सावन माह में पूजा-अर्चना से भगवान शिव होते हैं जल्दी प्रसन्न
सावन माह में शिव की आराधना और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिये व्रत का विशेष फलदायक
श्रावण मास विशेष रूप से भगवान शिव को समर्पित होता है। पौराणिक मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान जब हलाहल विष निकला, और सम्पूर्ण संसार संकट में आ गया, तो भगवान शिव ने उसे अपने कंठ में धारण कर लिया। यह घटना श्रावण मास में हुई थी, इसलिए इस महीने को शिव आराधना का श्रेष्ठ काल माना जाता है। श्रद्धालु इस महीने में सोमवार व्रत रखते हैं, रुद्राभिषेक करते हैं, महामृत्युंजय मंत्र, रुद्राष्टक और शिव चालीसा का पाठ करते हैं। विशेष रूप से स्त्रियों व कुंवारी कन्याओं के लिए इस मास में की गई शिव पूजा मनोवांछित वर, सौभाग्य और पारिवारिक सुख प्रदान करने वाला माना जाता है।
श्रावण मास से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया। इस मंथन में 14 रत्न निकले, जिनमें एक भयंकर विष भी था जिसे “हालाहल” कहा गया। इस विष की ज्वाला इतनी तीव्र थी कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड में त्राहि-त्राहि मच गई।तब सभी देवता और असुर भगवान महादेव (शिवजी) के पास पहुंचे और उनसे इस संकट से उबारने की प्रार्थना की। तब भगवान शिव ने उस महान विष (हलाहल) का पान किया।
भगवान शिव ने करुणा वश उस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया, ताकि वह संसार को नष्ट न कर दे। विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला हो गया और वे “नीलकंठ” कहलाए। विष के प्रभाव से उनके शरीर में भयंकर गर्मी उत्पन्न हुई, जिसे शांत करने के लिए देवताओं ने गंगाजल से उनका अभिषेक किया।यह घटना वर्षा ऋतु के श्रावण मास में हुई थी, और तभी से श्रावण मास में भगवान शिव का जलाभिषेक करना अति शुभ और फलदायक माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि इस महीने में जल अर्पित करने से भगवान शिव जल्दी प्रसन्न होते हैं और भक्तों को मनोवांछित फल देते हैं। श्रावण माह (सावन मास) से जुड़ी अन्य मान्यताएं इस प्रकार हैं। इस मास में शिवभक्त नदियों से गंगाजल लाकर कांवड़ में भरकर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं।
सावन माह के पहले सोमवार के दिन 14 जुलाई को धनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्र रहेगा, आयुष्मान और सौभाग्य योग रहेगा। इस दिन गजानन संकष्टी चतुर्थी रहेगी इस समय भगवान शिव का पूजन भक्तों को शुभता देने वाला होगा।
सावन माह के पहले सोमवार के दिन 14 जुलाई को धनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्र रहेगा, आयुष्मान और सौभाग्य योग रहेगा। इस दिन गजानन संकष्टी चतुर्थी रहेगी इस समय भगवान शिव का पूजन भक्तों को शुभता देने वाला होगा।
सावन सोमवार की तिथियां
इस बार सावन में कुल 4 सोमवार आएंगे-
पहला सोमवार: 14 जुलाई
दूसरा सोमवार: 21 जुलाई
तीसरा सोमवार: 28 जुलाई
चौथा सोमवार: 4 अगस्त
इस तरह करें व्रत का पालन : आचार्य महेंद्र कृष्ण शर्मा
आचार्य महेंद्र कृष्ण शर्मा बताते हैं कि सावन महीने में किए गए व्रत अत्यंत फलदायी होते हैं और यदि इन व्रतों को नियम से किया जाए तो निश्चय ही शुभ फल प्राप्त होते हैं। उन्होंने बताया कि किस तरह से सावन महीने में सोमवार के व्रत का पालन किया जाना चाहिए और पूजा करनी चाहिए। सबस पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठें और पूरे घर की सफाई कर स्नानादि से निवृत्त हो जाएं। उसके उपरान्त गंगा जल या पवित्र जल पूरे घर में छिड़कें। घर में ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। पूजन सामग्री में जल, दूध, दही, चीनी, घी, शहद, पंचामृ्त, मोली, वस्त्र, जनेऊ, चन्दन, रोली, चावल, फूल, बेल-पत्र, भांग, आक-धतूरा, कमल,गठ्टा, प्रसाद, पान-सुपारी, लौंग, इलायची, मेवा, दक्षिणा चढ़ाया जाता है।
शिव पूजा के बाद सोमवार व्रत की कथा सुननी आवश्यक
सावन सोमवार व्रत सूर्योदय से प्रारंभ कर तीसरे पहर तक किया जाता है। शिव पूजा के बाद सोमवार व्रत की कथा सुननी आवश्यक है। सावन महीने में सोमवार के दिन भगवान शिवजी का व्रत करना चाहिए और व्रत के बाद भगवान श्री गणेश जी, भगवान शिवजी, माता पार्वती व नन्दी देव की पूजा करनी चाहिए। सावन में सोमवार का व्रत करने वाले को दिन में एक बार भोजन करना चाहिए।
चार मास तक भगवान शिव ही इस सृष्टि के पालनकर्ता रहते हैं
शास्त्रों के अनुसार श्रावण माह शुरु होने से पहले ही देवशयनी एकादशी को भगवान विष्णु चार महीने के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसलिए यह समय भक्तों, साधु-संतों के लिए अमूल्य होता है। यह चार महीनों में होने वाला एक वैदिक यज्ञ है, जो एक प्रकार का पौराणिक व्रत है जिसे चातुर्मास कहा जाता है। इस चार मास तक भगवान शिव ही इस सृष्टि के पालनकर्ता रहते हैं। इस दौरान वह ही भगवान विष्णु के भी कामों को भी देखते हैं। ऐसे में चार माह तक त्रिदेवों की सारी शक्तियां भगवान शिव के पास ही रहती हैं।
सावन के सोमवार की पौराणिक मान्यता
सावन के सोमवार के व्रत के विषय में पौराणिक मान्यता है कि सबसे पहले इस व्रत को माता पार्वती ने पति रूप में भगवान
शिव को प्राप्त करने के लिये किया था। इस व्रत के फलस्वरूप ही उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया था। तभी से इस व्रत को मनोवांछित पति की कामना पूर्ति के लिये भी कन्याओं के द्वारा किया जाता है। इसलिए सोमवार के व्रत का शिव की आराधना और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिये विशेष महत्व है।
यह व्रत स्त्री और पुरूष दोनों रख सकते हैं। सौभाग्यवती स्त्रियां जहां अपने पति की लम्बी आयु, संतान रक्षा के साथ-साथ अपने भाई की सुख-सम्रद्धि के लिये यह व्रत करती हैं, वहीं पुरूष लोग इस व्रत का पालन संतान, धन-धान्य और प्रतिष्ठा के लिए करते हैं।
सावन के व्रत रखने से विद्यार्थी के ज्ञान में होती है वृद्धि
सोमवार व्रत का नियमित रूप से पालन करने से भगवान शिव और देवी पार्वती की अनुकम्पा बनी रहती है। जीवन धन-धान्य से भरा रहता है और व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है। सावन सोमवार व्रत का विद्यार्थी के लिए विशेष महत्व है। इस व्रत को रखने से विद्यार्थी के ज्ञान में वृद्धि होती हैं।
सावन में शिवशंकर की पूजा
सावन के महीने में भगवान शंकर की विशेष रूप से पूजा की जाती है। इस दौरान पूजन की शुरूआत महादेव के अभिषेक के साथ की जाती है। अभिषेक में महादेव को जल, दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, गंगाजल, गन्ना रस आदि से स्नान कराया जाता है। अभिषेक के बाद बेलपत्र, समीपत्र, दूब, कुशा, कमल, नीलकमल, ऑक मदार, जंवाफूल कनेर, राई फूल आदि से शिवजी को प्रसन्न किया जाता है। इसके साथ की भोग के रूप में धतूरा, भाँग और श्रीफल महादेव को चढ़ाया जाता है।
एक हजार नीलकमल के बराबर एक बेलपत्र
भगवान शिव को भक्त प्रसन्न करने के लिए बेलपत्र और समीपत्र चढ़ाते हैं। इस संबंध में एक पौराणिक कथा के अनुसार जब
89 हजार ऋषियों ने महादेव को प्रसन्न करने की विधि परम पिता ब्रह्मा से पूछी तो ब्रह्मदेव ने बताया कि महादेव सौ कमल चढ़ाने से जितने प्रसन्न होते हैं, उतना ही एक नीलकमल चढ़ाने पर होते हैं। ऐसे ही एक हजार नीलकमल के बराबर एक बेलपत्र और एक हजार बेलपत्र चढ़ाने के फल के बराबर एक समीपत्र का महत्व होता है।
बेलपत्र ने दिलाया वरदान
बेलपत्र महादेव को प्रसन्न करने का सुलभ माध्यम है। बेलपत्र के महत्व में एक पौराणिक कथा के अनुसार एक भील डाकू परिवार का पालन-पोषण करने के लिए लोगों को लूटा करता था। सावन महीने में एक दिन डाकू जंगल में राहगीरों को लूटने के इरादे से गया। एक पूरा दिन-रात बीत जाने के बाद भी कोई शिकार नहीं मिलने से डाकू काफी परेशान हो गया। इस दौरान डाकू जिस पेड़ पर छुपकर बैठा था, वह बेल का पेड़ था और परेशान डाकू पेड़ से पत्तों को तोड़कर नीचे फेंक रहा था। डाकू के सामने अचानक महादेव प्रकट हुए और वरदान माँगने को कहा। अचानक हुई शिव कृपा जानने पर डाकू को पता चला कि जहाँ वह बेल पत्र फेंक रहा था उसके नीचे शिवलिंग स्थापित है। इसके बाद से बेलपत्र का महत्व और बढ़ गया।
पूजन विधि और व्रत का महत्व
सावन में शिवभक्त प्रायः पूरे माह या कम से कम हर सोमवार उपवास रखते हैं। प्रतिदिन शिवलिंग पर जल और बेलपत्र अर्पित कर ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करें। सावन में रुद्राक्ष धारण करना भी शुभ माना गया है। पूजा के दौरान शिवलिंग पर दूध कम मात्रा में अर्पित करने की सलाह दी जाती है। सावन माह में भगवान शिव के अलावा माता पार्वती की पूजा भी की जाती है। इस दौरान हर मंगलवार को मंगला गौरी व्रत रखा जाता है। कई भक्त सावन के पहले सोमवार से 16 सोमवार का व्रत भी आरंभ करते हैं।
शिवजी के प्रिय मंत्र और भोग
भगवान शिव का प्रिय मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ है। महामृत्युंजय मंत्र का जाप भी अत्यंत फलदायी माना जाता है। शिव को खीर, मालपुआ, ठंडाई, सफेद मिठाइयाँ, पंचामृत और फल अर्पित करें।