आय में सुधार, जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए कृषि वानिकी मॉडलों को दें बढ़ावा

सोलन: डॉ. यशवंत सिंह परमार औदयानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी में कृषि वानिकी पर 21 दिवसीय शीतकालीन स्कूल का समापन हुआ, जिसका विषय ‘कृषि वानिकी- जलवायु को कम करने के लिए एक संभावित दृष्टिकोण’ था। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा प्रायोजित इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न राज्यों कृषि विश्वविद्यालयों और संस्थानों के पंद्रह वैज्ञानिकों ने भाग लिया।

इस प्रशिक्षण का मूल उद्देश्य प्रतिभागियों को जलवायु परिवर्तन शमन के लिए कृषि वानिकी क्षेत्र में नवीनतम मुद्दों और नवाचारों से परिचित करवाना था। जलवायु लचीली कृषि वानिकी प्रणालियों के विकास के लिए प्रौद्योगिकियों के सिद्धांत और व्यावहारिक-उन्मुख ज्ञान प्रदान करना और आर्थिक, पारिस्थितिकी और सामाजिक मापदंडों के लिए कृषि वानिकी प्रणालियों का मूल्यांकन करना भी इस प्रशिक्षण का हिस्सा रहा। तीन सप्ताह के इस कार्यक्रम के दौरान भारत और विदेश के विभिन्न संस्थानों के प्रसिद्ध विशेषज्ञों ने प्रतिभागियों को विभिन्न विषयों पर संबोधित किया।

समापन सत्र के दौरान प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए अनुसंधान निदेशक डॉ. संजीव चौहान ने इस बात पर जोर दिया कि कृषि वानिकी भूख, कुपोषण, गरीबी और हरित क्रांति से वंचित रहे क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन से जूझ रहे लोगों की समृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। उन्होंने कहा कि खाद्य और आजीविका सुरक्षा के अलावा, कृषि वानिकी प्रणालियों में पेड़ों के एकीकरण से वातावरण से अधिक CO2 sequestration में मदद मिलेगी।

निदेशक विस्तार शिक्षा डॉ. इन्द्र देव  ने कहा कि कृषि वानिकी एक गतिशील, पारिस्थितिक रूप से सुदृढ़, प्राकृतिक संसाधन संरक्षण अभ्यास है। दुनिया के लगभग 20 प्रतिशत आबादी-1.2 बिलियन लोग अपने अस्तित्व के लिए बड़े पैमाने पर कृषि वानिकी उत्पादों और सेवाओं पर निर्भर हैं। कृषि स्तर पर समृद्धि प्राप्त करने के लिए उन्होंने वैज्ञानिकों से कृषि प्रणालियों में पेड़ों को शामिल करने का आग्रह किया ताकि विपणन योग्य उत्पादों- जैसे  भवन निर्माण और जलाऊ लकड़ी, पशु चारा, फल, दवाएं इत्यादि के माध्यम से अतिरिक्त आय अर्जित की जा सके।

उन्होंने बताया कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के प्रतिकूल प्रभावों और इसके परिणामस्वरूप होने वाले जलवायु परिवर्तन के बारे में दुनिया भर में जागरूकता बढ़ी है। कृषि वानिकी विकासशील देशों में गरीब किसानों को निजी लाभ और वैश्विक पर्यावरण लाभ प्रदान करती है। उन्होंने कहा कि अन्य वनस्पतियों के विपरीत पेड़ों पर ध्यान इसलिए दिया जाता है क्योंकि पेड़ लंबी अवधि के लिए अपेक्षाकृत बड़ी मात्रा में कार्बन सोखते हैं। विश्व स्तर पर भारत सहित बहुत से देशों ने जलवायु परिवर्तन अनुकूलन रणनीति के रूप में कृषि वानिकी प्रणालियों को पहचाना है।

 प्रशिक्षुओं के बीच रुचि पैदा करने के लिए, खेतों का दौरा, किसानों से बातचीत और लकड़ी आधारित संसाधनों के उत्पादन और उपयोग के लिए औद्योगिक दौरे भी इस प्रशिक्षण का हिस्सा रहे। उत्साहित प्रशिक्षुओं ने इसे अपनाने की वचनबद्धता को दोहराया। इस कार्यक्रम में वानिकी महाविद्यालय के डीन डॉ सी॰एल ठाकुर, औदयानिकी महाविद्यालय के डीन डॉ मनीष शर्मा, पुस्तकालय अध्यक्ष डॉ केके रैना, सिल्विकल्चर और कृषि वानिकी विभाग के हैड डॉ डी॰आर॰ भारद्वाज और विभिन्न विभागों के वैज्ञानिकों ने भाग लिया।

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