया जाएगा। वास्तव में रिहायशी और सार्वजनिक स्थलों की स्वच्छता को सभी नागरिकों के लिए चिंता का विषय बनाना होगा। स्वच्छ भारत के जारी प्रयासों की सफलता के केंद्र में लोगों को इस विषय में संवेदी बनाना है।

असमान विकास पर तीखी टिप्पणी के अतिरिक्त खुले में शौच अपने सम्मान को नकारना है। बाध्यता के कारण यह लोगों की आदत बन गई है। शौचालय बनाने का अवसर मिलने पर कोई भी खुले में शौच करना नहीं चाहेगा। इस व्यवहार का कोई औचित्य नहीं है। शहरी क्षेत्रों में तो यह और अपमानजनक है।

  •    लेखक केंद्रीय शहरी विकास, आवास और शहरी गरीबी उपशमन तथा सूचना एवं प्रसारण मंत्री हैं।

सम्बंधित समाचार

अपने सुझाव दें

Your email address will not be published. Required fields are marked *