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“उत्तराधिकार का अधिकार” के लिए अलग धार्मिक समुदायों में अलग-अलग कानून

अधिवक्ता - रोहन सिंह चौहान

अधिवक्ता – रोहन सिंह चौहान

“उत्तराधिकार का अधिकार” के लिए अलग-अलग धार्मिक समुदायों में अलग- अलग कानून हैं। उत्तराधिकार कानून के तहत अगर किसी व्यक्ति ने वसीयत नहीं की है तो उसके मरने के बाद उसकी संपत्ति किसे मिलेगी का उल्लेख है। इस बार हमारे अधिवक्ता रोहन सिंह चौहान इसी विषय पर हमें विस्तार से जानकारी देने जा रहे हैं।

हिन्दु उत्तराधिकार अधिनियम 1956

समाजिक सुधार और हिन्दू महिलाओं को पूर्ण अधिकार दिलाने की दिशा में 9 सितम्बर, 2005 का दिन एक विषेष महत्व रखेगा। इस दिन से एक अधिनियम जिसका नाम है ‘‘हिन्दु उतराधिकार (संशोधन) अधिनियम 2005’’ अस्तित्व में आ गया है। जिसके अन्तर्गत हिन्दू महिलाओं को पुरूषों के बराबर पूर्ण अधिकार दिया गया है। क्योंकि यह नया अधिनियम हिन्दू समाज की अभी तक की प्रचलित मान्यताओं के एकदम विपरीत है और इससे हिन्दू महिलाओं को सम्पति में नए अधिकार प्राप्त हुए हैं।

हिन्दू महिला संयुक्त परिवार में जन्म से ही सहभागी

इस नये संशोधन कानून से हिन्दू उतराधिकार कानून 1956 की धारा-6 के स्थान पर एक नई धारा स्थानापन्न की गई है, जिसके अनुसार 9 सितम्बर 2005 से हर हिन्दू पुत्री जन्म से ही संयुक्त परिवार में पुत्र के बराबर भागीदार गिनी जायेगी और उसे संयुक्त परिवार की सम्पति में पुत्र के बराबर अधिकार रहेगा। इसके साथ-साथ पुत्र के बराबर ही उस सम्पति में जो देनदारियाँ होगी। उनमें भी वह सहभागिनी होगी। लेकिन यदि किसी संयुक्त परिवार का विभाजन 20 दिसम्बर 2004 से पहले हो गया है, अर्थात जो पुराने हिन्दू कानून के अन्तर्गत हो गया है, जिसके अन्तर्गत पुत्रियों को संयुक्त परिवार की सम्पति में कोई अधिकार नहीं था तो ऐसा विभाजन रदद नहीं किया जाएगा। परन्तु 9 सितम्बर, 2005 से हिन्दू परिवार के विभाजन में जो हक पुत्र को प्राप्त होगा, वही हक पुत्री को भी प्राप्त रहेगा और उसे उतना ही हिस्सा दिया जाएगा जैसे कि पुत्र को दिया जाएगा जैसे कि पुत्र को दिया जाता है। इसी प्रकार यदि किसी पुत्री का देहान्त पहले हो जाता है जो संयुक्त परिवार के विभाजन के समय जीवित थी और जिस प्रकार दिंवगत पुत्र की सम्पति उसके पुत्रों और उसके उत्तराधिकारियों में बांटी जाती है, उसी प्रकार दिवगंत पुत्री के उतराधिकारीयों में भी वह सम्पति बांटी जाएगी।

वसीयत का अधिकार : – हिन्दू महिला को संयुक्त परिवार की सम्पति में अपने हिस्से को अपनी वसीयत के अनुसार बांटने का पूरा हक रहेगा। इस प्रकार एक हिन्दू महिला की मृत्यु के समय संयुक्त परिवार की सम्पति का विभाजन उसी प्रकार होगा जैसे वह मृत्यु के दिन जीवित थी और उसका जो भी हिस्सा उस समय बनता था वही उसके उतराधिकारीयों में विभाजित होगा जैसे कि पुत्र का होता है।

बुजुर्गो के ऋण हेतू हिन्दू जिम्मेदार नहीं : – अब नये कानून के पश्चात कोई भी न्यायालय किसी भी पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के विरूद्ध कोई फैसला नहीं करेगी, केवल इसलिए कि ऐसा पुत्र आदि का एक पवित्र कर्तव्य था, कि वह अपने पिता के ऋणों को चुकाये। यदि कोई ऋण 9 सितम्बर 2005 से पूर्व पिता आदि ने लिया है तो पूर्व कानून के अनुसार कोई भी लेनदार पुत्र, या प्रपौत्र के खिलाफ कोर्ट में मुकद्दमा कर सकता है, जैसे कि यह नया संशोधन कानून पास ही नहीं हुआ हो।

हिन्दु महिलाओं को मकान विभाजन का अधिकार :- अब हिन्दू महिला संयुक्त परिवार के रिहायशी मकान का विभाजन मांग सकती है।

कृषि भूमि का विभाजन हिन्दू महिला द्वारा संभव :- हिन्दू उतराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 4(2) समाप्त कर दी गई है, जिसका असर यह होगा कि 9 सितम्बर 2005 से यदि हिन्दू महिलाओं को कृषि भूमि में उत्तराधिकार के रूप में कोई हक मिलेगा तो उसे कृषि भूमि के विभाजन का पूरा हक रहेगा, जैसे कि एक पुत्र को रहता है।

हिन्दू विधवाओं को पुनर्विवाह पर उत्तराधिकार की असुविधा नहीं :- इस नये संशोधन अधिनियम के अनुसार हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 24 को समाप्त कर दिया गया है, जिससे पूर्व दिवंगत पुत्र की विधवा स्त्री आदि या पूर्व दिवंगत पुत्र के दिवंगत पुत्र या भाई की विधवा को पुनर्विवाह पर सम्पति उत्ताधिकार का अधिकार नहीं मिलता था। अब ऐसी विधवा को उसके पुनर्विवाह के पश्चात भी अपने पिता या संयुक्त परिवार की सम्पति में पुत्र केबराबर हिस्सा प्राप्त करने का पूरा अधिकार रहेगा।

किसी हिंदू की मृत्यु होने पर उसकी संपत्ति उसकी विधवा , बच्चों(लड़के तथा लड़कियां) तथा मां के बीच बराबर बांटी जाती है।

किसी हिंदू की मृत्यु होने पर उसकी संपत्ति उसकी विधवा , बच्चों(लड़के तथा लड़कियां) तथा मां के बीच बराबर बांटी जाती है।

हिंदुओं को उत्तराधिकार

  • किसी हिंदू की मृत्यु होने पर उसकी संपत्ति उसकी विधवा , बच्चों(लड़के तथा लड़कियां) तथा मां के बीच बराबर बांटी जाती है।
  • अगर उसके किसी पुत्र की उससे पहले मृत्यु हो गयी हो तो बेटे की विधवा तथा बच्चों को संपत्ति का एक हिस्सा मिलेगा।
  • हिंदू महिला की संपत्ति उसके बच्चों (लड़के तथा लड़कियां ) तथा पति को मिलेगी। उससे पहले मरने वाले बेटे के बच्चों को भी बराबर का एक हिस्सा मिलेगा।
  • अगर किसी हिंदू व्यक्ति के परिवार के नजदीकी सदस्य जीवित नहीं हैं, तो उसकी मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति पाने वाले उत्तराधिकारियों का निश्चित वर्गीकरण होता है।
  • हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम में हिन्दू माता-पिता की पुत्री को अपने माता-पिता की संपत्ति के उत्तराधिकार के लिए पुत्रों के समान ही अधिकार प्राप्त हैं, लेकिन कृषि भूमि के संबन्ध में सभी राज्यों में वैसी स्थिति नहीं है। कृषि भूमि राज्यों का विषय है और समस्त कृषि भूमि को राज्य की संपत्ति माना गया है। कृषक को कृषि भूमि पर कृषि करने मात्र का अधिकार होता है जिसे सांपत्तिक अधिकार न मान कर ऐसा अधिकार माना गया है जैसा कि किसी अन्य स्थावर संपत्ति के मामले में किराएदार को होता है। इस कारण से कृषि भूमि पर कृषक के अधिकार का उत्तराधिकार राज्य में कृषि भूमि से संबन्धित कानून से शासित होता है।
  • एक हिंदू पुरूष के संपत्ति के उत्तराधिकारी पुत्र, पुत्री, विधवा मां, मृतक पुत्र का पुत्र, मृतक पुत्र की पुत्री, मृतक पुत्री के बेटा-बेटी, मृतक बेटे की विधवा, मृतक बेटे के बेटे का बेटा, मृतक बेटे के बेटे की विधवा, मृतक बेटे के मृतक बेटे की बेटी हो सकते है।
  • संपत्ति का बँटवारा पत्र का पंजीकृत होना जरूरी है। यदि वह पंजीकृत नहीं है तो मान्य नहीं होगा, लेकिन यदि पहले बँटवारा हो चुका हो और बाद में बँटवारे का ज्ञापन लिख कर उसे नोटेरी से सत्यापित कराया गया हो तो वह बँटवारे की सही सबूत हो सकता है।
  • स्त्री का पति से तलाक न होने पर वह संतानों के समान ही पति की संपत्ति की उत्तराधिकारी है।
  • पैतृक संपत्ति में पुत्रियों को भी पुत्रों के समान अधिकार दिया गया है, लेकिन यह अधिकार केवल पैतृक संपत्ति में ही है।
  • यदि पुश्तैनी संपत्ति को बेच कर या उस से होने वाली आय से नई संपत्ति बनाई गयी है तो वह भी पुश्तैनी ही मानी जाएगी।
  • किसी महिला को उसके पति द्वारा अर्जित संपत्ति पर मृत्यु के पहले अधिकार प्राप्त था और उसका उत्तराधिकार पति के देहावसान के समय ही निश्चित हो चुका था, तो उस संपत्ति में उसका और उसके बच्चों का अधिकार बना रहेगा। दूसरा विवाह करने से उत्तराधिकार में प्राप्त संपत्ति पर उसका अधिकार समाप्त नहीं होगा।
  • पिता के पेंशन की अधिकारी सिर्फ आप की मां होती है, लेकिन ग्रेच्युटी और अन्य लाभ जो भी उन्हें मिले हैं, उन की वे ट्रस्टी मात्र होती हैं, उस पर मां के साथ ही सभी बच्चों का बराबर अधिकार होता है।
  • आम तौर पर किसी व्यक्ति की मृत्यु के उपरान्त उत्तराधिकार के नियम के अनुसार राजस्व अधिकारी उस के उत्तराधिकारियों के नाम नामांतरण कर देते हैं, यह सामान्य नियम है।
  • जब तक माता पिता जीवित हैं, उन की संपत्ति पर किसी का कोई अधिकार नहीं है। पुत्र को वयस्क अर्थात 18 वर्ष का होने तक तथा पुत्री का उस के विवाहित होने तक मात्र भरण पोषण का अधिकार है।
  • पत्नी के नाम से खरीदी गई संपत्ति जिस के क्रय मूल्य का भुगतान पति ने किया है, उसके लिए यह माना जाएगा कि वह पत्नी के हितों के लिए खरीदी गई है, लेकिन यदि पति यह साबित कर देता है कि वह उस की पत्नी के हितों के लिए नहीं खरीदी गई थी तो वह संपत्ति पति की ही मानी जाएगी।
  • किसी फंड या बीमा पॉलिसी में नामांकन हो जाने से नामांकित व्यक्ति के नाम संपत्ति हस्तांतरित नहीं हो जाती है। वह तो किसी की मृत्यु के बाद इन रकमों का केवल ट्रस्टी है।
  • किसी हिंदू की मृत्यु होने पर उसकी संपत्ति उसकी विधवा, बच्चों (लडक़े तथा लड़कियां) तथा मां के बीच बराबर बांटी जाती है ।
  • अगर उसके किसी पुत्र की उससे पहले मृत्यु हो गई हो तो बेटे की विधवा तथा बच्चों को संपत्ति का एक हिस्सा मिलेगा।
  • हिंदू महिला की संपत्ति उसके बच्चों (लडक़े तथा लड़कियां ) तथा पति को मिलेगी। उससे पहले मरने वाले बेटे के बच्चों को भी बराबर का एक हिस्सा मिलेगा ।
  • अगर किसी हिंदू व्यक्ति के परिवार के नजदीकी सदस्य जीवित नहीं हैं, तो उसकी मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति पाने वाले उत्तराधिकारियों का निश्चित वर्गीकरण होता है।

सौतेले बच्चे को उत्तराधिकार:

अगर सौतेला पिता बच्चे को गोद ले लेता है तो बच्चा सौतेले पिता का उत्तराधिकारी हो जाता है। और यदि उनकी कोई पुश्तैनी संपत्ति हुई तो उसमें वह हिस्सेदार होगा। गोद लेने के लिए गोदनामे का पंजीकरण कराना पड़ेगा अन्यथा वह अनेक मामलों में मान्य नहीं होगा।

पुश्तैनी संपत्ति पर उत्तराधिकार:

यदि पिता के पास कोई पुश्तैनी संपत्ति है, (ऐसी संपत्ति जो आप के पिता या दादा या परदादा को 17 जून 1956 के पूर्व उन के पिता या पुरुष पूर्वज से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई थी तथा उस संपत्ति की आय से खरीदी गई संपत्ति पुश्तैनी संपत्ति हैं) तो उस में पिता की सभी संतानों का हिस्सा होता है और उसे न तो वह किसी को दे सकता है और न ही विक्रय कर सकता है। वह केवल उस संपत्ति में अपना हिस्सा हस्तान्तरित कर सकते हैं।

  • माता-पिता की स्वअर्जित संपत्ति में उत्तराधिकार

स्वअर्जित सम्पत्ति उस सम्पत्ति को कहा जाता है जो कोई व्यक्ति किसी सेवा, व्यापार आदि से स्वयं कमाता है और उस सेवा या व्यापार में संयुक्त हिन्दू परिवार या सहदायिक सम्पत्ति का कोई योगदान नहीं होता है और ऐसी स्वअर्जित सम्पत्ति का कोई व्यक्ति अपने जीवनकाल में अपनी इच्छानुसार व्यय कर सकता है।

माता-पिता की संपत्ति यदि उन की स्वअर्जित है तो उस पर उनका पूर्ण अधिकार है। वे पुत्र को उस संपत्ति से निकलने को कह सकते हैं, लेकिन पुत्र न निकले तो जबरन निकाला नहीं जा सकता है। उसके लिए उन्हें पुत्र के वहाँ रहने की अनुज्ञा (लायसेंस) समाप्त करनी होगी। फिर भी पुत्र घर नहीं छोड़ता है, उसके विरुद्ध संपत्ति पर कब्जा प्राप्त करने के लिए पिता दीवानी वाद कर सकता है।

  • हिंदू द्वारा दूसरी शादी करने पर उत्तराधिकार

उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि किसी हिंदू पुरुष द्वारा पत्नी के जीवित रहते दूसरी शादी कर लेने से दूसरी पत्नी को उत्तराधिकार नहीं मिलता है , लेकिन उसके बच्चों का पहली पत्नी के बच्चों की तरह ही अधिकार होता है।

  • एक हिंदू पुरूष के संपत्ति के उत्तराधिकारी उसके निम्नलिखित रिश्तेदार हो सकते हैं

पुत्र, पुत्री, विधवा मां, मृतक पुत्र का पुत्र, मृतक पुत्र की पुत्री, मृतक पुत्री के बेटा-बेटी, मृतक बेटे की विधवा, मृतक बेटे के बेटे का बेटा, मृतक बेटे के बेटे की विधवा, मृतक बेटे के मृतक बेटे की बेटी। उत्तर प्रदेश में कृषि भूमि में कृषक का अधिकार, उत्तराधिकार की विधि के अनुसार न हो कर भूमि कानून जमींदारी विनाश अधिनियम के अनुसार होता है। उसमें केवल अविवाहित पुत्रियों को पिता व माता की संपत्ति में अधिकार है, लेकिन अविवाहित रहते हुए एक बार पुत्री को यह अधिकार प्राप्त हो जाए तो उस का विवाह हो जाने से यह समाप्त नहीं होता। विवाह के उपरान्त भी बना रहता है, वह बेदखल नहीं होता।

  • अब आदिवासी महिलाओं का भी परिवार की संपत्ति में हिस्सा: कोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट से आदिवासी महिलाओं के लिए राहत की खबर आई है। दरअसल कोर्ट ने हिमाचल की आदिवासी महिलाओं के हक में फैसला सुनाते हुए कहा कि आदिवासी महिलाएं हिन्दू उत्तराधिकार कानून 1956 के अनुरूप संपत्ति में अपना हिस्सा पाने की हकदार हैं।

कोर्ट के फैसले के बाद आदिवासी महिलाओं की अधिकारी प्राप्त करने के दो दशक सामाजिक आंदोलन को कानूनी मान्यता मिली। न्यायमूर्ति राजीव शर्मा ने आदिवासी क्षेत्रों की बेटियों को भी हिन्दू उत्तराधिकार कानून 1956 के अनुरूप संपत्ति लेने का हकदार बताया।

  • मुसलमानों को उत्तराधिकार

मुसलमानों (शिया और सुन्नी) को उत्तराधिकार  

  • मुस्लिम विधि में पुश्तैनी संपत्ति नाम की कोई संपत्ति नहीं होती है। जो संपत्ति जिसकी होती है, उसी का उस पर स्वामित्व होता है और कोई भी उसकी संपत्ति में
    मुस्लिम विधि में पुश्तैनी संपत्ति नाम की कोई संपत्ति नहीं होती है। जो संपत्ति जिसकी होती है, उसी का उस पर स्वामित्व होता है और कोई भी उसकी संपत्ति में हिस्सा नहीं मांग सकता है।

    मुस्लिम विधि में पुश्तैनी संपत्ति नाम की कोई संपत्ति नहीं होती है। जो संपत्ति जिसकी होती है, उसी का उस पर स्वामित्व होता है और कोई भी उसकी संपत्ति में हिस्सा नहीं मांग सकता है।

    हिस्सा नहीं मांग सकता है।

  • यदि किसी संपत्ति के स्वामी की मृत्यु हो जाए, तो मुस्लिम विधि के अनुसार मृतक के कर्जों, मेहर व अन्तिम संस्कार का खर्च चुकाने के उपरान्त जो संपत्ति बचे उस का उत्तराधिकार तय होता है। जिन लोगों को विधि के अनुसार मृतक की संपत्ति का हिस्सा मिलता है, उसका वे बँटवारा नहीं करें तब तक वह उन उत्तराधिकारियों की संपत्ति बनी रहती है।
  • कोई भी मुस्लिम वसीयत कर सकता है। लेकिन केवल एक तिहाई संपत्ति की वसीयत की जा सकती है तथा किसी भी उत्तराधिकारी के नाम नहीं की जा सकती, जब तक कि अन्य उत्तराधिकारियों से वसीयत करने वाला अनुमति प्राप्त नहीं कर ले।
  • वंश-परंपरा में (जैसे पुत्र-पोता) नजदीकी रिश्ते (पुत्र) के होने पर दूर के रिश्ते (पोते) को हिस्सा नहीं मिलता है ।

शिया और सुन्नियों के लिए अलग-अलग नियम हैं। लेकिन निम्नलिखित सामान्य नियम दोनों पर लागू होते हैं-

सुन्नी और शिया उत्तराधिकार में अंतर-

  • सुन्नी मुस्लिम समाज में पति की ओर से रिश्तेदारी के जरिये ही संपत्ति में हक मिलता है। लेकिन शिया समाज में पुरुष और स्त्री दोनों के रिश्तेदारों का विरासत में हक होता है।
  • अंतिम संस्कार के खर्च और ऋणों के भुगतान के बाद बची संपत्ति का केवल एक तिहाई वसीयत के रुप में दिया जा सकता है।
  • पुरुष वारिस को महिला वारिस से दोगुना हिस्सा मिलता है।
  • वंश-परंपरा में (जैसे पुत्र-पोता) नजदीकी रिश्ते (पुत्र) के होने पर दूर के रिश्ते (पोते) को हिस्सा नहीं मिलता है।
  • मुस्लिम विधि में उत्तराधिकार में बेटी का हिस्सा बेटे के हिस्से से आधा होता है।
  • एक मुस्लिम विधवा को अपने पति की संपत्ति में अधिकार पति की मृत्यु के उपरान्त ही प्राप्त हो जाता है।
  • एक खास परिस्थिति में किसी भी उत्तराधिकारी का शेयर बदल जाता है। उसमें उत्तराधिकारियों की तीन श्रेणियाँ हैं। शेयरर, रेजिड्युअरी और डिस्टेंट किंड्रेड।
  • सबसे पहले मृतक की संपत्ति से उस के अंतिम संस्कार का व्यय, मेहर, कर्जा आदि का भुगतान किया जाता है। इन के बाद बची हुई संपत्ति शेयरर के बीच उन के हिस्सों के हिसाब से बाँटी जाती है। उन के शेयर्स का भुगतान होने के बाद शेष संपत्ति या कोई भी शेयरर उपलब्ध न होने पर रेजीड्युअरियों के मध्य बाँटी जाती है।
  • यदि किसी मृतक/ मृतका के कोई पुत्र नहीं है तो पुत्री शेयरर्स में सम्मिलित हो जाती है। लेकिन यदि पुत्र जीवित है तो फिर पुत्र और पुत्रियाँ दोनों ही शेयरर्स नहीं होते अपितु रेजिड्यूअरी हो जाते हैं। पुत्रों को जितना मिलता है उसका आधा पुत्री को प्राप्त होता है।
  • मुस्लिम समाज में पुरुष को महिला से दोगुना हक मिलता है। मुस्लिम महिला सिर्फ बेटी की हैसियत से, विधवा की हैसियत से और दादी की हैसियत से धन संपत्ति में हिस्सा लेने की हकदार है।
  • मुस्लिम महिला को विवाह के समय हिफाज़त रकम के तौर पर मेहर दिया जाता है। लड़की शादी के समय या निकाह के पश्चात कभी भी मेहर ले सकती है। मेहर की सीमा पति तय करता है।

ईसाइयों को उत्तराधिकार :

भारतीय ईसाइयों को उत्तराधिकार में मिलने वाली संपत्ति का निर्धारण उत्तराधिकार कानून के तहत होता है। विशेष विवाह कानून के तहत विवाह करने वाले तथा

ईसाई महिलाओं को अपने नाम पर संपत्ति का अधिकार है। खुद की कमाई पर जाहिर है खुद का अधिकार है।

ईसाई महिलाओं को अपने नाम पर संपत्ति का अधिकार है। खुद की कमाई पर जाहिर है खुद का अधिकार है।

भारत में रहने वाले यूरोपीय, एंग्लो इंडियन तथा यहूदी भी इसी कानून के तहत आते हैं :

  • विशेष विवाह कानून के तहत विवाह करने वाले तथा भारत में रहने वाले यूरोपीय, एंग्लो इंडियन तथा यहूदी भी इसी कानून के तहत आते हैं ।
  • विधवा महिला को एक तिहाई संपत्ति पाने का हक है । बाकी दो तिहाई मृतक की सीधी वंश परंपरा के उत्तराधिकारियों को मिलता है।
  • इसमें बेटे और बेटियों को बराबर का हिस्सा मिलता है ।
  • पिता की मृत्यु से पहले मर जाने वाले बेटे की संतानों को उसे बेटे का हिस्सा मिल जाता है ।
  • अगर केवल विधवा जीवित हो तो उसे आधी संपत्ति मिलती है और आधी मृतक के पिता को मिल जाती है ।
  • अगर पिता जिंदा ना हो तो यह हिस्सा मां, भाइयों तथा बहनों को मिल जाता है ।
  • किसी महिला की संपत्ति का भी इसी तरह बंटवारा होता है।
  • ईसाई महिलाओं को अपने नाम पर संपत्ति का अधिकार है। खुद की कमाई पर जाहिर है खुद का अधिकार है।
  • महिलाएं पति की जायदाद में एक-तिहाई हिस्से की हकदार रहती है। बची संपत्ति में सभी बच्चों को समान हिस्सा मिलता है।
  • स्त्री अपनी संपत्ति की वसीयत कर सकती है। स्त्री और पुरुष में बराबरी लाने के लिए कई और कानून बनाए गए हैं।
  • विधवा को एक तिहाई संपत्ति पाने का हक है। बाकी दो तिहाई मृतक की सीधी वंश परंपरा के उत्तराधिकारियों को मिलता है।
  • बेटे और बेटियों को बराबर का हिस्सा मिलता है।
  • पिता की मृत्यु से पहले मर जाने वाले बेटे की संतानों को उसे बेटे का हिस्सा मिल जाता है।
  • अगर केवल विधवा जीवित हो तो उसे आधी संपत्ति मिलती है और आधी मृतक के पिता को मिल जाती है।
  • अगर पिता जिंदा ना हो तो यह हिस्सा मां, भाइयों तथा बहनों को मिल जाता है।
  • किसी महिला की संपत्ति का भी इसी तरह बंटवारा होता है।

 पारसियों को उत्तराधिकार

  • पारसियों में पुरुष की संपत्ति उसकी विधवा , बच्चों तथा माता-पिता में बंटती है ।
  • लडक़े तथा विधवा को लडक़ी से दोगुना हिस्सा मिलता है ।
  • पिता को पोते के हिस्से का आधा तथा माता को पोती के हिस्से का आधा मिलता है ।
  • किसी महिला की संपत्ति उसके पति और बच्चों में बराबर-बराबर हिस्सों में बंटती है ।
  • पति की संपत्ति के बंटवारे के समय उसमें पत्नी की निजी संपत्ति नहीं जोड़ी जाती है।
  • पत्नी को अपनी संपत्ति पर पूरा अधिकार है। उसकी संपत्ति में उसकी आय, निजी साज-सामान तथा विवाह के समय मिले उपहार शामिल हैं।
  • शादी के समय दुल्हन को मिले उपहार और भेंट स्त्रीधन के तहत आते हैं।
  • उच्चतम न्यायालय ने अपने एक फैसले में स्पष्ट किया है कि हिंदू विवाह कानून की धारा 27 के तहत स्त्रीधन पर पूर्ण अधिकार पत्नी का होता है और उसे इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।

नोट- किसी फंड या बीमा पॉलिसी में नामांकन हो जाने से नामांकित व्यक्तिके नाम संपत्ति हस्तांतरित नहीं हो जाती है। वह तो किसी की मृत्यु के बाद इन रकमों का केवल ट्रस्टी है ।

 

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5 Responses

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  1. योगेश
    Nov 29, 2016 - 03:32 PM

    अगर कोर्इ 1 व्‍यक्ति की सम्‍पत्ति के दो पुत्र हिस्‍सेदार है और दोनो पुत्रो मे से किसी 1 पुत्र की मृत्‍यु हो जाये तो उसका हिस्‍सेदार उसके पुत्र होते है किन्‍तु अगर सम्‍पत्ति मा के नाम पर हो जाये और मा अपने छोटे पुत्र की सम्‍पत्ति भी अपने बाडे पुत्र के नाम पर कर दे और छोटे पुत्र के बच्‍चो के नाम पर ना करे तो बच्‍चे अपना हिस्‍सा कैसे लेगे

    Reply
  2. रंजीत कुमार पंडित
    Dec 26, 2016 - 08:43 PM

    अगर पिताजी के नाम जमीन है और उसके विमारी, मृत्यु के समय लिया कर्ज माँ ने लिया हो तो उस नसीहत का बटवारा केसे करे

    Reply
  3. रंजीत कुमार पंडित
    Dec 26, 2016 - 08:49 PM

    मेरे भाई के मृत्यु के होने के पहिले तीन पुत्र है उसके बाद उनकी पत्नी ने मेरे छोटे भाई के साथ शादी कर लिया उसमे एक भी बच्चा पैदा नहीं हुआ तो क्या उसका दो हिस्सा होगा

    Reply
  4. sa
    Feb 18, 2017 - 08:17 PM

    muslim law k hisab se beti pitah k vasiyat k liye kya unke marane ke kitne sal bad me vasiyat me se hissa mang sakti hai,

    aur agar jaydat pitah ko kisine gift di hogi to beti ka uspar kitna adhikar banta hai aur pitah k mrutyu k kitne sal bad hissa ki adhikari hai?

    Reply
  5. टीटू
    Mar 08, 2017 - 05:28 AM

    मेरे दादा जी की मौत हो गई और जमीन पर दादा जी ने करज लिया हुआ है तो उस करज को कौन देगा

    Reply

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