प्लास्टिक के खतरे से निपटने के लिए भारत को एकजुट प्रयास की जरूरत – संजय कुमार

नई दिल्ली:  भारत समाज के सभी वर्गों के संयुक्त प्रयासों से ही प्लास्टिक प्रदूषण के खतरे से प्रभावी ढंग से निपट सकता है, संजय कुमार, महानिदेशक, डीएमईओ और सर्कुलर इकोनॉमी मिशन, नीति आयोग के प्रमुख ने एक गैर सरकारी संस्था, भारत सोका गाक्काई (बीएसजी) के ‘प्लास्टिक को ना कहें’ अभियान के लॉन्च समारोह में बोलते हुए कहा, उनके अनुसार: “प्लास्टिक के खतरे से निपटने के लिए, जनसाधारण, उद्योगों और सरकारों को एक साथ मिल कर काम करना चाहिए। इस दिशा में प्लास्टिक का उपयोग कम करना, इसकी रिसाइक्लिंग करना और टिकाऊ विकल्पो को बढ़ावा देना अन्यंत महत्वपूर्ण कदम है।”

बीएसजी ने अपनी ‘प्लास्टिक को ना कहें’ पहल के हिस्से के रूप में ‘बीएसजी 25-टन प्लास्टिक कलेक्शन ड्राइव’ लॉन्च किया है। इस पहल का उद्देश्य स्थायी मानव व्यवहार और पुनर्चक्रण को प्रोत्साहित करके प्लास्टिक प्रदूषण से निपटना है।

3 अक्टूबर से 9 अक्टूबर तक, दिल्ली-एनसीआर में बीएसजी सदस्य निर्धारित केंद्रों पर प्लास्टिक कचरा जमा करेंगे। इन केंद्रों में, एकत्रित प्लास्टिक कचरे को उचित रिसाइक्लिंग के लिए भेजा जायेगा। भारत सोका गाक्काई के अध्यक्ष श्री विशेष गुप्ता ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा इस अभियान का लक्ष्य न केवल जागरूकता बढ़ाना है, बल्कि सतत एवं स्थायी मानव व्यवहार को प्रेरित करना और बढ़ावा देना है। ऐसा करने से प्लास्टिक की खपत में कमी आएगी और हमारे क्षेत्रीय भरावों (लैंडफिल) में इस प्रकार का कचरा कम से कम पहुँचेगा।

‘बीएसजी 25-टन प्लास्टिक कलेक्शन ड्राइव’ का एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य है: इस महीने 25,000 किलोग्राम प्लास्टिक कचरे को एकत्रित करना और उसे बड़ी जिम्मेदारी से रिसाइक्लिंग के लिए भेजना।

इस प्रयास का उद्देश्य सिर्फ ऐसे कचरे का निपटान करना ही नहीं है , बल्कि समाज में ऐसे बदलाव को प्रेरित करना है, जिससे जन साधारण में व्यापक रुप से जागरुकता आए और वे इसके प्रति अपनी जिम्मेदारी समझे। 2019 में, भारत ने 660,000 टन से अधिक प्लास्टिक कचरा उत्पन्न किया और इसमें से केवल 60 प्रतिशत का पुनर्चक्रण किया गया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इसका लगभग 43 प्रतिशत भाग पैकेजिंग सामग्री था, जिनमें ज्यादातर एकल-उपयोग प्लास्टिक थे।

माउंट एवरेस्ट की चोटियों से लेकर प्रशांत महासागर की गहराई तक, दुनिया के सबसे सुदूर हिस्सों में भी प्लास्टिक कचरा मौजूद है। यह समस्या की विकटता को प्रकट करता है। इस मुददे की गंभीरता को देखते हुए इस साल की शुरुआत में ,लगभग 170 देशों के प्रतिनिधियों ने विचार-विमर्श कर एक संधि तैयार करने पर अपनी सहमति प्रकट की।

आर्थिक सहयोग और विकास संगठन की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में प्लास्टिक कचरा 2060 तक लगभग तीन गुना होने का अनुमान है, जिसमें से लगभग आधा लैंडफिल में समाप्त हो जाएगा और 20 प्रतिशत से भी कम रिसाइक्लिंग के लिए निर्धारित किया जाएगा।

3 अक्टूबर 2023 को नई दिल्ली के चिन्मय मिशन ऑडिटोरियम में आयोजित बीएसजी के लॉन्च कार्यक्रम में प्रख्यात वक्ताओं ने प्लास्टिक प्रदूषण की वैश्विक चुनौती से निपटने में स्थानीय समाधानों के महत्व पर बल दिया।

इंटरनेशनल काउंसिल फॉर सर्कुलर इकोनॉमी (आईसीसीई) की संस्थापक और एमडी सुश्री शालिनी गोयल भल्ला ने प्लास्टिक प्रदूषण के प्रबंधन में अग्रणी भूमिका निभाने की भारत की क्षमता पर प्रकाश डाला। अपनी बात पर बल देते हुए उन्होंने कहा, “भारत रिवर्स सप्लाई चेन तंत्र, नवीन रिसाइक्लिंग विधियों, एकल-उपयोग प्लास्टिक को कम करने और पर्यावरण शिक्षा को बढ़ावा देने के माध्यम से प्लास्टिक प्रदूषण के प्रबंधन में नेतृत्व प्रदान कर सकता है।”

पर्यावरणविद और व्यापक रूप से भारत के पॉन्डमैन के रूप में पहचाने जाने वाले श्री रामवीर तंवर ने बीएसजी की प्रतिबद्धता की सराहना करते हुए कहा, “जल निकाय बहाली और लैंडफिल पुनर्वनीकरण से सम्बद्ध व्यक्ति के रूप में, मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि प्लास्टिक अपशिष्ट प्रदूषण पृथ्वी के लिए सबसे बड़ा खतरा है। दृष्टिकोण बदलने और स्थिरता अपनाने के लिए सामुदायिक जागरूकता नितांत आवश्यक है। भारत सोका गाक्काई को उनके प्रयासों के लिए बधाई। ‘से अर्थ’ भविष्य के प्रयासों में सहयोग करने के लिए उत्सुक हैं।”

डॉ. रूबी मखीजा, संस्थापक-व्हाई वेस्ट वेडनसडेज़ फाउंडेशन और सदस्य, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिए सिटी लेवल टास्क फोर्स, एमसीडी ने स्थिरता का समर्थन करते हुए कहा, “परिवर्तन को अपनाएं, स्थिरता को बढ़ावा दें। हमारा जीवन प्रकृति के साथ सामंजस्य चाहता है। प्रत्येक चुनाव के साथ, हम पर्यावरण की नियति को आकार देते हैं, प्लास्टिक के साथ अपने रिश्ते को फिर से परिभाषित करते हैं। आइए इको-विकल्पों का समर्थन करें और एक समय में एक सोचे समझे कदम द्वारा एकल-उपयोग प्लास्टिक पर रोक लगाएं।”

व्यवहारिक चर्चाओं के अतिरिक्त, बीएसजी ने ‘सीड्स ऑफ होप एण्ड एक्शन : मेकिंग द एसडजीस ए रिएल्टी’ नामक एक स्थिरता प्रदर्शनी का आयोजन भी किया गया। इस प्रदर्शनी में अधिक टिकाऊ दुनिया के लिए सतत एवं स्थायी मानव व्यवहार को अपनाने के महत्व पर प्रकाश डाला गया है।

सम्बंधित समाचार

Comments are closed