शहर से गांवों तक पानी के लिए हाहाकार, दावे खोखले वायदे बेकार.....

शहर से गांवों तक पानी के लिए हाहाकार, दावे खोखले वायदे बेकार…..

विशेष लेख

  • शहर से गांवों तक पानी के लिए मची त्राहि-त्राहि
  • धरना-प्रदर्शन, नारेबाजी व हंगामे के बावजूद भी नहीं जागी सरकार
  • जलापूर्ति की स्थिति पर मुख्यमंत्री कर चुके हैं समीक्षा बैठक, फिर भी पानी की आपूर्ति नहीं
टैंकरों के जरिये भी पूरी नहीं हो पा रही पेयजल आपूर्ति

टैंकरों के जरिये भी पूरी नहीं हो पा रही पेयजल आपूर्ति

“पानी” की जरूरत किसे नहीं होती। पानी, मिट्टी और ब्यार यही जीने के वास्तव में आधार हैं। एक की भी कमी हो तो जीवन में हाहाकार मचना लाजमी है क्योंकि इनके बिना तो जीवन ही संभव नहीं है। हिमाचल में जहां बढ़ती गर्मी अपना पूरा कहर बरपा रही है वहीं पानी की कमी से प्रदेश भर में त्राहि-त्राहि मच गयी है। लोग पानी के लिए बावड़ियों व प्राकृतिक स्त्रोतों का रुख कर रहे हैं। अफसोस बावड़ियों व प्राकृतिक स्त्रोत भी अब करीब-करीब सूख ही चुके हैं। वहीं पानी संकट गहराता जा रहा है। क्या शहर, क्या गांव, सब जगह पानी की कमी के चलते लोगों में हाहाकार मचा हुआ है। पानी की जरूरत तो सबको है। शिमला के साथ-साथ कांगड़ा, चंबा, मंडी, बिलासपुर, कुल्लू, हमीरपुर, ऊना, सिरमौर और सोलन में भी पानी की कमी के चलते त्राहि-त्राहि मची हुई है।

  • बावड़ियों व प्राकृतिक जल स्त्रोतों में भी पानी घटा

गाँव में पानी के लिए ग्रामीण लोग कोसों दूर जाकर बावड़ियों व प्राकृतिक जल स्त्रोत, जहां कहीं भी पानी मिल रहा है भरी दुपहर में गर्मी से बेहाल होकर भी पानी ढो रहे हैं, क्योंकि गाँव में परिवार बड़ा होता है। गांव में लगभग सब लोग ही पशुओं को पालते हैं। पानी की किल्लत के चलते पशुओं को भी दूर-दूर से ही पीने के लिए पानी ढोना पड़ता है।

  • शिमला में कुछेक जगह पर 7-7 दिन से पानी नहीं
  • टैंकरों के जरिये भी पूरी नहीं हो पा रही पेयजल आपूर्ति

शिमला में लोगों के घरों में 7-7 दिन से पानी नहीं आ रहा। लोग पानी के टैंकर से अपने बर्तन भरने के लिए धक्का-मुक्की करने लगते हैं। घर, स्कूल, ऑफिस, अस्पताल, कॉलेज, यूनिर्वसिटीज, होटल आदि हर जगह पानी की कमी चल रही है। पानी की कमी से सफाई व्यवस्था की तो धज्जियां ही उड़ गई हैं। लोग पानी की कमी के चलते सड़कों पर उतरकर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। आए दिन शहर में पेयजल संकट को लेकर कांग्रेस समर्थित पार्षदों सहित कांग्रेस कार्यकर्ता नगर निगम शिमला के उपमहापौर का घेराव कर रहे हैं। प्रदर्शनकारियों ने उपमहापौर कार्यालय में नगर निगम प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की और महापौर, उपमहापौर से इस्तीफा देने की मांग भी उठाई जा रही है। लेकिन इतने सब हंगामे के बावजूद भी समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा। खेद का विषय है। टैंकरों के जरिये भी पेयजल आपूर्ति पूरी नहीं हो पा रही।

मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर शिमला में जलापूर्ति की स्थिति की समीक्षा के लिए राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक कर चुके हैं ताकि शिमला के लोगों को पर्याप्त पेयजल सुनिश्चित बनाने के लिए व्यावहारिक व एकजुट कदम उठाए जाएं। मुख्यमंत्री द्वारा उपायुक्त को भी निर्देश दिए गए हैं कि गिरी और गुम्मा में कुहलों को बंद किया जाए। पंपिंग में सुधार किया जाए ताकि शहर को ज्यादा से ज्यादा पानी मिल सके। टैंकर व्यवस्था करने को भी कहा है, लेकिन बावजूद इसके भी पानी की समस्या बरकरार है। हाईकोर्ट तक भी पानी की कमी को लेकर प्रशासन से सवाल तलब कर चुका है लेकिन समस्या कम होती कहीं भी नज़र नहीं आ रही।

  • पानी की किल्लत के चलते लोगों में सरकार व प्रशासन के प्रति भारी रोष

शिमला के साथ-साथ अन्य जिलों में पानी की किल्लत के चलते लोगों में सरकार व प्रशासन के प्रति भारी रोष है। लोगों का कहना है कि चुनाव के दौरान हर पार्टी द्वारा बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं लेकिन वास्तविकता तो समय आने पर ही पता चलती है। हर बार गर्मियों में पानी की किल्लत हो जाती है सरकार द्वारा और नगर निगम द्वारा दावे तो बड़े किये जाते हैं कि इस बार पानी की कोई कमी नहीं होगी लेकिन सच्चाई तो सामने है। वहीं जरा सी बर्फवारी और बारिश में बिजली गुल हो जाती है। सड़कों की खस्ताहाल। किस-किस पर सवाल उठाएं कौन जबाव देगा। सरकार कोई भी हो लोगों की समस्या और परेशानी हर बार वही होती है जो सालों से चली आ रही होती है।

शिमला की अंजना शर्मा का कहना है कि शिमला में पानी की कमी तो है ही, लेकिन साथ ही पानी जब 5-6 दिन बाद भी आता है तो उस पर भी संशय बना रहता है कि पानी साफ भी है या नहीं। निगम के दावे दावे खोखले हैं और सरकार के वायदे बेकार साबित हो रहे हैं।

  • सरकार को बंद कर देने चाहिए सभी स्कूल, कॉलेज, ऑफिस, अस्पताल
  • शौचालय में पसरी गंदगी, बीमारियों का खतरा बढ़ा

कुसुम्पटी के कपिल डोगरा का कहना है कि जब पानी ही नहीं है तो सरकार को स्कूल, कॉलेज, ऑफिस सब बंद कर देने चाहिए, हर तरफ शौचालय में गंदगी ही गंदगी पसरी हुई है। बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। नगर निगम सोया हुआ है।

सोलन की कविता ठाकुर का कहना है कि पानी न आने की वजह से दूर-दूर जाकर बावड़ी से पानी भरकर लाना पड़ता है वहां भी पानी भरने वाले लोगों की बड़ी भीड़ लगी होती है। सारा दिन भी पानी भरा जाए तो भी पानी की जरूरत पूरी नहीं होती। परिवार के साथ घर में पशुओं के लिए भी पानी ढोना पड़ रहा है। नल तो सिर्फ नाम के लिए लगे हुए हैं।

शहर से गांवों तक पानी के लिए मची त्राहि-त्राहि

शहर से गांवों तक पानी के लिए मची त्राहि-त्राहि

  • पानी की किल्लत के लिए क्या प्रशासन व सरकार ही जिम्मेदार?
  • बढ़ते शहरीकरण से पानी का ज़रूरत से ज़्यादा दोहन

सभी की जिंदगी में पानी बहुत अहमियत है। खाना बनाने से लेकर नहाने, बर्तन, कपड़े धोने, शौचालय, कृषि-बागबानी, साफ-सफाई में इसका इस्तेमाल होता है। घर,  स्कूल, ऑफिस, होटल, अस्पताल, उद्योग हर जगह पानी का इस्तेमाल होता है। यहां जिस तरह से हम पानी का इस्तेमाल करते हैं, उसमें बचत कर सकते हैं। कई जगहों पर इस्तेमाल किए गए पानी को फिर से इस्तेमाल नहीं किया जाता है। पानी के इस्तेमाल में अगर सावधानी बरतने की परंपरा शुरू हो जाए, तो पानी की बचत की आदत पड़ सकती है। जरूरत इस बात की है कि केवल गर्मी में ही नहीं, हर मौसम और हर दिन पानी की बचत और इसको बचाने की ओर ध्यान देने की जरूरत है। पानी की किल्लत के लिए प्रशासन व सरकार ही सिर्फ जिम्मेदार नहीं है अपितु हम भी हैं। कुछ लोग अभी भी पानी की अहमियत को समझने की कोशिश नहीं कर रहे। दुनिया भर में लगभग 100 करोड़ लोगों के पास शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं होता। कहा जा रहा है कि सन् 2025 तक विश्व की 50 फीसदी आबादी भयंकर जल संकट झेलने को मजबूर होगी। लेकिन अभी से ही पानी का संकट भीषण होता जा रहा है। बढ़ते शहरीकरण के चलते अनेक शहरों में पानी का ज़रूरत से ज़्यादा दोहन हो रहा है।

  • गांव में जल संरक्षण व उसकी बचत पर ध्यान देने की आवश्यकता
  • प्राकृतिक स्त्रोतों का संरक्षण करना जरूरी

गांवों में पानी का सबसे ज्यादा इस्तेमाल फसलों की सिंचाई के लिए होता है। अगर सिंचाई के लिए अधिक से अधिक ड्रिप सिंचाई की प्रणाली को बढ़ावा दिया जाए, तो पानी की बर्बादी को रोका जा सकता है। गांव में बावड़ियों व प्राकृतिक स्त्रोत, तालाब, पोखर और नहरों का इस्तेमाल कम होने लगा है। आवश्यकता है कि गांव में भी जल संरक्षण और उसकी बचत पर ध्यान दिया जाए। प्राकृतिक स्त्रोतों का संरक्षण किया जाए।

  • पर्यावरण, वन और प्राकृतिक स्त्रोतों के संरक्षण के प्रति सतर्क होना होगा

बढ़ती आबादी का दबाव, आर्थिक विकास और नाकारा सरकारी नीतियों ने जल स्त्रोतों के अत्याधिक प्रयोग तथा प्रदूषण को बढ़ावा दिया है। यह एक ज्वलंत मुद्दा है इस पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाना चाहिए। पहले हिमाचल की आबादी और मकान दोनों ही कम थे और हरियाली ज्यादा। लेकिन अब बदलाव की ऐसी बयार चली है कि हर तरफ मकान, गाड़ियां और गलियां ही नजर आने लगी है। हिमाचल के जंगल स्वाह हो रहे हैं, पहाड़ कट रहे हैं और नदियां सूख रही हैं। पानी की किल्लत इस बात का संकेत है कि हमें सतर्क होना होगा अपने पर्यावरण, वन और प्राकृतिक स्त्रोतों के संरक्षण के प्रति।

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