सीबीएसई ने आयोजित की ‘कला एकीकरण’ पर दयानन्द पब्लिक स्कूल शिमला में एक दिवसीय कार्यशाला

शिमला: सीबीएसई ‘उत्कृष्टता का केंद्र’ पंचकुला द्वारा दयानन्द पब्लिक स्कूल शिमला में ‘कला एकीकरण’ पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कला जीवन का एक अहम हिस्सा है जो हमें सीखने और बढ़ने में मदद करता है। “कला एकीकरण शिक्षण का एक दृष्टिकोण है जिसमें छात्र एक कला रूप के माध्यम से समझ का निर्माण और प्रदर्शन करते हैं। छात्र एक रचनात्मक प्रक्रिया में संलग्न होते हैं जो एक कला रूप और दूसरे विषय क्षेत्र को जोड़ती है और दोनों में विकसित उद्देश्यों को पूरा करती है।” कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य शिक्षकों को विभिन्न कला रूपों, जैसे कि संगीत, दृश्य कला, नृत्य और रंगमंच, का उपयोग करके सभी विषयों को सिखाने के तरीके सिखाना था । कार्यशाला में विद्यालय प्रधानाचार्या श्री मती अनुपम और  मती उर्वशी भाटिया और डॉ उपासना वशिष्ठ बतौर संसाधन व्यक्ति के रूप में उपस्थित रहीं। कार्यशाला का प्रारम्भ दीप प्रज्वलित और डी ए वी गान से किया गया। संसाधन व्यक्तियों को पुष्प देकर सम्मानित किया गया। प्रधानाचार्या ने सभी उपस्थित अतिथियों व प्रतिभागियों का स्वागत किया और विषय की संक्षिप्त जानकारी व स्पष्टता करते हुए कहा कि कला के माध्यम से सीखना अधिक आकर्षक और मजेदार हो सकता है, जिससे छात्रों को सीखने में रुचि उत्पन्न होती है। इससे छात्रों को अपनी रचनात्मकता, कल्पना, और आलोचनात्मक सोच को विकसित करने का अवसर मिलता है। तत्पश्चात डॉ उपासना वाशिष्ठ द्वारा कार्यशाला का प्रारम्भ योग क्रिया, ॐ के महत्व व छात्रों को कक्षा में उत्साहित रखने के महत्व पर विचार प्रस्तुत किए गए। कार्यशाला को चार सत्रों में आबंटित किया गया। प्रथम सत्र में उर्वशी भाटिया ने ‘कला एकीकरण’ के महत्व पर प्रकाश डाला गया। विभिन्न गतिविधियों शारीरिक क्रियाआओं, नृत्य, संगीत के माध्यम से विषय को स्पष्ट किया गया।

विभिन्न विषयों को किस प्रकार कला के साथ जोड़ जा सकता, उसे प्रयोगात्मक ढंग समझाया गया । शिक्षा का मुख्य उद्देश्य छात्रों का सर्वांगीण विकास और कक्षा को खुशनुमा बनाए रखना है, अतः अध्यापक को निरन्तर यह प्रयास करना चाहिए कि कक्षा का हर छात्र शिक्षण में रुचि ले। प्रतिभागियों ने प्रत्येक गतिविधि में बढ़चढ़ कर भाग लिया। दूसरे सत्र में डॉ उपासना वाशिष्ठ ऋग्वेद मंत्रों से प्रारम्भ किया गया, संस्कार, नैतिक मूल्यों की उपयोगिता पर विचार प्रस्तुत किए गए। शब्दों के महत्त्व व भावनात्मक, सृजनात्मक ढंग से शिक्षण हेतु प्रेरित किया गया। गीत के माध्यम से पढ़ाई को मनोरंजक कैसे बनाया जाए, इसके सूक्ष्म सूत्रों से प्रतिभागियों को अवगत कराया गया। भाषा के चारों कौशलों, गानों, सुरताल, सरगम का कक्षा शिक्षण में महत्व को समझाया गया। कला शिक्षण में तीन ‘H’ Heart, Head, Hand का समावेश किया जाना चाहिए। मातृभाषा हिन्दी का शिक्षण में अनिवार्यता को बताया गया । प्रतिभागियों से विभिन्न गतिविधियों को करवाया गया, जिसमें सभी ने उत्साहित मन से सहभागिता दी। कक्षा में छात्रों को तनाव मुक्त, आनंददायक वातावरण ‘कला एकीकरण’ द्वारा बनाया जा सकता है। अध्यापकों ने कार्यशाला में ज्ञानवर्धन किया और अनेक नवाचार गतिविधियों का आंनद लिया। कार्यशाला के अंत में प्रधानाचार्या अनुपम द्वारा संसाधन व्यक्तियों का धन्यवाद किया गया तथा सभी प्रतिभागियों को कार्यशाला से प्राप्त ज्ञान को कक्षा कक्ष तक पँहुचने के लिए प्रेरित किया गया। प्रतिभागियों द्वारा कार्यशाला की प्रतिपुष्टि और शान्ति पाठ के साथ कार्यशाला को विराम दिया गया।

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