शिमला: आज नई दिल्ली में संध लोक सेवा आयोग एवं रक्षा मनोवैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान, भारत सरकार के सहयोग से करवाई जा रही दो दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई। कायर्शाला के उद्घाटन अवसर पर हिमाचल प्रदेश हिमाचल प्रदेश के अध्यक्ष के.एस. तोमर जोकि राज्य लोक सेवा आयोगों के राष्ट्रीय सम्मेलन की स्थाई समिति के अध्यक्ष भी है, ने कहा कि देशभर के राज्यों के लोक सेवा आयोगों के नवनियुक्त सदस्यों के लिए साक्षात्कारों की प्रक्रियाओं के बारे में इस तरह की कार्यशाला का आयोजन पहली बार किया जा रहा है, जो भविष्य में माननीय सदस्यों को उन के कार्यों के निष्पादन में नवीनता, पारदर्षिता, जवाबदेही एवं निष्पक्षता आदि के गुणों का समावेश करवाएगा।
तोमर ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि नवनियुक्त सदस्य राज्य लोक सेवा आयोगों के अधीन विभिन्न पदों के लिए की जा रही भर्तियों के द्वारा अभ्यर्थियों के चयन में पारदर्षिता एवं निष्पक्षता के आधार पर, कार्यशाला में सुझाए तरीकों से अमली जामा पहनाने में सहायता मिलेगी क्योंकि सभी राज्यों के प्रथम एवं द्वितीय श्रेणी के पदों के लिए जिन में मुख्यतः राज्य नौकरशाही, न्यायिक अधिकारी, महाविद्यालय स्तर के प्रवक्ता, चिकित्सक, अभियन्ता आदि पदों के लिए भर्तियां राज्य लोक सेवा आयोगों के माध्यम से ही करवाई जाती हैं।
इस तरह की कार्यशाला के आयोजन के लिए दीपक गुप्ता, अध्यक्ष, संध लोक सेवा आयोग, नई दिल्ली की पहल प्रशंसनीय है, क्योंकि उनका मानना है कि विभिन्न पदों पर केवल योग्य प्रार्थियों का ही चयन सुनिश्चित किया जाए, जिसके लिए सदस्यों की जानकारी के लिए इस प्रकार के प्रशिक्षण वांछनीय हैं। तोमर ने कहा कि मैं पत्रकारिता के क्षेत्र से पिछले 35 वर्षों से कार्यरत रहा हॅू और मुझे अपने कार्यकाल में कई तरह के प्रशासनिक अधिकारियों, न्यायधिशों, प्राचार्यो, चिकित्सकों, अभियन्ताओं और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को विभिन्न आयामों में साक्षात्कारों के अवसर प्राप्त हुए परन्तु उनकी भिन्नता चयन प्रक्रिया के साक्षात्कारों से पूरी तरह से अलग थी। प्रार्थियों का विभिन्न पदों के लिए चयन के लिए साक्षात्कारों की प्रक्रिया अपने आप में एक अति जटिल और सवेंदनशील कार्य है।
हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग के वर्तमान अध्यक्ष के नाते जो मेरा अनुभव रहा है उससे में कह सकता हॅू कि वही प्रार्थी विभिन्न पदों में चयनित किए जाएं, जो बुद्धिमान, प्रतिभाशाली एवं नए विचारों और दूरदर्शिता से भली प्रकार से सम्पूरित हों। आजकल की परिस्थितियों के मध्य यह महत्वपूर्ण होगा कि साक्षात्कार के दौरान प्रार्थी की प्रतिभा एवं बौद्धिक क्षमता को अवश्य ही अधिमान दिया जाए। स्वयं ज्ञान के प्रर्दशन को नकारा जाए। जब कभी भी आप चयन बोर्ड की अध्यक्षता करते हों तो इस प्रकार के महत्वपूर्ण कारकों को आप सभी को अपने-अपने दिमाग में रखना अतिआवश्यक होना चाहिए। इस प्रक्रिया में यह भी देखा गया है कि साक्षात्कारकर्ता प्रार्थी को अपने ज्ञान का प्रदर्शन करवाने के लिए कठिन प्रश्न पूछने का प्रयास करता है, जिसके परिणामस्वरूप प्रार्थी धबराहट की स्थिति में पहुंच जाता है और परिणामस्वरूप उसे अपनी योग्यता के प्रदर्शन से वचिंत होना पड़ता है। दूसरा, साक्षात्कार के लिए उपयुक्त माहौल तैयार किया जाए और साक्षात्कार को स्नेहपूर्ण एवं मैत्रीपूर्ण तरीके से संचालित किया जाए।
तृतीय, यह सुनिश्चित बनाया जाए कि साक्षात्कार के दौरान कोई भी प्रार्थी विचारों के स्वतन्त्र आदान-प्रदान के लिए किसी भाषा सम्बन्धी कोई कठिनाई न महसूस करे। मेरा अनुभव यह कहता है कि ग्रामीण क्षेत्रों से जो प्रार्थी सम्बन्ध रखते हैं उनकी प्रतिभा का मूल्यांकन शहर से सम्बन्ध रखने वाले प्रार्थियों से कम नहीं देखा गया है परन्तु उनमें संवाद की कमी के कारण आत्मविश्वास की कमी अवश्य देखी गई है। इस समस्या के स्थाई समाधान के लिए मैनें हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग में किसी भी साक्षात्कार से पहले प्रार्थियों से यह पूछना आरम्भ कर दिया है कि वे स्वयं बताएं उन्हें साक्षात्कार बोर्ड से हिन्दी या अग्रेंजी में से किस भाषा में संवाद करना होगा। आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि 80 से 90 प्रतिशत प्रार्थियों द्वारा हिन्दी भाषा में अपने को आरामदेय पाया है। अतः मेरा आप सभी को सुझाव रहेगा कि आप भी अपने-अपने लोक सेवा आयोगों में साक्षात्कारों के दौरान स्थानीय भाषाओं में सवांद के लिए प्रार्थियों को प्रेरित करें। चर्तुथ-साक्षात्कारों के दौरान साक्षात्कार बोर्ड का यह उत्तरदायित्व बन जाता है कि जब भी प्रार्थियों से कठिन प्रश्न पूछें जाएं तो उस समय उनमें जो आत्म विश्वास की कमी की स्थिति उत्पन्न होती है उससे उन्हें तुरन्त बाहर निकाला जाए ताकि वे नाकारात्मक स्थिति से तुरन्त वापिस लौट सके और अपनी योग्यता के प्रदर्शन को प्रभावी ढ़ग से पूरा कर सके। पाचंवा-प्रत्येक अध्यक्ष एवं सदस्य का प्रार्थी के चयन की उपयोगिता पर अलग-अलग विचार एवं तरीके हो सकते है परन्तु साक्षात्कारों के दौरान सर्वसम्मति का तरीका अति सुयोग्य एवं निष्पक्ष आंका गया है।
छठा-यह अति आवश्यक है कि साक्षात्कारकर्ता स्वयं ज्ञान का भण्डार हो और वह अपने आप को हर तरह से नई जानकारियों से अवगत करवाता रहे। ऐसा न करने की स्थिति में उनकी प्रतिष्ठा को नीचा देखा जा सकता है। सांतवा-साक्षात्कारों के दौरान ऐसे भी विषय विशेषज्ञों से सामना करना पड़ता है, जो कि प्रार्थियों से विषय के कठिन प्रश्न पूछ कर उन्हें हतोत्साहित कर देते हैं ऐसी परिस्थितियों को बोर्ड के अध्यक्ष के नाते रोका जाना अतिआवश्यक है। यदि ऐसी कोशिशें रोकीं न जाएं तो साक्षात्कार का औचित्य नहीं के बराबर हो जाता है।
अन्त में अति महत्वपूर्ण है कि हमें साक्षात्कारों की प्रक्रियाओं को बाहरी दबाब से मुक्त रखना होगा जोकि हमारा नैतिक कर्तव्य है ताकि योग्य प्रार्थियों के साथ न्याय सुनिश्चित किया जा सके।
साथ में, तोमर ने कहा कि संध लोक सेवा आयोग और रक्षा मनौवैज्ञानिक अनुसधन संस्थान, नई दिल्ली द्वारा हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग को इस तरह की कार्यशाला आयोजन के लिए जो सहयोग प्राप्त हुआ है उस के लिए वह हृदय से आभार व्यक्त करते हैं।