हिमाचल: जिला मण्डी की वो पुरानी खूबसूरत… “चौकियां”

पुराने समय में ये “चौकियां” खूबसूरत मिट्टी का बना हुआ कच्चा घर हुआ करतीं थीं

जिला मण्डी की “चौकियां” जी हां इस बार हम अपने कॉलम में आपको जिला मण्डी की चौकियों बारे में जानकारी देने जा रहे हैं। हिमाचल प्रदेश के जाने-माने मण्डी जिला जिसे काशी की नगरी से भी जाना जाता है। यहाँ की “मण्डी की चौकियों’ का इतिहास भी सदियों पुराना है जिसे आज भी मण्डी शहर के लोग संजोये हुए हैं। “चौकी” यानी एक परिवार का ऐसा घर जहां छोटे से लेकर बड़े तक सब परिवार के सदस्य साथ रहते हैं। पुराने समय में ये “चौकियां” खूबसूरत मिट्टी का बना हुआ कच्चा घर हुआ करतीं थीं। जिसमें  मिट्टी की चिनाई हुई होती थी और लकड़ी के सुंदर खिड़कियां दरवाजे और चौकियां चारों ओर बनी होती थी। जहां पूरा परिवार मिलजुल कर रहता और हर सुख दुख में परिवार के लोग एक दूसरे के साथ खड़े रहते थे। हालांकि वक्त के साथ-साथ अब काफी हद तक चौकियां काफी बदल गई हैं। लेकिन पुराने समय की चौकियों की खूबसूरती कुछ जगहों में आज भी बरकरार है।

“चौकियां” यानि घर के भीतर अलग-अलग नहीं अपितु परिवार के सब लोग जहाँ साथ रहते हैं

“चौकियां” के भीतर घर का एक मुख्य दरवाजा जिसके अंदर खूबसूरत पत्थरों से बना हुआ खुला आंगन। घर के मध्य में तुलसी का पौधा लगा हुआ। घर के अंदर ही इष्ट देवी-देवता की प्रतिमा भी स्थापित की जाती है  है जिसमें देवी-देवता की प्रतिदिन पूजा की जाती है और हर महीने की साज में दरवाजों की भी पूजा की जाती है।

“चौकियां” यानि घर के भीतर अलग नहीं अपितु परिवार के सब लोग जहाँ साथ रहते हैं। पूरा परिवार साथ मिलकर खाना खाना, खेतों में काम करने के लिए सब लोग मिलजुल कर हाथ बटाना और पशुओं की देखरेख से लेकर घर के हर छोटे बड़े काम में परिवार मिलकर सहयोग करना शामिल है। 

अब मकान पक्के बन गये हैं परिवार छोटे हो गये – युद्ववीर सिंह ठाकुर

मण्डी के सनयारडी के रहने वाले युद्ववीर सिंह ठाकुर ने हमें बताया कि पुराने समय में कच्चे घर हुआ करते थे लेकिन अब सीमेंट वाले घरों ने जगह ले ली है पहले घर के आंगन में पत्थर भी बहुत सुंदर घडकर बनाए हुए होते थे। लेकिन अब बदलाव की एक लकीर खींच गई है। पहले मिट्टी की बनी हुई चौकियों में बहुत से परिवार साथ रहते थे। अब मकान पक्के बन गये हैं परिवार छोटे हो गये हैं। 

 उन्होंने बताया कि गांव में रहने वाले बुजुर्ग आज भी उन यादों को और धरोहर को संजोये  हुए हैं। परिवार दवारा बनाई पुश्तेनी चौकी की वे स्वंय भी खुद देखभाल करते हैं। बच्चे बाहर चले गए हों या फिर अपने ही गाँव में अलग मकान बना लिए हों, लेकिन “चौकियों” में आज भी उनकी सुनहरी यादें बसती हैं। भले ही मण्डी में अब नई चौकियाँ नहीं बनाई जातीं। लेकिन कुछ लोगों ने पुरानी बनी चौकियां पक्की कर दी हैं।

उन्होंने बताया कि उनकी पुश्स्तेनी चौकी जिसमें उनकी यादें बसीं हैं आज भी उसकी समय-समय पर लिपाई करवाते रहते हैं । इष्ट देवी की उसी कमरे में पूजा करते हैं। दादा-दादी, माता-पिता, भाई-बहन, परिवार बच्चों की चौकी से जुडी पुरानी यादें हैं। यहाँ आकर उनकी पुरानी मधुर स्मृतियां तरोताजा हो जाती हैं।

अपनी परंपरा, रीति रिवाज और धरोहर को आज भी कायम और संभाले रखना आज भी जरूरी

चौकियां जिला मण्डी की खूबसूरती रही हैं लेकिन घर की एकता के साथ सुनहरी यादें लोग आज भी संजोये हुए हैं। आज के दौर में लोग काम के सिलसिले में गाँव से दूर शहरों, विदेशों में जाकर रहने लगे हैं। पुराने घरों यानि चौकियों की देखरेख बड़े बुजुर्ग तो कर रहे हैं लेकिन जहाँ बड़े बुजुर्ग नहीं रहे हैं वहां चौकियां ढहने के कगार पर हैं। क्योंकि उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। “चौकियां” हमारे प्रदेश के मण्डी जिले की शान हैं। हमारे वर्षों पुराने इतिहास की ये अनमोल धरोहर रही है। भले ही आज परिवार छोटे  हो गए हैं काम की वजह से शहर में लोग बस गए हैं। लेकिन ये कहना गलत नहीं होगा कि “चौकियां” खुशी गम, दुःख सुख, हर उतार-चढ़ाव में परिवार के लोगों के साथ रहने की मजबूत कड़ी रही है। बदलते वक्त ने बहुत कुछ बदल दिया लेकिन आज भी कुछ लोग अपने घर की मिट्टी से जुड़े हुए हैं। पुराने समय में बड़े परिवार होने की वजह से लोग अपने सुख-दुख परिवार के साथ मिल बैठकर बांट लिया करते थे। भले ही लोग शहरों में बस गए हैं लेकिन अपनी परंपरा, रीति रिवाज और धरोहर को आज भी कायम और संभाले रखना आज भी जरूरी है।

सम्बंधित समाचार

Comments are closed