अटूट आस्था व श्रद्धा के लिए विश्व विख्यात सराहन का "भीमाकाली मन्दिर"

अटूट आस्था व श्रद्धा का केंद्र सराहन का “भीमाकाली मन्दिर”

भीमाकाली मन्दिर के साथ अनेक पौराणिक कथाएं

एक जनश्रुति के अनुसार कहा कि मार्कण्डेय पुराण के अनुसार देवताओं की प्रार्थना पर दुर्गा अम्बा जी ने यह वचन दिया था कि पृथ्वी पर शुम्भ-निशुम्भ नामक दो दैत्यों को नाश करने हेतु नन्द की पति यशोदा माँ के गर्भ से अवतीर्ण होकर विंध्याचल पर्वत पर रहूंगी तथा उसके बाद अनेको अवतार लेती हुई हिमाचल भूमि पर भीम रूप में प्रकट हो कर ऋषि-मुनियों की रक्षा के लिए राक्षसों का भक्षण अर्थात विनाश करूंगी और उस समय जब मुनिजन भक्ति- भाव से नतमस्तक हो कर जब मेरी स्तुति करेंगे तब मेरा नाम भीमा देवी रूप मैं विख्यात होगा। यही श्लोक श्री दुर्गा सप्तशती में भी अंकित है। इस वचन के अनुसार प्राणी मात्र की रक्षा के लिए माँ यहां की प्रमुख देवी के रूप में प्राचीनकाल से अटूट आस्था के साथ पूजित है।

एक अन्य जनश्रुति के अनुसार देवी का स्थापना का संबंध बाणासुर से भी जोड़ती है। सराहन का प्राचीन नाम शोणितपुर माना जाता है जो की बाणासुर की राजधानी थी। बाणासुर दैत्यकुल में उत्पन भक्त प्रह्लाद के पोत्र दानवीर राजा बलि का ज्येष्ठ पुत्र था जिसकी हजार भुजाएं थी और यह अत्यंत पराक्रमी, बलशाली था। श्रीकृष्ण जी के हाथों युद्ध में इनकी केवल चार भुजाएं ही शेष रह गयी थी। परम शिवभक्त यह बाणासुर किन्नर – कैलाश जा कर आराधना किया करता था, यही वीर सतलुज को मानसरोवर से इस और लाया था। इससे पहले यह किन्नौर के शासक कामरु का मंत्री था, शोणितपुर पहुँच कर वह यहां रूकगे जहां इसने अपनी राजधानी बसाई। इसकी एक पुत्री थी उषा तथा उसकी एक सहेली थी चित्रलेखा। निचार का देवी उखा तथा तरंडा ढांक में माता चित्रलेखा का मंदिर इन दोनों पुराण पात्रों की अमित याद अंकित किये हुए हैं।

लोक आस्था है कि देवी उषा ने शिव पार्वती को प्रेमालाप करते हुए देख लिया था और उसे भी वैसा ही करने की सूझी। माँ पार्वती ने उसे वरदान देते हुए कहा कि जो व्यक्ति तुम्हें एक निश्चित रात्रि को स्वपन में दिखाई देगा वाही तुम्हारा पति होगा। बाणासुर की पुत्री को उस सुन्दर राजकुमार के दर्शन हुए जिसे देख कर वह बैचैन हो उठी। उसने जब यह बात चित्रलेखा जो की चित्रकला मैं बहुत निपुण थी उसने उषा के स्वप्न के अनुसार उस राजकुमार का चित्र अंकित किया जो की द्वारिकाधीश वासुदेव का पोत्र अनिरुद्ध था। उषा की उत्कंठा के अनुरूप योगविद्या मैं निपुण चित्रलेखा द्वारिका पहुंची और सोये हुए अनिरुद्ध को अपहरण कर शोणितपुर ले कर आई जहां उनका गन्धर्व विवाह करवा दिया।

देवऋषि नारद द्वारा यह सुचना जब द्वारिका पहुंची तब बलराम सेना सहित युद्ध के लिए आये जिसमे उनकी हार हुई तब स्वयं श्री कृष्ण ने आकर इनसे युद्ध किया जिसमे बाणासुर को हार माननी पड़ी। उसके बाद राज्य की बागडोर प्रद्युमन को सौंपी। इतिहास की इस दीर्घ यात्रा में शोणितपुर का नाम सराहन पड़ा बाद में दीर्घ काल तक बुशहर का राजवंश कामरु से ही चलता रहा। राजा छात्र सिंह के समय स्थाई रूप से काम्रो से इसे सराहन स्थान्तरित किया गया। राजवंश ने महल के अंदर ही देवी का मंदिर बना कर यहाँ इन्हे प्रतिष्ठित किया। और मूर्ति को यहां 200 वर्ष पूर्व ही प्रतिष्ठित किया गया, इस मूर्ती का निर्माण सराहन के साथ ही 1 किलोमीटर दूरी पर स्थित गमसोत की गुफा में किया गया था। मूर्ति की ऊंचाई लगभग 4 फुट है।

"भीमाकाली मन्दिर" दूर-दूर से मन्नत ले कर लोग आते हैं और मनचाही मुराद पूरी पाते हैं।

“भीमाकाली मन्दिर” दूर-दूर से मन्नत ले कर लोग आते हैं और मनचाही मुराद पूरी पाते हैं।

एक मत के अनुसार प्राचीनकाल में यह क्षेत्र पानी से पूरा भरा हुआ था। शिव और कूट नमक दो राक्षसों ने भगवान शिव को प्रसन्न कर यह वरदान लिया था की उनकी मृत्यु जल बहुल इलाके में नहीं होगी। ऐसे में यहां के स्थानीय यक्ष देवता जाख ने शिव से रक्षा की याचना की। भगवान शिव ने इन दोनों राक्षसों का वध अपने घुटनों पे उनका सर रख के किया और जख देवता को वरदान दिया की उनके घर भगवती जनम लेंगी। कालांतर में देवी ने जख देवता के घर में जनम लिया। शरीर के डीलडौल को देखते हुए उसका नाम भीमा रखा गया सांवले रंग होने के कारण उसे काली भी कहा जाने लगा। व्यवहार में आते- आते यह दोनों नाम एक हो गए।

क विशेष बात यह है कि बहुत सालों पहले माँ को हर 10 साल बाद नर बलि दी जाती थी जिसे की बाद में शाली नामक स्थान से थोड़े दूर के गाँव के बदरा पंडित ने माँ से वचन लेकर बंद करवा दिया था और माँ की एक मूरत को अपने साथ शाली लेकर आया था। वहां पर भी इनका स्थान गाँव बधाया में है और मंदिर शाली नामक टिब्बे पर स्थित है। आज हम यह बात भली-भांति जानते हैं कि कभी भी क्षेत्र में किसी प्रकार की समस्या आती है या किसी को कुछ भी हो जाता है है स्वतः ही मुंह से महामाई का नाम निकल पड़ता है और माँ सब गलतियां माफ़ कर के अपने बच्चों की रक्षा के लिए सदा तैयार रहती है। दूर-दूर से मन्नत ले कर लोग आते हैं और मनचाही मुराद पूरी पाते हैं।

शिमला से सराहन की दूरी 180 किलोमीटर है। स्थानीय बस सेवा और टैक्सियां उपलब्ध है। हवाई रास्ते से शिमला तक पहुंचा जा सकता है। मन्दिर परिसर में बने साफ-सुथरे कमरों में ठहरने की व्यवस्था है। सरकारी होटल श्रीखण्ड में उपयुक्त दामों पर ठहरने की व्यवस्था और अन्य स्थान सराहन रिजॉर्ट्स आदि उपलब्ध हैं।

Pages: 1 2 3

सम्बंधित समाचार

अपने सुझाव दें

Your email address will not be published. Required fields are marked *