कालयोगी आचार्य महिंदर कृष्ण शर्मा ने बताया कि 25 अगस्त को कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व अष्टमी और उनके जन्म नक्षत्र रोहिणी के पावन संयोग में इस बार वीरवार को मनाया जाएगा। इस दिन अष्टमी उदया तिथि में और मध्य रात्रि जन्मोत्सव के समय रोहिणी नक्षत्र का पवित्र संयोग बन रहा है। भादो माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर मनाया जाने वाला कृष्ण जन्म पर्व इस बार गुरुवार, 25 अगस्त को पड़ रहा है। ग्रहों के विशेष संयोग के साथ भगवान का जन्मोत्सव मनेगा।
कालयोगी आचार्य महिंदर कृष्ण शर्मा ने कहा कि 24 अगस्त, बुधवार की रात्रि 10.13 बजे से अष्टमी तिथि का आगमन हो रहा है। इस वजह से तिथि काल मानने वाले बुधवार को भी जन्मोत्सव मना सकते हैं, लेकिन गुरुवार को उदया काल की तिथि में व्रत जन्मोत्सव मनाना शास्त्रसम्मत रहेगा। अष्टमी तिथि 25 अगस्त को रात्रि 8.13 बजे तक रहेगी। इससे पूरे समय अष्टमी तिथि का प्रभाव रहेगा। इसके साथ ही मध्यरात्रि भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव के समय रोहिणी नक्षत्र का भी संयोग रहेगा। इससे कृष्ण जन्माष्टमी भगवान कृष्ण के जन्म के समय बनने वाले संयोगों के साथ विशेष फलदायी रहेगी। ऐसे रखें व्रत
कालयोगी आचार्य महिंदर कृष्ण शर्मा ने व्रत और पूजा के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि जन्माष्टमी का व्रत अगले
दिन सूर्योदय के बाद एक निश्चित समय पर तोड़ा जाता है जिसे जन्माष्टमी के पारण समय से जाना जाता है। यदि अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में से कोई भी सूर्यास्त तक समाप्त नहीं होता तब जन्माष्टमी का व्रत दिन के समय नहीं तोड़ा जा सकता। जन्माष्टमी के दिन सुबह से ही व्रत और पूजा करें। सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण या शिव मंदिर में पूजा करें। दुर्गाजी की पूजा करें। शाम में दीप जलाकर आरती करें। जन्माष्टमी उपवास के दौरान एकादशी उपवास के दौरान पालन किये जाने वाले सभी नियम पालन किये जाने चाहिये। जन्माष्टमी के व्रत के दौरान किसी भी प्रकार के अन्न का ग्रहण नहीं करना चाहिये।