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धर्म-आस्था व कला का बेजोड़ संगम : कांगड़ा

कांगड़ा के विशेष मंदिर

ब्रजेश्वरी देवी मंदिर: आज कांगड़ा की प्रसिद्धि यहां स्थित ब्रजेश्वरी देवी के मंदिर के कारण अधिक है। जिसे नगरकोट कांगड़े वाली देवी भी कहा जाता है। हजार वर्ष पूर्व यहां भी बड़ा ही भव्य और समृद्ध मंदिर था। मंदिर के हीरे-मोती, सोने-चांदी की संपदा की ख्याति दूर तक फैली थी। किंतु 1009 में महमूद गजनवी, 1337 में मुहम्मद बिन तुगलक तथा 1420 के आसपास सिकंदर लोदी ने आक्रमण कर यहां की संपदा लूट ली। आक्रांताओं के हर आक्रमण के बाद यह मंदिर पुन: निर्मित हुआ। किंतु भूकंप ने इसे फिर क्षतिग्रस्त कर दिया। उसके बाद 1920 में वर्तमान मंदिर निर्मित किया गया। छोटी-छोटी गलियों से होकर मंदिर परिसर में पहुंचा जाता है। मंदिर के गर्भ गृह में पिंडी के रूप में देवी के दर्शन होते हैं। मान्यता है कि अपने सगे संबंधियों के साथ पीले वस्त्र धारण कर देवी की स्तुति करें तो पुत्र प्राप्ति की कामना पूर्ण होती है। इसी कामना से दूर-दराज के गांवों से विशेषकर हिमाचल प्रदेश व उत्तर प्रदेश से लोग यहां आते हैं। कांगड़ा में श्री कृपालेश्वर मंदिर, कुरुक्षेत्र कुंड तथा गुप्त गंगा आदि दर्शनीय स्थान हैं। यहां से लगभग 15 किलोमीटर दूर मसरूर नामक स्थान पर 1०वीं शताब्दी के 15 मंदिर दर्शनीय हैं। ऐसा कहा जाता है कि ब्रजेश्वरी माता के मंदिर में आकर सच्चे मन से की गई प्रार्थना पूरी जरूर होती है। अपनी मन्नत पूरी होने पर यहां आकर श्रद्धालु भक्तगण पूजा-अर्चना व हवन करते हैं।

कृपालेश्वर मंदिर: यह मंदिर भी अत्यन्त पुराना है। भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर में शिव भगवान के दर्शन कृणली रूप में किये जाते हैं। ऐसी ठोस मान्यता है कि इस मंदिर के दर्शन बिना कांगड़ा क्षेत्र के तीर्र्थों का यात्रा अधूरी मानी जाती है।

कुरुक्षेत्र कुण्ड: जन मान्यतानुसार कुरुक्षेत्र कुण्ड में स्नान करने पर न केवल पितरों का उद्धार हो जाता है बल्कि परिवार की वंश वृद्धि सहित भक्त के धनधान्य में श्री वृद्धि होती ह। भक्तगण ऐसा विश्वास रखते हैं। सूर्यग्रहण के अवसर पर इस कुण्ड में स्नान करने से तो पिछले तीन जन्मों के पाप नष्टï हो जाते हैं।

गुप्त गंगा: वीरभद्र स्थान से 2 कि.मी. दूर गुप्त गंगा नामक स्थान हैं। ऐसी मान्यता है कि पांडवों ने भी यहां कुछ समय विश्राम किया था। उस समय पानी की कमी पाण्डवों को हुई। तब अर्जुन ने बाण चलाकर जल का उद्गम किया था। जल तो आज भी यहां अस्तित्व में है मगर वह कहां से आता है यह कोई पता नहीं लगा सकता।

अच्छरा माता (छरुण्डा): यह ब्रजेश्वरी मंदिर से 4 कि.मी. दूर स्थित है जो गुप्त गंगा से दूर है। यह स्थान पहाड़ी की एक गुफा में बना है जहां जल की धाराएं बहती हैं। मुख्य वाटरफॉल लगभग 25 फीट की ऊंचाई से गिरता है। प्राकृतिक पर्यटन की दृष्टि से यह स्थान अत्यन्त रमणीय है। ऐसा माना जाता है कि प्राचीनकाल में राजा पुरु ने यहां निवास किया था। यहां स्नान करने से स्त्रियों का बांझपन दूर हो जाता है। छरुण्डा जलप्रपात के पास ही अच्छरा माता का छोटा -सा मंदिर बना है।

उक्त स्थानों के अलावा चक्रकुण्ड, वीरभद्र, ब्रजेश्वरी मंदिर में स्थित भैरो की मूर्ति तथा तारा देवी का मंदिर आदि दर्शनीय स्थान हैं।

चामुण्डा देवी: चामुण्डा देवी मंदिर धर्मशाला से 15 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। पर्यटक धर्मशाला से प्राकृतिक सौंदर्य का आंनद उठाकर चामुण्डा देवी पहुंचते है। प्रकृति ने यहां पर अपनी सुंदरता भरपूर मात्रा में लुटाई है। कल-कल करते झरने और तेज वेग से बहती नदियां पर्यटकों के जेहन में अमिट छाप छोड़ती हैं। मंदिर के बीच वाला भाग ध्यान मुद्रा के लिए उपयुक्त स्थान है। यहां पर ध्यान लगाने पर श्रद्धालुओं को अध्यात्मिक आंनद की प्राप्ति होती है। पहाड़ी सुंदरता, जंगल और नदियां पर्यटकों को मोहित कर देती हैं। उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि वह किसी जादूई नगरी में आ गये हैं। काफी संख्या में श्रद्धालु यात्रा मार्ग में अपने पूर्वजों के लिए प्रार्थना करते हैं कि उन्हें आध्यात्मिक आंनद की प्राप्ति हो। इसके लिए वह काफी सारे अनुष्ठान करते हैं। श्रद्धालु यहां पर स्थित बाण गंगा में स्नान करते हैं। बाण गंगा में स्नान करना शुभ और मंगलमय माना जाता है। मान्यता है कि गंगा में स्नान करने से शरीर पवित्र हो जाता है। श्रद्धालु स्नान करते समय भगवान शंकर की आराधना करते हैं। मंदिर के पास ही में एक कुण्ड है जिसमें स्नान करने के पश्चात ही श्रद्धालु देवी की प्रतिमा के दर्शन करते हैं। मंदिर के गर्भ-गृह की प्रमुख प्रतिमा तक सभी आने वाले श्रद्धालुओं की पहुंच नहीं है। मुख्य प्रतिमा को ढक कर रखा गया है ताकि उसकी पवित्रता में कमी न आ सके। मंदिर के पीछे की ओर एक पवित्र गुफा है जिसके अंदर भगवान शंकर का प्रतीक प्राकृतिक शिवलिंग है। इन सभी प्रमुख आकर्षक चीजों के अलावा मंदिर के पास ही में विभिन्न देवी-देवताओं की अद्भुत आकृतियां हैं। मंदिर के मुख्य द्वार के पास ही में हनुमान और भैरो नाथ की प्रतिमा है। हनुमान को माता का रक्षक माना जाता है।

चामुण्डा देवी मंदिर के पीछे की ओर ही आयुर्वेदिक चिकित्सालय, पुस्तकालय और संस्कृत कॉलेज है। चिकित्सालय के कर्मचारियों द्वारा आये हुए श्रद्धालुओं को चिकित्सा संबंधी सामग्री मुहैया कराई जाती है। यहां स्थित पुस्तकालय में पौराणिक पुस्तकों के अतिरिक्त ज्योतिषाचार्य, वेद, पुराण, संस्कृति से संबंधित पुस्तकें विक्रय हेतु उपलब्ध है। यह पुस्तकें उचित मूल्य पर खरीदी जा सकती हैं। यहां पर स्थित संस्कृत कॉलेज को मंदिर की संस्था द्वारा चलाया जाता है। यहां वेद पुराणों की मुफ्त कक्षा चलाई जाती है। यात्री पहाड़ी सौन्दर्य का लुत्फ उठाते हुए चामुण्डा देवी तक पहुंच सकते हंै। रास्ते में अनेक मनमोहक दृश्य हैं जो पर्यटकों के जेहन में बस जाते हैं। हरी-हरी वादियां और कल-कल कर बहते झरने पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

ज्वालाजी माता मंदिर : कांगड़ा से 34 किलोमीटर दूर ज्वाला जी मंदिर है। इसे ज्वालामुखी मंदिर भी

ज्वालाजी

ज्वालाजी मंदिर

हा जाता है। यह पवित्र स्थल देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि इस स्थान पर सती की जिह्वा गिरी थी। यहां चट्टान की दरारों से निरंतर एक ज्वाला प्राकृतिक रूप से जलती रहती है। नीले रंग की यह ज्वाला ही देवी स्वरूप पूजी जाती है। मंदिर में देवी की प्रतिमा भी विद्यमान है। यहां अलग-अलग स्थान पर ज्वालाएं प्रज्वलित हैं जिन्हें देवी के नौ स्वरूप माना जाता है। परिसर के अन्य भवनों के मध्य अवस्थित मुख्य मंदिर अपनी स्वर्ण आभा से भक्तों को प्रभावित करता है। मंदिर का गुंबद पूरी तरह स्वर्ण से मढ़ा है। इस विषय में एक मत है कि एक बार मुगल बादशाह अकबर अपनी हिंदू पत्नी जोधाबाई के साथ ज्वाला जी दर्शन के लिए आए थे। तब मंदिर से प्रभावित होकर उन्होंने यह स्वर्ण पत्र मढ़वाया था। बहुत से लोगों का मानना है कि गुंबद पर यह स्वर्ण पत्र महाराजा रणजीत सिंह द्वारा मढ़वाया गया था। ज्वालामुखी मंदिर की देख-रेख बाबा गोरखनाथ के अनुयायियों द्वारा की जाती है। राधाकृष्ण मंदिर, अम्बिकेश्वर महादेव, लाल शिवालय तथा गोरखटिब्बी यहां के अन्य दर्शनीय धार्मिक स्थान हैं। ज्वाला माता जी का मुख्य द्वार काफी सुंदर एव भव्य है। मंदिर में प्रवेश के साथ ही बांई ओर अकबर नहर है। ऐसा कहा जाता है कि इस नहर को अकबर ने बनवाया था। उसने मंदिर में प्रज्जवलित ज्योतियों को बुझाने के लिए यह नहर बनवाया था। उसके आगे मंदिर का गर्भ द्वार है जिसके अंदर माता ज्योति के रूप में विराजमान है। मंदिर में अलग-अलग नौ ज्योतियां है जिसे अलग-अलग नाम से जाना जाता है। थोड़ा ऊपर की ओर जाने पर गोरखनाथ का मंदिर है जिसे गोरख डिब्बी के नाम से जाना जाता है। इसमें एक पानी का एक कुन्ड है जो देखने मे खौलता हुआ लगता है पर वास्तव में एकदम गर्म नहीं है। ज्वालाजी के पास ही में 4.5 कि.मी. की दूरी पर नागिनी माता का मंदिर है। इस मंदिर में जुलाई और अगस्त के माह में मेले का आयोजन किया जाता है। 5 कि.मी. की दूरी पर रघुनाथ जी का मंदिर है जो राम, लक्ष्मण और सीता को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा कराया गया था। ज्वालामुखी मंदिर की चोटी पर सोने की परत चढ़ी हुई है।

देहरा: देहरा उपमंडल स्थित पवित्र कालेश्वर महादेव तीर्थ स्थल का हिंदू धर्म ग्रंथों में बहुत महत्व बताया गया है। यहां के पंचतीर्थी सरोवर में स्नान करने के बाद जो व्यक्ति यहां स्थित कालेश्वर महादेव के रूप में भगवान शिव के दर्शन करते हैं, उन्हें पंच तीर्थो के भ्रमण एवं दर्शनों का फल प्राप्त हो जाता है। दिवंगत की अस्थियों के विसर्जन यहां की पवित्र धरा से बहने वाली पवित्र ब्यास नदी में करने से हरिद्वार से अधिक फल मिलता है। हिंदू मान्यता के अनुसार सतयुग में भगवान राम ने भगवान भोलेनाथ को खुश करने के लिए कालेश्वर महादेव की इसी स्थान पर पूजा की थी।

पंचतीर्थी सरोवर: श्रद्धालु यहां पवित्र स्थान कर मंदिर के दर्शन कर सकते हैं। यह स्थान हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के देहरा उपमंडल में गरली-चंबापतन के पास स्थित है। इसके आसपास के कई धार्मिक स्थल है। माता ज्वालामुखी मंदिर से मात्र यहां से 12 किलोमीटर दूरी है। तो वहीं मां चिंतपूर्णी मंदिर से भी कुछ किलोमीटर की दूरी पर ही स्थित है। श्रद्धालु एक ही दिन में कर सकते हैं मां ज्वाला, मां चिंतपूर्णी और कालेश्वर महादेव के दर्शन कर सकते हैं। दोनों माताओं के मंदिर के रास्ते पर ही महाकालेश्वर महादेव का मंदिर पड़ता है। वहीं अब व्यास नदी पर चंबापतन पुल बन जाने के कारण अपनी गाडिय़ों में आने वाले श्रद्धालुओं को काफी सुविधा हो गई है। दिल्ली से आने पर ऊना से अम्ब होते हुए भी पहुंचा जा सकता है। तो वहीं जम्मू की तरफ से आते हुए कांगड़ा माता, चांमुडा माता व ज्वाला माता के दर्शन करते हुए यहां पहुंचा जा सकता है। ऊना से आने पर बाबा बालक नाथ मंदिर के दर्शन करते हुए भी यहां पहुंचा जा सकता है।

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