कृषि सचिव ने प्राकृतिक खेती कर रहे प्रगतिशील किसानों के फार्मो का किया निरीक्षण

कृषि विज्ञान केन्द्रों के वैज्ञानिकों के लिए प्राकृतिक कृषि पर प्रशिक्षण कार्यक्रम

विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में प्राकृतिक खेती पर वैज्ञानिक मॉडल के विकास के लिए कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) के ज़ोन 1 के वैज्ञानिकों का तीन दिवसीय अभिविन्यास प्रशिक्षण कार्यक्रम आज डॉ यशवंत सिंह परमार औदयानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के विस्तार शिक्षा निदेशालय में शुरू हुआ। यह कार्यक्रम ‘अंडरस्टैंडिंग नेचुरल फार्मिंग फॉर इट्स फ्लॉलेस स्ट्रैटेजीज टू आउट स्केल टू केवीके (जोन- I)’ का आयोजन आईसीएआर-कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान (ATARI), लुधियाना के सहयोग से किया जा रहा है।

इस अवसर पर  विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ इंदर देव ने कहा कि हिमाचल मॉडल ने देश को दिखाया है कि प्राकृतिक खेती एक वैकल्पिक उत्पादन तकनीक हो सकती है जो इनपुट लागत को कम करने, पर्यावरण के संरक्षण और कृषि आय में वृद्धि करने में मदद कर सकती है। उन्होंने कहा कि केवीके के हस्तक्षेप से प्राकृतिक खेती हर किसान के खेत तक फैल सकती है। जोन 1 के लिए प्राकृतिक खेती के नोडल अधिकारी डॉ राजेश राणा ने कहा कि कृषि विज्ञान केंद्र किसानों को नवीनतम कृषि ज्ञान प्रसारित करने का एक उत्कृष्ट माध्यम है। उन्होंने प्राकृतिक खेती में हिमाचल प्रदेश के प्रयासों की सराहना की और कहा कि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ देश भर के वैज्ञानिकों और किसानों के साथ अपने ज्ञान को साझा कर रहे हैं और इस कृषि प्रणाली के बारे में जागरूकता बढ़ाने में योगदान दे रहे हैं। डॉ. राणा ने कहा कि निकट भविष्य में जोन 1 से 4-5 मॉडल एक्शन प्लान विकसित करने का लक्ष्य है।

प्रथम सत्र में नौणी विवि में प्राकृतिक कृषि कार्यक्रम के समन्वयक डॉ. सुभाष वर्मा ने प्राकृतिक खेती के इतिहास और विरासत के बारे में बताया जबकि डॉ. कुलदीप ठाकुर ने इस प्रणाली के तहत फसल जियॉमेट्री के महत्व के बारे में बात की। डॉ. उपेंद्र सिंह ने प्राकृतिक कृषि के विभिन्न आदानों और उनके उपयोग के बारे में जागरूकता फैलाई जबकि डॉ. उषा शर्मा ने इस प्रणाली में फल फसलों के एकीकरण पर एक प्रस्तुति दी।

कार्यक्रम समन्वयक डॉ. अनिल सूद ने बताया कि जोन-1 जिसमें जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब के केवीके शामिल है, के 82 वैज्ञानिक इस कार्यक्रम में भाग ले रहें हैं। तीन दिनों के दौरान, विभिन्न कृषि विज्ञान केंद्रों के वैज्ञानिकों को विभिन्न तकनीकी सत्रों के माध्यम से प्राकृतिक खेती की बुनियादी बातों से अवगत करवाया जाएगा। प्रतिभागियों को इस तकनीक के परिणामों को प्रदर्शित करने के लिए किसानों के खेतों का दौरा भी करवाया जाएगा।

सम्बंधित समाचार

Comments are closed