राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (National Rural Health Mission / एनआरएचएम) भारत सरकार की एक योजना है जिसका उद्देश्य देश भर में ग्रामीण परिवारों को बहुमूल्य स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना है। यह वर्तमान स्वास्थ्य योजनाओं को और जन स्वास्थ्य की अवस्था को सुधारने के लिए एक सरकारी योजना है, जो अप्रैल 2005 में लागू हुई है। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन देश के हर राज्य में लागू हुआ है। 18 राज्यों पर विशेष ध्यान दिया जायेगा, जिसमें स्वास्थ्य सुविधाएं कमज़ोर हैं और स्वास्थ्य की अवस्था भी ठीक नहीं है। इसका ध्यान विशेषकर हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, जम्मू और कश्मीर, मणिपुर, मिज़ोरम, मेघालय, मध्य प्रदेश, नागालैंड, उड़ीसा, राजस्थान, सिक्किम, त्रिपुरा, उत्तराखंड, और उत्तर प्रदेश, इन 18 राज्यों पर है।
मुख्य उद्देश्य
- ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधार कर ऐसा रूप देना जिससे कि सबके लिए प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएं प्राप्त हो।
- स्वास्थ्य सेवाएं उत्तम किस्म की हों।
- हर नागरिक के पहुंच के भीतर हों।
- लोगों की जरूरतों के मुताबिक हों जवाबदेह हों।
लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाना – विशेष रूप से बाल मृत्यु दर और मातृ दर को घटाना। इसके लिए केवल स्वास्थ्य सेवाओं की ही नहीं, साथ में अन्य जरूरतों जैसे -पीने का पानी, सफाई व शौचालय, टीकाकरण और पर्याप्त पोषण का भी प्रबंध करना।
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के मुख्य उद्देश्य हैं
- शिशु मृत्युदर और मातृत्व मृत्युदर में कमी लाना
- प्रत्येक नागरिक को लोक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच सुलभ कराना
- संचारी और असंचारी रोगों की रोकथाम व नियंत्रण
- जनसंख्या नियंत्रण के साथ-साथ लिंग व जन सांख्यिकीय संतुलन सुनिश्चित करना
- स्वस्थ जीवनचर्या और आयुष के माध्यम से वैकल्पिक औषधी पद्धतियों को प्रोत्साहित करना
इस मिशन का उद्देश्य पंचायती राज संस्थानों का सुदृढ़ीकरण करके और प्राधिकृत महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा) के माध्यम से उच्चीकृत स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच को बढ़ावा देकर अपने उद्देश्य को प्राप्त करना है। इसके द्वारा वर्तमान प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और ज़िला स्वास्थ्य मिशनों को सुदृढ़ बनाने और गैर सरकारी संगठनों का अधिकतम उपयोग करने की योजना है।
मुख्य कार्यनीति इस प्रकार है
मिशन के अंतर्गत किये जाने वाले कार्य
- स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च में बढ़ोतरी।
- स्वास्थ्य सेवाओं के ढांचा का सुधार, ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों को मजबूत बनाना।
- देशी/ परंपरागत आरोग्य प्रणालियों को बढ़ावा देना, उन्हें स्वास्थ्य सेवाओं का मुख्य अंग बनाना।
- निजी स्वास्थ्य क्षेत्र का नियमीकरण, इसके लिए मापदंड और अधिनियम बनाना।
- निजी स्वास्थ्य क्षेत्र के साथ साझेदारी बनाना।
- लोगों को इलाज प्राप्त करने के लिए जो खर्च करना पड़ता है, उसके लिए उचित बीमा-योजनाओं का प्रबंध करना।
- ज़िला कार्यक्रमों का विकेंद्रीकरण करना ताकि ये ज़िला स्तर पर चलाये जा सकें।
- स्वास्थ्य के प्रबंधन में पंचायती राज संस्थाओं / समुदाय की भागीदारी को बढ़ाना।
- स्मयबद्ध लक्ष्य और कार्य की प्रगति पर जनता के सामने रिपोर्ट पेश करना।
विशेष केन्द्रित राज्य
विशेष केन्द्रित राज्यों में हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असोम, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, जम्मू कश्मीर, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, मध्य प्रदेश, नागालैण्ड, उड़ीसा, राजस्थान, सिक्किम, त्रिपुरा, उत्तराखंड एवं उत्तर प्रदेश शामिल हैं।
लक्ष्य
- बाल मृत्यु दर एवं मातृत्व मृत्यु दर में कमी लाना।
- महिला स्वास्थ्य, बाल स्वास्थ्य, जल, शौचालय व स्वच्छता, प्रतिरक्षण एवं पोषाहार जैसे सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं तक सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करना।
- स्थानीय स्थानिक बीमारी के साथ संचरणीय एवं गैर संचरणीय बीमारी की रोकथाम एवं नियंत्रण।
- एकीकृत वृहद् प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधा को सुलभ बनाना।
- जनसंख्या स्थिरीकरण एवं लैंगिक तथा जनसांख्यिकी संतुलन।
- स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं मुख्यधारा आयुष को पुनर्जीवित करना।
- स्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा देना।
ग्रामीण क्षेत्रों में जननी सुरक्षा योजना कार्यक्रम
भारत सरकार द्वारा जननी सुरक्षा योजना का शुभारंभ सुरक्षित मातृत्व व सुरक्षित जन्म के परिणाम को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत गठित प्रजनन व शिशु सुरक्षाप्रकल्प-2 के अंतर्गत किया गया है। इस योजना के तहत, गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाली गर्भवती महिला को, उसके द्वारा सरकारी अस्पताल अथवा जन स्वास्थ्य केन्द्र में प्रसूति करवाने पर 700 रुपये देय होंगे। इस योजना का मुख्य लक्ष्य है, ग्रामीण क्षेत्रों में सुरक्षित संस्थान में प्रसूति करवाना। इसके अंतर्गत गर्भवती महिला उसके साथ एक या दो परिवार के सदस्य, इन सभी का आवागमन, उसके साथ दो से तीन दिन रहना, इस दौरान उनका भोजन, मज़दूरी का नुकसान आदि पूरा करने का ध्यान रखा जाता है।
जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत प्रजनन एवं शिशु स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत माता एवं शिशु की मृत्यु दर को घटाना प्रमुख लक्ष्य रहा है। इस मिशन के अंतर्गत स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने कई नए कदम उठाये हैं जिनमें जननी सुरक्षा योजना भी शामिल है। इसकी वजह से संस्थागत प्रजनन में काफी वृद्धि हुई है और इसके तहत हर साल एक करोड़ से अधिक महिलाएं लाभ उठा रही हैं। जननी सुरक्षा योजना की शुरूआत संस्थागत प्रजनन को बढ़ावा देने के लिए की गई थी जिससे शिशु जन्म प्रशिक्षित दाई/नर्स/डाक्टरों द्वारा कराया जा सके तथा माता एवं नवजात शिशुओं को गर्भ से संबंधित जटिलताओं एवं मृत्यु से बचाया जा सके। यद्पि, संस्थागत शिशु जन्म में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। फिर भी गर्भवती महिलाओं तथा उनके परिवार को काफी खर्चा करना पड़ता है। इसके कारण गर्भवती महिलाएं संस्थागत प्रजनन को बाधा के रूप में लेती है। वे घर में प्रजनन कराने को वरियता देती है। इस कारण से अधिकतर रूग्ण नवजात शिशुओं को स्वास्थ्य की सुविधाएं न मिलने के कारण मृत्यु हो जाती हैं।
इस समस्या का निवारण करने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने (जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम) एक जून 2011 को गर्भवती महिलाओं तथा रूग्ण नवजात शिशुओं को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने के लिए शुरू किया था। इस योजना के अंतर्गत मुफ्त सेवा प्रदान करने पर बल दिया गया है। इसमें गर्भवती महिलाओं तथा रूग्ण नवजात शिशुओं को खर्चों से मुक्त रखा गया है। इस योजना के तहत, गर्भवती महिलाएं को मुफ्त दवाएं एवं खाद्य, मुफ्त इलाज, जरूरत पड़ने पर मुफ्त खून दिया जाना, सामान्य प्रजनन के मामले में तीन दिनों एवं सी-सेक्शन के मामले में सात दिनों तक मुफ्त पोषाहार दिया जाता है। इसमें घर से केंद्र जाने एवं वापसी के लिए मुफ्त यातायात सुविधा प्रदान की जाती है। इसी प्रकार की सुविधा सभी बीमार नवजात शिशुओं के लिए दी जाती है। इस कार्यक्रम के तहत ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में हर साल लगभग एक करोड़ से अधिक गर्भवती महिलाओं एवं नवजात शिशुओं को योजना का लाभ मिला है।
भारत में मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने में अत्यधिक प्रगति की गई है, जिसमें और सुधार किए जाने की आवश्यकता है। वर्ष 2005 में शुरू की गई जननी सुरक्षा योजना (जेएसवाई) के बाद संस्थागत शिशु जन्म में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। कई संस्थागत प्रजनन के मामलों में माताएं 48 घंटों से अधिक केंद्रों में रूकने के लिए इच्छुक नहीं थी जबकि जन्म के बाद पहले 48 घंटे अत्यंत नाजुक होते हैं तथा हैमरेज, इन्फेक्शन, उच्च रक्त दबाव आदि जैसी परेशानियां पैदा होने की संभावनाएं रहती हैं। असुरक्षित प्रजनन में माता एवं बच्चों के रोगी होने या मृत्यु की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
माता एवं बच्चों के स्वास्थ्य की देखभाल का खर्चा, दवाओं का खर्चा, जांच आदि से भी उक्त सेवाएं प्रभावित होती हैं। कुछ मामलों में जैसे कि खून की कमी या हैमरेज होने पर खून दिए जाने से भी खर्चा बढ़ जाता है। सीजेरियन डिलीवरी के मामले में तो खर्चा और बढ़ जाता है। जननी सुरक्षा कार्यक्रम की शुरूआत यह सुनिश्चित करने के लिए की गई है कि प्रत्येक गर्भवती महिला तथा एक माह तक रूग्ण नवजात शिशुओं को बिना किसी लागत तथा खर्चे के स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की जाएं।
जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में मुफ्त प्रजनन सुविधाएं (सीजेरियन ऑपरेशन समेत) मुहैया की जाती हैं। गर्भवती महिलाओं को मुफ्त में दवाएं दी जाती हैं इनमें आयरन फॉलिक अम्ल जैसे सप्लीमेंट भी शामिल हैं। इसके साथ ही गर्भवती महिलाओं को खून, पेशाब की जांच, अल्ट्रा-सोनोग्राफी आदि अनिवार्य और वांछित जांच भी मुफ्त कराई जाती है। सेवा केंद्रों में सामान्य डिलीवरी होने पर तीन दिन तथा सीजेरियन डिलीवरी के मामले में सात दिनों तक मुफ्त पोषाहार दिया जाता है। आवश्यकता पड़ने पर मुफ्त खून भी दिया जाता है। गर्भवती महिलाओं को समय पर रैफरेल-यातायात सुविधा दिए जाने से माता एवं नवजात शिशुओं का बचाव किया जा सकता है। जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत ओपीडी फीस एवं प्रवेश प्रभारों के अलावा अन्य प्रकार के खर्चे करने से मुक्त रखा गया है।
जन्म से 30 दिनों तक रूग्ण नवजात शिशु हेतु सभी दवाएं और अपेक्षित खाद्य मुफ्त में मुहैया कराई जाती है। माता के साथ-साथ नवजात शिशु की भी मुफ्त जांच की जाती है और आवश्यकता पड़ने पर मुफ्त में खून भी दिया जाता है। घर से केंद्र जाने और आने के लिए भी मुफ्त में वाहन सुविधा दी जाती है।
संक्षेप में, केंद्र में प्रजनन कराने से माता के साथ-साथ शिशु की भी सुरक्षा रहती है। जननी सुरक्षा योजना के अंतर्गत जहां गर्भवती महिला को नकद सहायता दी जाती है, वहीं पर जननी सुरक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत गर्भवती महिलाओं तथा रूग्ण नवजात शिशुओं पर खर्चा कम करना पड़ता है। इससे सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में जाना बढ़ा है तथा इससे माताओं एवं शिशुओं की मृत्यु दर में कमी आई है।
जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम की शुरूआत करने से सभी गर्भवती महिलाओं को सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में प्रजनन कराने में प्रोत्साहन मिलेगा। इससे केंद्रों पर अच्छी जन्म संबंधी सेवाएं मिलेगी। रूग्ण नवजात शिशुओं का मुफ्त इलाज किए जाने से नवजात शिशुओं की मृत्यु दर घटाने में सहायता मिलेगी। इस कार्यक्रम से माता एवं नवजात शिशुओं की रूग्णता और मृत्यु दर में कमी आएगी।
जननी सुरक्षा योजना एक नजर में
- यह योजना सम्पूर्ण राज्य में वर्ष 2005 से लागू की गई है।
- इसका उद्देश्य संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देकर मातृ एवं शिशु म़त्यु दर कम करना है।
- इसका लाभ सभी वर्ग की महिलाओं को सरकारी एवं चिन्हित गैर सरकारी संस्थान पर प्रसव कराने पर देय है।
- इस योजना के अन्तर्गत शहरी क्षेञ में 1000 रू. एवं ग्रामीण क्षेञ में 1400 रू. का लाभ देय है।
- बी.पी.एल. कार्डधारी महिला को घर पर प्रसव कराने पर 2 बच्चों तक ही 500 रू. देय है तीसरा बच्चा होने पर यदि वह महिला/उसका पति नसबंदी करवाता है तो भी उसे 500 रूपये देय होंगे।
- आशा को रू. 100 रू. महिला के संस्थागत प्रसव करवाने पर एवं 100 रू. प्रसवोपरान्त नवजात डी.पी.टी. के तीन टीके लगवाने के पश्चात देय है।
- आशा द्वारा उक्त प्रतिफल के बदले प्रसूता को पंजीकरण ANC Check up T.T. एवं आयरन की गोलियां प्रदान करवायी जायेगी।
- संस्थागत प्रसव दौरान प्रसूता/शिशु की म़त्यु भी हो जाए तो भी यह लाभ देय होगा।
- जननी सुरक्षा योजना के अन्तर्गत प्रसूता को देय राशि का भुगतान संस्थागत प्रसव होने पर संस्था से डिस्चार्ज के पूर्व चैक द्वारा प्रदान किया जायेगा व बी.पी.एल. परिवार की महिला के घरेलू प्रसव होने पर 500 रू. की राशि का भुगतान सम्बन्धित प्रसाविका अथवा नजदीक के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के प्रभारी द्वारा 7 दिवस में चैक द्वारा किया जाएगा।
- राज्य से बाहर की प्रसूताओं को राज्य में प्रसव होने पर ANC कार्ड प्रस्तुत करने पर योजनान्तर्गत लाभ देय है।
- रेफरल परिवहन सुविधा सभी वर्गों की ग्रामीण प्रसूताओं को देय होगी।