संस्कृत भाषा में बसी है भारतीय संस्कृति की आत्मा : राज्यपाल

शिमला : राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने कहा कि संस्कृत भाषा भारतीय संस्कृति की आत्मा और सभी भाषाओं की जननी है। खगोल विज्ञान, आयुर्वेद जैसे विज्ञान पर आधारित प्रमुख विषय तथा ज्योतिष एवं योग जैसे विषय हमारे प्राचीन शास्त्रों के अभिन्न अंग हैं।  संस्कृत विकसित भारत के सपने को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, क्योंकि यह भारत की शाश्वत परंपराओं और चिकित्सा, भौतिक एवं गूढ़ विज्ञान तथा विभिन्न अन्य विषयों के गहन ज्ञान का भंडार है।
राज्यपाल ने आज लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली द्वारा आयोजित ‘विशिष्ट दीक्षांत महोत्सव’ में बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे।
संस्कृत और इसकी विशाल ज्ञान विरासत को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय समाज अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, विशेषकर धर्म ग्रंथों में निहित ज्ञान के प्रति तेजी से जागरूक हो रहा है। यह बढ़ती जागरूकता साबित करती है कि आधुनिकता और प्राचीन संस्कृति समन्वय स्थापित कर आगे बढ़ सकती हैं।
उन्होंने संस्कृत में शिक्षा प्रदान करने और लोगों के बीच इस भाषा को लोकप्रिय बनाने के लिए लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने प्राचीन ग्रंथों पर शोध के महत्व पर बल देते हुए कहा कि जनहित में इनकेे सार को सरल रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए। राज्यपाल ने कहा कि हमारे संतों और विद्वानों ने मानवता, प्रकृति और पृथ्वी के कल्याण के लिए इन ग्रंथों की रचना की। उनके ज्ञान को सभी के लिए सुलभ बनाने से समाज लाभान्वित होगा।
केंद्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष प्रो. सुरेंद्र दुबे ने भी सभा को संबोधित किया और समकालीन समाज में संस्कृत की प्रासंगिकता पर चर्चा की तथा विश्वविद्यालय की पहल की सराहना की।
इससे पूर्व कुलपति प्रो. मुरली मनोहर पाठक ने मुख्यातिथि और अन्य गणमान्यों का स्वागत किया और संस्थान की गतिविधियों की जानकारी दी। इस अवसर पर राज्यपाल ने आचार्य मिथिला प्रसाद त्रिपाठी, वेद प्रकाश उपाध्याय, बालकृष्ण शर्मा और देवेंद्र नाथ त्रिपाठी और अन्य प्रतिष्ठित संस्कृत के विद्वानों और शिक्षाविदों को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया।

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