- सुगन्धित फसलें व्यवसायिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण तथा इन फसलों की माँग में हो रही वृद्धि : निदेशक डा. संजय
- जागरूकता शिविर में किसानों को सुगन्धित फसलों की खेती, उत्पादन एंव मूल्यवर्धन के बारे में दी जानकारी
- सुगंधित फसलों की खेती से किसान दो गुना से भी अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं
पालमपुर : अरोमा मिशन के अंतर्गत आज 15 नवम्बर को सीएसआईआर-हिमालय जैवसंपदा प्रोद्योगिकी संस्थान पालमपुर ने बिलासपुर जिले के 10 प्रगतिशील किसानों के लिए जागरूकता शिविर का आयोजन किया। इस एक दिवसीय जागरूकता शिविर में बिलासपुर जिले के घुमारवीं व झनदूता गाँव के किसानों ने भाग लिया। डा. सनतसुजात सिंह नोडल अरोमा मिशन ने बताया कि अरोमा मिशन के अंतर्गत पिछले दो वर्षों में सुगंधित फसलों को बढ़ावा देने एवं किसानों में इन फसलों के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा देश के विभिन्न राज्यों में जागरूकता एंव प्रशिक्षण कार्यक्रमों का अयोजन किया गया जिससे बहुत से किसानों नें लाभ उठाया। डा. राकेश कुमार सह नोडल अरोमा मिशन ने कार्यक्रम के दौरान किसानों को सुगन्धित फसलों (सुगन्धित गुलाब, लैवेंडर, रोज़मेरी, जंगली गेंदा, लेमन ग्रास, चमोमाईल, पामारोसा) की खेती, उत्पादन एंव मूल्यवर्धन के बारे में जानकारी दी।
उन्होंने बताया कि सुगंधित फसलों की खेती से बिलासपुर जिले के किसान बंदरों व जंगली जानवरों द्वारा किए गए नुकसान से न केवल सुरक्षित हैं, बल्कि वह परम्परागत फसलों से दो गुना से भी ज्यादा शुद्ध लाभ अर्जित कर सकते है। इन फसलों के बारे में किए गए विभिन्न कार्यों के बारे में सबको अवगत कराया तथा मूल्यवान सुगन्धित फसलों के खेती को बिलासपुर जिले में बढ़ावा देने के लिए नई तकनीकों का भी प्रशिक्षण दिया। इंजीनियर मोहित शर्मा ने किसानों को तेल आसवन इकाई द्वारा लेमन ग्रास की तेल निकासी के बारे में बताया ताकि किसानों को सुगन्धित तेल उद्योग से आर्थिक लाभ मिल सके। किसानों को सुगन्धित फसलों (जंगली गेंदा, मेट्रीकेरिया) के बीज भी उपलब्ध कराए गए।
डा. संजय कुमार, निदेशक सीएसआईआर- आईएचबीटी ने किसानों को बताया कि व्यवसायिक दृष्टिकोण से यह फसलें महत्वपूर्ण हैं व विभिन्न प्रकार के सौंदर्य प्रसाधन उद्योगों में इनका बहुत उपयोग हैं। उन्होंने बताया कि इन फसलों की माँग बढ़ रही है व इसे पूरा करने के लिए किसान सोसाइटी बना कर इन फसलों द्वारा अच्छी आमदनी अर्जित कर सकते हैं। किसानों ने कार्यक्रम की सराहना की और भविष्य में भी वैज्ञानिकों द्वारा इस तरह के जागरूकता शिविर का आयोजन करने का आग्रह किया ।