हिंदी रंगमंच में निर्देशक और अभिनेता के रूप में ख्याति प्राप्त नाट्यकर्मी प्रो. सुरेश शर्मा को राष्ट्र का सर्वोच्च सम्मान मिलना हिमाचल के लिए गौरव की बात

भारतीय रंगमंच विशेष रूप से हिंदी रंगमंच में निर्देशक और अभिनेता के रूप में ख्याति प्राप्त नाट्यकर्मी प्रो. सुरेश शर्मा को कला विधा का राष्ट्र का सर्वोच्च सम्मान यानी संगीत नाटक अकादमी सम्मान मिलना पूरी रंग बिरादरी के लिए बेहद सुखद है। यह हिंदी रंगकर्म के साथ हिमाचल प्रदेश के संस्कृतिकर्म के लिए गौरव की बात है क्योंकि प्रो. सुरेश शर्मा ने ही सुपरिचित रंगकर्मी सीमा शर्मा के साथ अब से लगभग चार दशक पहले हिमाचल सांस्कृतिक शोध संस्थान एवं रंगमंडल का सपना देखा था। जिससे हिमाचल प्रदेश के रंगमंच को देश के नक्शे पर सशक्त ढंग से दर्ज किया जा सके और हिमाचल प्रदेश की सांस्कृतिक पहचान चमक के साथ निखार सके। सुरेश शर्मा और सीमा शर्मा का सामूहिक स्वप्न अब रंग लाया है। आज हिमाचल सांस्कृतिक शोध संस्थान एवं रंगमंडल ने जिस तरह हिमाचल प्रदेश के कला एवं संस्कृतिकर्म को पूरे देश भर में पहुंचाया है, वह अत्यंत महत्वपूर्ण है।

मण्डी जिले में सर्वप्रथम पूर्णकालिक नाटक भी इसी संस्था ने किया जबकि इससे पूर्व एकांकी नाटकों की ही प्रथा  रही थी आज आधुनिक रंगमंच के साथ-साथ पारंपरिक रंगमंच की स्थापना भी इसी संस्थान की देन है। हिमाचल सांस्कृतिक शोध संस्थान व नाटय रंगमंडल के माध्यम से वर्ष 1989 में सर्वप्रथम हिमाचल प्रदेश का रंगकर्म राष्ट्रीय नक्शे पर उतरा वह था इस संस्थान द्वारा प्रस्तुत नाटक “मोहना” जोकि केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली की परियोजना युवा नाटय निर्देशन हेतु थी जो कि नाटक पूरे हिंदुस्तान के सामने हिमाचल प्रदेश की स्थानीय भाषा मंडयाली भाषा में खेला गया।

खुली आंख से देखे गए सपने संभवत पूरे होते हैं। 35 वर्षों से कला के क्षेत्र में जिला मंडी के सतोहल गांव में चल रहा अभिनय संस्थान इस बात का द्योतक है। रंग शीर्ष से जुड़े सभी प्रख्यात साहित्यकार, कला मर्मज्ञ, कहानीकार, रंग निर्देशक इस संस्थान में शिकस्त कर चुके हैं जिनमें राम गोपाल बजाज, कीर्ति जैन, रिता गांगुली, देवेंद्र राज अंकुर, बंसी कॉल,  भारत रत्न  भार्गव, उदयन वाजपेई, कृष्ण बलदेव वैद, चंपा वैद, मुद्राराक्षस, अखिलेश खन्ना, ब.व.कारंत, संजय उपाध्याय, अंजना पूरी, आलोक चटर्जी, अश्वत भट्ट, सत्यव्रत रावत,  हेमा सिंह, दिनेश खन्ना, एल.जी. रौशन, गौतम सिद्धार्थ, सलीम आरिफ, ललित सिंह पोखरिया, अमरजीत सिंह के अतिरिक्त फिल्मी दुनिया से रजत कपूर, परीक्षित साहनी, स्वानंद किरकिरे व हरीश खन्ना। एक संस्था जिसने हिमाचल प्रदेश के तुंगल क्षेत्र के सतोहल गांव को साहित्य जगत के शीर्ष पर पहुंचा दिया है, जो आने वाले भविष्य में एक मील का पत्थर साबित होगा। दो कलाकारों के समर्पण त्याग और प्रेम से बनी यह संस्था हिमाचल प्रदेश में ही नहीं अपितु भारतवर्ष के विभिन्न कला संस्थानों में जानी जाने लगी है जो अभिनय से जुड़े हैं।

अभिनय कोर्स से निकले बहुत से छात्र आज राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, फिल्म टेलीविजन संस्थान पुणे, भारतेंदु नाट्य अकादमी लखनऊ, इंडियन थिएटर चंडीगढ़ के अतिरिक्त विदेशों से भी अभिनय की शिक्षा ग्रहण कर चुके है  जिनमें प्रमुख हैं निधि मिश्रा, अतीत भंडारी, संयोगिता, आशीष शुक्ला, नरेश सिंह चौहान, स्नेहा, बीनू, विश्वजीत, नरेश , प्रांजल, साहिदुल रहमान,सुधीर चौधरी, राहुल यादव, अशोक चौधरी, अविनाश, मोहित, रवि व सुनील। इसके अतिरिक्त कई छात्र हैं जो विदेशों में भी काम कर रहे हैं। फिल्मी दुनिया में स्क्रिप्ट लेखन से लेकर अभिनय तक अपनी पहचान बनाने में हितेश नागोरी, राजन मोदी,  दीपक, पीयूष सुहाने, अमिया कश्यप, वर्धराज, विवेकानंद, रिचा मालवीय, शिखा, मोहित व रीना सैनी बेहतरीन कार्य कर रहे हैं।

हिमाचल के युवा रंगकर्मी जिन्होंने रंगमंच व फिल्म टेलीविजन पर अपनी राष्ट्रीय पहचान बनाई  

हिमाचल प्रदेश के युवा रंगकर्मी जो इस संस्था से पारंगत हुए उन्होंने रंगमंच व फिल्म टेलीविजन पर अपनी राष्ट्रीय पहचान बनाई है जिनमें  प्रमुख है गगन प्रदीप, केदार ठाकुर, रुपेश भीमटा, हैप्पी शर्मा, अतीत, अरुण बहल, दक्षा उपाध्याय , दीप कुमार, सौरभ चौहान, रुपेश बाली,  हितेश भार्गव! यह संस्था महत्वपूर्ण कार्य प्रकाशन के क्षेत्र में भी कर रहा है। इस संस्थान में अभिनय से संबंधित महत्वपूर्ण किताब  “स्तांसलाव्सकी  के अभिनय” सिद्धांत प्रकाशित की हिंदी में जो की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। वर्ष 1986 से आज तक लगभग 35 वर्ष पूर्व हिमाचल सांस्कृतिक शोध संस्थान की नींव रखी गई व अपनी स्थापना वर्ष से ही निरंतर  सक्रिय रहते हुए यह संस्थान केवल मंडी जिले को ही नहीं बल्कि संपूर्ण हिमाचल प्रदेश के रंगकर्म को सक्रिय व जागरूक रंगकर्म से आंदोलित कर रहा है। 

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