सिंचाई: वर्षा ऋतु की फसल में सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती परन्तु गर्मी की फ़सल को 4-5 दिन के अन्तर पर सिंचाई अवश्य करते रहना चाहिए। शरद कालीन फ़सल में 10-15 दिन में अन्तर पर सिंचाई करते हैं। मेड़ों पर सिंचाई हमेशा आधी मेड़ ही करनी चाहिए ताकि पूरी मेड़ नमी युक्त व भुरभुर बनी रहे।
मूली बुआई का तरीका
प्रमुख कीट: माँहू – इस कीट के निम्फ व वयस्क, दोनों ही पौधों को नुकसान पहुँचाते हैं। यह गोभी के पत्तों पर हज़ारों की संख्या में चिपके रहते हैं। इनका प्रकोप जनवरी व फऱवरी में अधिक होता है जिससे पत्तियाँ पीली पड़ जाती है। माहूँ अपने शरीर से श्राव करते हैं जिससे फफूँद का आक्रमण होता है एवं गोभी खाने या बिकने योग्य नहीं रहती है। इससे बीज वाली फ़सल को अधिक नुकसान होता है।
नियंत्रण : इस कीट के नियंत्रण के लिए मैलाथियान 1.5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर या डाइक्लोरोवास 1 मिली लीटर प्रति लीटर पानी या इण्डोसल्फान 2 मिली लीटर प्रति लीटर पानी का छिडक़ाव उपयोगी है। या 4 प्रतिशत नीम गिरी के घोल किसी चिपकाने वाला पदार्थ के साथ मिलाकर छिडक़ाव करें।
रोयेदार सूड़ी– कीट का सूडी भूरे रंग का रोयेदार होता है एवं ज़्यादा संख्या में एक जगह पत्तियों को खाते हैं। बहुत जल्दी एक से दूसरे पौधे पर फैल जाते हैं।
प्रमुख रोग : अल्टरनेरिया झुलसा यह मूली की गंभीर बीमारी है। यह रोग जनवरी से मार्च के दौरान बीज वाली फ़सल पर ज़्यादा लगता है। सभी पर्णीय भाग रोगकारक से ग्रसित होते हैं। पत्तियों पर छोटे घेरेदार गहरे काले धब्बे बनते हैं। पुष्पक्रम व फल सिलिकुआ पर अण्डाकार से लंबे धब्बे दिखाई देते हैं। बीज की फल भित्ति भी रोगकारक से गंभीर रुप से सवंमित हो जाती है।
खुदाई या बाज़ार के लिए तैयारी : मूली को सदैव नरम और कोमल अवस्था में ही खुरपी या कुदाली की सहायता से ही खुदाई या उखाडऩी चाहिए। मूली की खुदाई एक तरफ से न करके तैयार जड़ों को छाँटकर करें। जड़ों को अधिक दिन तक नहीं छोडऩा चाहिए। इस प्रकार 10-15 दिनों में पूरी खुदाई करते हैं। बाज़ार में ले जाने से पूर्व उखड़ी हुई मूली की जड़ें साफ़ पानी से अच्छी प्रकार धोकर मोटी जड़ों से पतली जड़ें उनका बण्डल बना लें, जिससे उठाने और बेचने दोनों में सहूलियत होती है। जड़ों के साथ केवल हरी मुलायम पत्तियों को छोडक़र पीली व पुरानी पत्तियों को तोड़ देना चाहिए।
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