2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लक्ष्य को सफल बनाने हेतु, समेकित कृषि प्रणाली को प्रोत्साहनः राधामोहन सिंह

राष्ट्रीय समुद्री मात्स्यिकी नीति का होगा पुनरावलोकन

  • भारत विश्‍व में जलकृषि से मछली उत्‍पादन करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश

नई दिल्ली: सरकार राष्ट्रीय समुद्री मात्स्यिकी नीति का पुनरावलोकन करने की प्रक्रिया में है। महानिदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की अध्यक्षता में गठित एक समिति राष्ट्रीय समुद्री मात्स्यिकी नीति के पुनरावलोकन की प्रक्रिया का कार्य कर रही है, जिसने ‘राष्ट्रीय समुद्री मत्स्य नीति” पर हितधारकों से सुझाव आमंत्रित किए हैं। वाराणसी में आज कृषि और किसान कल्‍याण मंत्रालय की परामर्श-दात्री समिति की बैठक को संबोधित करते हुए केंद्रीय कृषि और किसान कल्‍याण मंत्री राधामोहन सिंह ने कहा कि समुद्री मात्स्यिकी विश्‍व में बड़ी जनसंख्‍या की खादय आवश्‍यकता को पूरा करने के अलावा, विशेष रूप से प्रोटीन आवश्‍यकता के लिए तीव्र गति से बढ़ता हुआ खाद्य उत्‍पादन क्षेत्र है। जलकृषि-उत्‍पादन मत्‍स्‍य एवं मात्स्यिकी उत्पादों की बढ़ती हुई मांग को पूरा करने में प्रमुख भूमिका निभा रहा है। 7 प्रतिशत से ऊपर की वार्षिक वृद्धि दर के साथ, भारत विश्‍व में जलकृषि से मछली उत्‍पादन करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है।

सिंह ने मीठे जल की ‘जलकृषि” (एक्वा-कल्चर) के महत्‍व को रेखांकित करते हुए कहा कि भारत में मात्स्यिकी-क्षेत्र के प्रमुख घटकों में से एक है, और यह देशभर में फैले हुए लघु एवं सीमांत किसानों को लाभान्वित करने वाला, तथा भारत में उपलब्ध विशाल जल-संसाधनों के द्वारा मछली उत्‍पादन मे योगदान देने वाला क्षेत्र है। हाल के वर्षों में मत्स्य-प्रजातियों के विविधीकरण ने मीठे-जल मे एक्वा-कल्चर के लिए विभिन्‍न महत्‍वपूर्ण प्रजातियों के प्रजनन एवं हैचरी-प्रबंधन मे त‍कनीकी विकास को बढ़ावा दिया है। NFDB के द्वारा भुवनेश्‍वर में वाणिज्यिक रूप से महत्‍वपूर्ण प्रजातियों के लिए “ब्रूड-बैंक” की स्‍थापना से देश में हैचरियों के लिए प्रमाणित-ब्रूड के उत्‍पादन और आपूर्ति को सुनिश्चित करने की आशा है।

उन्‍होंने समिति के सदस्‍यों को मत्‍स्‍य क्षेत्र में विकास की जानकारी देते हुए बताया कि केंद्रीय अंतर्देशीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्‍थान (CIFRI सिफरी) ने कुछ प्रजातियों विशेष रूप से पैंगेसियस और भारतीय मेजर कॉर्प, जो देश में अंतर्देशीय एक्वा-कल्चर के लिए महत्व-पूर्ण प्रजातियाँ हैं, इनके पैन एवं केज कल्चर तकनीकी का विकास एवं मानकीकरण किया है।

देश मे, केज-कल्चर से होने वाले उत्पादन की क्षमता लगभग 50 किलोग्राम प्रति-घन मीटर, तथा पैन-कल्चर से होने वाले उत्पादन की क्षमता लगभग 3500-5400 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रति 6 महीने की है, तथा इस मौजूदा उत्पादन-क्षमता को अभी और बढ़ाने की संभावनाएं मौजूद हैं। आशा है कि देशभर के किसानों द्वारा मत्स्य-प्रजनन तथा बीज-उत्‍पादन के लिए बड़े पैमाने पर प्रौद्योगिकियों के अपनाए जाने से मीठे-पानी मे एक्वा-कल्चर को और भी बढ़ावा मिलेगा, तथा इस प्रकार देश में “नीली क्रांति” को भी बढ़ावा मिलेगा।

कुछ पर्वतीय राज्‍यों में उच्‍च-मूल्‍य की शीत-जल प्रजातियों जैसे कि ब्राउन-ट्राउट, विदेशी रेनबो-ट्राउड एवं विदेशी शीत-जल कार्प के वाणिज्यिक पालन को भी सफलतापूर्वक प्रारंभ किया गया है। शीत-जल-मात्स्यिकी के विकास के लिए भीमताल में ICAR के द्वारा शीत-जल मात्स्यिकी अनुसंधान निदेशालय (DCFR) स्‍थापित किया गया है।

झींगा मछ्ली की उत्पादकता और उत्पादन बढ़ाने के लिए तटीय क्षेत्रों में झींगा ब्रूड-स्टॉक गुणन केंद्रों (बीएमसी) की स्थापना के साथ-साथ, विशिष्ट पैथोजन फ्री (एसपीएफ) झींगा बीएमसी की स्थापना, एवं इनके संचालन के विनियमन के लिए दिशा-निर्देश पहले ही जारी किए जा चुके हैं। इसके अलावा, निजी उद्यमियों / उद्यमों द्वारा सी-बास फिंगरलिंग्स के आयात एवं पालन के दिशा-निर्देश भी जारी किए जा चुके हैं।

मंत्री ने कहा कि खारा-जल एक्वा-कल्चर, मत्स्य-उत्‍पादन का एक और क्षमतावान क्षेत्र है। भारत में 1.2 मिलियन हैक्‍टेयर खारे-जल का क्षेत्र है, जो 10 समुद्री राज्‍यों /संघ राज्‍य क्षेत्रों में फैला हुआ है। तटवर्ती जलकृषि प्राधिकरण (CAA), तटीय एक्वा-कल्चर क्षेत्र के सतत-विकास के लिए ज्‍वार-भाटा रेखा से 2 किलोमीटर के भीतर, लवणीय तथा खारा-जल प्रणालियों में गतिविधियों को विनियमित करता है। कड़े नियमों तथा जैव-सुरक्षा के लिए आवश्यक नियमों को अपनाकर CAA के माध्‍यम से, विदेशी झींगा (एल.वेन्‍नामाई) की वाणिज्यिक फार्मिंग शुरू करने से इस सेक्‍टर का बहुत तेजी से विकास हुआ है। नियमित जागरूकता कार्यक्रमों, प्रबंधन प्रक्रियाओं से संबंधित प्रौद्योगिकियों की उपलब्‍धता, बीज-उत्‍पादन, संतुलित आहार इत्‍यादि के साथ-साथ निजी निवेश ने खारा-जल एक्वा-कल्चर के क्षेत्र को एक जीवंत उद्योग बना दिया है। यह सेक्‍टर मात्स्यिकी निर्यात में बहुत अधिक योगदान करता है। भारत के मुख्‍य भू-भाग मे एवं द्वीपीय क्षेत्रों में, समुद्री मत्स्य-पालन, समुद्री-पौधों तथा जंतुओं के वाणिज्यिक पालन के लिए व्‍यापक कार्य क्षेत्र प्रदान करता है। DAHDF ने कोबिया, पोम्‍पानों तथा ग्रुपर्स जैसी मत्स्य-प्रजातियों के लिए, केंद्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्‍थान (CMFRI) के सहयोग से विभिन्‍न समुद्री राज्‍यों में, समुद्री केज-यूनिटों से संबंधित प्रायोगिक परियोजना प्रारंभ की हैं। इन प्रायोगिक परियोजनाओं के परिणामों के आधार ही पर पूर्वी तथा पश्चिमी तट मे, खुले-समुद्री केज स्‍थापित करने के लिए राज्‍यों को सहयता दी जाएगी।

मीठे जल के विकास की आवश्‍यकता की जरूरत पर बल देते हुए मंत्री ने कहा कि भारत मीठे-जल मत्स्य-पालन के लिए 5.4 मिलियन हेक्‍टेयर का इन-लैंड जल-निकाय उपलब्‍ध है; खारा-जल मछली पालन के लिए 1.2 मिलियन हेक्‍टेयर तथा समुद्री मात्स्यिकी के लिए 8.5 मिलियन हैक्‍टेयर उपलब्‍ध है तथा इसके साथ-साथ मीठे-जल, खारे-जल तथा समुद्री जल-निकायों में एक्वा-कल्चर के लिए समृद्ध जैव-विविधता भी उपलब्ध है। उन्‍होंने कहा कि एक्वा-कल्चर की व्‍यापक क्षमता को देखते हुए पर्यावरण-अनुकूल तरीके से संसाधनों के उत्‍तरदायित्‍वपूर्ण और सतत-उपयोग के लिए नई प्रौद्योगिकियों को शामिल करके आर्थिक समृद्धि, मछुआरों के सशक्‍तीकरण, रोजगार-सृजन तथा खाद्य और पोषण-सुरक्षा, विशेष रूप से प्रोटीन कुपोषण संबंधी सुरक्षा के लिए सतत-तरीके से और विकसित किए जाने की आवश्‍यकता है।

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