लाहौल-स्पीति में किसानों को दी जैव नियंत्रण तकनीकों की जानकारी, किसानों को बताया उपयोगी कीटों का महत्व

रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता कम करने और पर्यावरण अनुकूल जैविक विधियों को अपनाने पर बल

सोलन : डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के कीट विज्ञान विभाग सोलन द्वारा इस सप्ताह लाहौल एवं स्पीति जिले के सुमनम और मूरिंग गांवों में किसानों के लिए दो प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए। ये कार्यक्रम बायोलॉजिकल कंट्रोल पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत आयोजित किए गए, जिनका मुख्य उद्देश्य किसानों में जैव नियंत्रण एजेंटों के माध्यम से फसलों में कीट एवं रोग प्रबंधन के प्रति जागरूकता बढ़ाना था। इन प्रशिक्षण शिविरों में 30 महिला किसान सहित 70 किसानों ने भाग लिया। कार्यक्रम के दौरान किसानों को किसान डायरी तथा जैव नियंत्रण उत्पाद जैसे ट्राइकोडर्मा, नीम आधारित कीटनाशक, पीले स्टिकी ट्रैप, अग्निअस्त्र और घनजीवामृत भी वितरित किए गए।

प्रशिक्षण के दौरान कीट विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष एवं परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ. सुभाष चंद्र वर्मा ने सेब एवं अन्य फलदार फसलों को प्रभावित करने वाले प्रमुख कीटों के बारे में विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता कम करने और पर्यावरण अनुकूल जैविक विधियों को अपनाने पर जोर दिया।

डॉ. वर्मा ने कहा कि स्पीति क्षेत्र के पर्यावरण को संरक्षित रखने के लिए कृषकों को कृषि रसायनों के उपयोग से बचना चाहिए और जैव नियंत्रण एजेंटों व जैव कीटनाशकों की ओर रुख करना चाहिए, जिससे शुद्ध भोजन के साथ-साथ जैव विविधता संरक्षण को भी बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने किसानों को सेब, मटर और गोभी वर्गीय फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों तथा उनके जैव नियंत्रण उपायों की जानकारी दी। साथ ही, उन्होंने किसानों को प्राकृतिक खेती पद्धतियों के बारे में बताया जिन्हें वे आसानी से अपनाकर टिकाऊ खेती की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।

कीट वैज्ञानिक डॉ. विश्व गौरव सिंह चंदेल ने किसानों को उपयोगी कीटों (लाभकारी कीटों) के महत्व के बारे में बताया और समझाया कि उनके संरक्षण से फसलों को प्राकृतिक रूप से कीटों से बचाया जा सकता है।

उपनिदेशक बागवानी लाहौल एवं स्पीति डॉ. मीनाक्षी शर्मा तथा उद्यान विकास अधिकारी गितेश कुमार ने किसानों को राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं के बारे में जानकारी दी और उन्हें आधुनिक एवं सतत कृषि तकनीकों को अपनाने के लिए प्रेरित किया ताकि उनकी उत्पादकता और आय में वृद्धि हो सके।

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