- आजादी का सपना तब पूरा होगा, जब किसान होंगे खुशहाल
- विशेष लेख
- राधा मोहन सिंह
- केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री
बढ़ती आबादी, कुदरत की मार, वैज्ञानिक साधनों एवं कृषि अनुसंधानों के अभाव में अनाज उत्पादन इतना कम था कि हम विदेश से अनाज आयात करने को मजबूर थे। आगे चलकर 1960 के दशक में देश में गेहूं और धान जैसे फसलों को केंद्र में रखते हुए वैज्ञानिक उपायों और कृषि अनुसंधानों के जरिए हरित क्रांति का सूत्रपात हुआ, लेकिन इसका दायरा पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के पहले से ही उन्नत जिलों और दक्षिण-पूर्व के तटीय क्षेत्रों तक ही सीमित रहा। बीच के दशकों में तात्कालीन सरकारों द्वारा खेती के विकास और किसानों के कल्याण की बातें तो बहुत हुईं, यहां तक कि खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की बात भी हुई, लेकिन उस रफ्तार से काम नहीं किया गया, जिससे कृषि का तीव्र विकास हो, हमारे किसान खुशहाल हों, उनकी आमदनी बढ़े और देश खाद्य सुरक्षा को पूरा करने में समर्थ हो।
भारत की आत्मा गांवों में बसती है, जिसमें जान भरने और अपनी मेहनत से सींचने का काम हमारे किसान भाई करते रहे हैं। देश में कृषि के विकास पर नजर डालें तो आजादी के समय या उसके बाद के दशकों में कृषि की दशा के साथ-साथ खाद्य उत्पादन भी दयनीय अवस्था में था। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में केंद्रीय कृषि एवं किसान मंत्रालय अपने किसान भाइयों के जीवन को खुशहाल बनाने के लिए कई स्तरों पर प्रयास कर रहा है। जब तक किसानों की आमदनी नहीं बढ़ेगी, उन्हें उनके उत्पाद का बेहतर मूल्य नहीं मिलेगा, तब तक उनका जीवन खुशहाल नहीं हो सकता। प्रधानमंत्री ने लक्ष्य रखा है कि मार्च 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करना है। इस दिशा में तेजी से कदम बढ़ाए जा रहे हैं। इसके लिए कृषि, सहकारिता एवं किसान विभाग के अपर सचिव की अध्यक्षता में एक अंतर मंत्रालय समिति का गठन किया गया है। इस समिति ने खरीफ 2016 से अपना काम शुरू कर दिया है। वर्ष 2021-22 तक किसानों/कृषि मजदूरों की आमदनी कैसे दोगुनी हो सकती है और इसके लिए कितनी विकास दर आवश्यक होगी, लक्ष्य पूर्ति के लिए क्या रणनीति हो एवं इससे जुड़े अन्य मुद्दों पर समिति राय देगी। हमारे किसान भाइयों की आमदनी का प्रमुख जरिया खेती-बाड़ी ही है। बढ़ती जनसंख्या की जरूरतों को पूरा करने के लिए फसल का उत्पादन बढ़ाना जरूरी है। इसके लिए केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों में दूसरी हरित क्रांति का आगाज किया है। देश के सात राज्यों- असम, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ में दूसरी हरित क्रांति चलाई जा रही है। दूसरी हरित क्रांति सिर्फ अनाज, दलहन व तिलहन तक सीमित नहीं रहेगी। श्वेत क्रांति, नीली क्रांति में भी पूर्वी राज्यों में विकास और उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं। सरकार ने दलहन उत्पादन के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाया है, ताकि दलहन की आपूर्ति और खपत के बीच के अंतर को पाटा जा सके। कृषि पर दबाव कम हो और किसान भाइयों की आमदनी बढ़े, इसके लिए गौ पालन, मत्स्य पालन, मुर्गी पालन आदि को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।
केवल फसल उत्पादन बढ़े, इतना ही पर्याप्त नहीं है। हमारे किसान भाइयों को फायदा तभी होगा जब उत्पादन बढ़ने के साथ ही उत्पादन लागत कम रहे, उसे उसकी फसल का बेहतर मूल्य मिले, बाजार की सुविधा हो, किसान को सही समय पर खाद व बीज मिले, प्राकृतिक आपदा की स्थिति में राहत का प्रबंध हो और उन्हें फसल बीमा मिले। केंद्र सरकार ने किसानों के कल्याण के लिए कई योजनाएं बनाई हैं, जैसे कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, परंपरागत कृषि विकास योजना, कृषि वानिकी और नीम लेपित यूरिया, राष्ट्रीय कृषि बाजार, किसानों के लिए मोबाइल एप की शुरूआत, कृषि विज्ञान केंद्रों को मजबूत करना, केवीके पोर्टल की शुरूआत, कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान को बढ़ावा देना, मेरा गांव, मेरा गौरव योजना की शुरूआत, सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लिए दीन दयाल अंत्योदय मिशन, किसान की जरूरतों के अनुरूप स्टूडेंट रेडी कार्यक्रम शुरू करना आदि कदम उठाए गए हैं। इसके अलावा पशुपालन, डेयरी और चिकित्सा शिक्षा में बदलाव भी किए गये हैं। कृषि के अलावा बागवानी कृषि पर सरकार का पूरा जोर है। बागवानी कृषि हमारे किसान भाइयों की आमदनी बढ़ाने में काफी सहायक है।