मेथी उत्तरी भारत की पत्तियों वाली सब्जी की मुख्य फसल है।
मेथी उत्तरी भारत की पत्तियों वाली सब्जी की मुख्य फसल है। इस फसल की प्रारम्भिक अवस्था में पत्तियों को प्रयोग किया जाता है। यह लगभग भारत वर्ष में सभी जगह उगायी जाती है। मेथी की फसल को पहाड़ी क्षेत्रों में भी आसानी से उगाया जा सकता है जो कि शरद ऋतु के मौसम में पैदा की जाती है। मेथी कम समय की फसल होने के कारण सभी जगह लगाई जाती है। इसकी पत्तियों को बहुत पोषक तत्व लेने के लिए प्रयोग करते हैं। मेथी के बीज अन्य सब्जियों को फराई करने के लिये प्रयोग किये जाते हैं। बीज दवाओं में तथा लीवर के रोगियों के लिए लाभदायक होते हैं। कच्ची फलियों को भूजी के रूप में प्रयोग करते हैं। इस फसल की पत्तियों में प्रोटीन, खनिज तथा विटामिन्स ‘ए’ व ‘सी’ की अधिक मात्रा पायी जाती है। इनके अतिरिक्त कैलोरीज, क्लोरीन, लोहा तथा कैल्सियम आदि पोषक-तत्वों की मात्रा प्राप्त होती है जोकि स्वस्थ शरीर रखने के लिए बहुत आवश्यक है।
मेथी की खेती के लिए आवश्यक भूमि व जलवायु : यह फसल शरद ऋतु की है जो कि पाले को सहन करने की क्षमता रखती है। इसलिये इस फसल को ठण्डी जलवायु की अति आवश्यकता होती है। ठन्डे मौसम में अधिक वृद्धि करती है। इस फसल के लिए कम तापमान उचित होता है तथा लम्बे दिनों में अधिक वृद्धि करती है।
मेथी की खेती के लिए खेत की तैयारी : मेथी की खेती के लिये भी बलुई दोमट या दोमट भूमि सर्वोत्तम रहती है लेकिन यह फसल हल्की चिकनी मटियार में भी पैदा की जा सकती है। भूमि में जल निकास का उचित प्रबन्ध होना अति आवश्यक है तथा पी.एच. मान 6.0 से 6.7 के बीच की भूमि उपयुक्त रहती है।
भूमि की तैयारी बोने के समयानुसार की जाती है। सर्वप्रथम सूखे खेत की जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से या ट्रैक्टर-हैरों से करनी चाहिए जिससे घास आदि कटकर मिट्टी में दब जायें। बाद में घास को खेत में से निकालना चाहिए तथा फिर खेत की 3-4 बार जुताई ट्रैक्टर-ट्राली या देशी हल से करनी चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि खेत की भूमि भुरभुरी हो जानी जरूरी है तथा खेत ढेले रहित होना चाहिए। तैयार खेत में क्यारियां बना लेनी चाहिए।
देशी खाद एवं रासायनिक खाद का प्रयोग: मेथी की फसल के लिये 15-20 ट्रैक्टर-ट्राली देशी गोबर की खाद एक हेक्टर में डालनी चाहिए तथा नत्रजन 25-30 किलो तथा 80-100 किलो डाई अमोनियम फास्फेट की मात्रा प्रति हेक्टर, पर्याप्त होती है। नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फेट की पूरी मात्रा तैयार करते समय खेत में भली-भांति मिला देनी चाहिए। शेष नत्रजन की मात्रा को मेथी की प्रत्येक कटाई के बाद बराबर भागों में बांटकर टोप-ड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए। इस प्रकार खादों की मात्रा देने से उपज अधिक प्राप्त होती है। यदि फसल को बीज के लिये पकाना है तो नत्रजन की मात्रा को दो बार में पूरी करनी चाहिए। पहली मात्रा को बुवाई से 15-20 दिन बाद तथा दूसरी मात्रा को फूल आने पर देने से फलियों में बीज अधिक बनते हैं।
भूमि की तैयारी बोने के समयानुसार की जाती है
बगीचे के लिए देशी खाद तथा DAP की मात्रा देनी चाहिए। देशी खाद 45 टोकरी तथा 300 ग्रा. DAP बोने से पहले डालनी चाहिए। यदि फसल कमजोर लगे तो 100 ग्रा. यूरिया 8-10 वर्ग मी. क्षेत्र में छिड़क देना चाहिए। इस प्रकार से मेथी की उपज अधिक मिल जाती है तथा गमलों की मिट्टी में उर्वरकों को मिलाकर बीज बोना चाहिए तथा बाद में 1-2 चम्मच यूरिया पौधों में प्रति गमला देने से मेथी अधिक उपज तथा जल्दी कटाई देती है।
मेथी की प्रमुख जातियां : मेथी की अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा सिफारिश की जाती है कि निम्न जातियों को बोना चाहिए-
पूसा अर्ली बन्चिंग : इसे देशी मेथी के नाम से जाना जाता है। पौधे सीधे तथा 40-45 सेमी. की ऊंचाई के होते हैं। फसल अधिक उपज वाली तथा बण्डल गुच्छी बनाने के लिये उपयुक्त होती है।
पूसा कसूरी : यह किस्म देर से फूलने वाली, गुच्छेदार कई बार बुवाई के लिये उपयुक्त है। अधिक उपज देने वाली तथा विशेष रूप से खुशबू देने वाली पत्तियां होती हैं।
मेथी नं. 45 : यह किस्म महाराष्ट्र कृषि विभाग द्वारा विकसित की है। यह जाति भी अधिक उपज देने वाली है। यह उसी क्षेत्र के लिये अधिक उपयुक्त है। वैसे सभी जगह लगाई जा सकती है।
मेथी की बुवाई का समय तथा पौधों की दूरी: मेथी की बुवाई का उत्तम समय सितम्बर से नवम्बर के मध्य तक है। मेथी को अगेती फसल के रूप में बोते हैं तथा पहली जाड़े की फसल काटकर, फरवरी-मार्च के महीने में भी बोई जाती है। पहाड़ी क्षेत्रों में मेथी मार्च-अप्रैल के महीनों में अधिक बोई जाती है।
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