जागरे का विशेष महत्व
इस दिन ग्राम देवी-देवता को किया जाता है घर पर आमन्त्रित
हिमाचल देवभूमि है। यहाँ अक्सर देवी-देवताओं की पारम्परिक तरीके से सदियों से पूजा-अर्चना की जाती आ रही है। हर जिले के हर गाँव की देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करने की अपनी-अपनी परम्परा रही है। जिसे आज भी बखूबी निभाया जाया जा रहा है। हर गाँव में देवी-देवताओं की पूजा करने के अपने तौर-तरीके और परम्पराएं हैं। इसीलिए देवी-देवताओं को खुश करने और अपनी मनवांछित इच्छा पूरी होने पर गाँव के लोगों दवारा “जागरे” का आयोजन किया जाता है।
भादों महीने में जागरा का विशेष महत्व है। “जागरा” कर्मकाण्ड ग्राम-देवता की सेवा के लिए किया जाता है। ग्राम देवता को घर पर निमन्त्रित किया जाता है अथवा किसी विशेष दिन आस-पास के लोगों को निमन्त्रित कर मन्दिर में यह कार्य सम्पन्न होता है। सभी लोग रात्रि भर चलने वाले इस पूजन के कार्यक्रम में हिस्सा लेते हैं।
ऊपरी क्षेत्रों में महासू देवता की याद में मनाया जाता है यह उत्सव
सामान्यत: भादों मास से ऊपरी शिमला के क्षेत्रों, किन्नौर तथा सिरमौर के क्षेत्रों में यह उत्सव महासू देवता की याद में मनाया जाता है। प्रतिवर्ष शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का दिन निर्धारित किया जाता है और देवता के सम्मान में प्रत्येक परिवार का सदस्य व्रत रखता है। दिन में पुजारी और देवता के अनुयायी उसे निकट के झरने पर ले जाते हैं।
ढोल बजाते हुए ग्राम देवता की प्रशंसा में गीत गाते है अनुयायी
इस जुलूस का नेतृत्व मन्दिर के संगीतकार करते हैं। ढोल बजाते हुए अनुयायी ग्राम देवता की प्रशंसा में गीत गाते हैं। झरने पर देवता को स्नान करवाया जाता है। पुजारियों का समूह दूर से इस धार्मिक रीति को देखता है। मूर्ति को स्नान करवाने के पश्चात झरने का जल उपस्थित जनसमूह पर छिडक़ा जाता है। इस धार्मिक क्रिया की समाप्ति के पश्चात मूर्ति और बर्तनों को धार्मिक रीति से मंदिर में ले जाकर पर्दे में रखा जाता है। केवल एक छोटी मूर्ति ही खुले आंगन में रखी जाती है। इसके पश्चात अन्य धार्मिक कर्मकाण्ड किए जाते हैं।
महासू देवता की प्रशंसा में गाते हैं बीसू गीत
ऊपरी क्षेत्रों में महासू देवता की याद में मनाया जाता है यह उत्सव
जब अंधेरा होने लगता है, भक्त मंदिर के आगे आग जलाते हैं और जलती हुई लकडिय़ां हाथों में लेकर ये मंदिर के चारों ओर नाचते हैं। ये महासू देवता की प्रशंसा में बीसू गीत भी गाते हैं। सारी रात देवदारू की शाखाओं से आग को जलाए रखा जाता है जिससे महासू का उज्जवल संदेश उसे मानने वाले गांवों में दूर-दूर तक फैल जाता है, जबकि स्त्री और पुरूष सारी रात मौज-मस्ती में गुजारते हैं और अपने नाच में सुप्रसिद्ध बिरसू गीत को पिरोते चलते हैं। यह आधी रात तक चलता है जिसके पश्चात दिन समाप्त समझा जाता है।
एक छोटी मूर्ति छोडक़र बाकि सभी मूर्तियां मंदिर में रखी जाती हैं पर्दे में
जगराता रखने वाले परिवार के और आस-पड़ोस या गांव के व्यक्ति सारी रात जागकर सम्बन्धित देवी-देवता का कीर्तन-गान करते हैं। मध्य भाग में महासू देवता के नाम जागरा रखा जाता है। अन्य देवी-देवताओं के नाम भी जागरे रखे जाते हैं। देवता को नहलाया जाता है और एक छोटी मूर्ति को छोडक़र बाकि सभी मूर्तियां मंदिर में पर्दे में रख दी जाती हैं। मंदिर के सामने आग जलाई जाती है जो सारी रात जलती रहती है और देवता की स्तुति के गाने गाए जाते हैं। महासू देवता की स्तुति में विड्स गान सामूहिक रूप में नृत्य करते हुए गाए जाते हैं।