नवम्बर में बर्फबारी सेब व अन्य फलदार पौधों के लिए फायदेमंद...रखें इन बातों का भी ध्यान : डॉ. भारद्वाज

नवम्बर में बर्फबारी सेब व अन्य फलदार पौधों के लिए फायदेमंद…लेकिन रखें इन बातों का भी ध्यान : डॉ. भारद्वाज

  • नवम्बर माह का तापमान औसतन 12-14 डिग्री सेल्सियस, जो कि वूली एफिड की जीव संख्या बढ़ाने में सहायक
  • बागवान वैज्ञानिक सलाह लेकर ही करें बागीचों की समस्या का समाधान

गत कई वर्षों के बाद नवम्बर माह के अन्तिम सप्ताह में प्रदेश के ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में अच्छी हिमपात व मध्य तथा निचले पहाड़ी क्षेत्रों में वर्षा जल की प्राप्ति हुई है

बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एस.पी. भारद्वाज

बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एस.पी. भारद्वाज

जो सभी दृष्टिकोण से प्रकृति की ओर से सकारात्मक संकेत है। इस समय हुआ हिमपात सेब तथा अन्य फलदार पौधों में न केवल वर्षा जल का संग्रह करने में सहायक सिद्ध होगा अपितु बहुत से कारकों को नियंत्रण करने में सहायक सिद्ध होगा। निचले व मध्यम पहाड़ी क्षेत्रों के लिए यह रबी फसलों व सब्जियों के लिए अत्यंत लाभप्रद है।

  • मौसम अनुकूल होने के कारण किसी कीटनाशी का छिड़काव वूलीएफिड को नियंत्रण हेतु प्रयोग करने की आवश्यकता ही नहीं

हिमपात के कारण तापमान में भारी गिरावट देखने में मिली है जो पौधों में शीतस्वाप प्रक्रिया को आरम्भ करने में सहायक होगा तथा पत्तियां पीली होकर गिरने में सहायता होगी। नवम्बर माह का तापमान औसतन 12-14 डिग्री सेल्सियस के मध्य रहता है जो वूली एफिड की जीव संख्या को बढ़ाने में सहायक है, तापमान में गिरावट तथा हवा में आद्र्रता बढऩे के कारण वूली एफिड के प्रकोप में तथा जीवसंख्या के विस्तार में कमी आएगी व इसे अब वर्तमान परिस्थितियों में नियंत्रण करने की आवश्यकता नहीं होगी, यह मौसम अनुकूल होने के कारण स्वत: नियंत्रित हो जाएगा, अत: किसी कीटनाशी का छिड़काव वूलीएफिड को नियंत्रण हेतु प्रयोग करने की आवश्यकता ही नहीं है।

नवम्बर-दिसम्बर माह में रैड माईट के वयस्क अण्डे देने की प्रक्रिया में सक्रिय होते हैं। तापमान में हुई इस गिरावट से रैड माईट की मादा अब अण्डाजनन प्रक्रिया में क्रियाशील नहीं हो पाएगी, उससे सेब बागीचों में रैड माईट के अण्डों की जीवसंख्या में भी कमी आने की सम्पूर्ण संभावना है। अब दिसम्बर में रैड माईट मादा बहुत कम संख्या में ही अण्डे दे पाएगी।

  • मौसम में सुधार होने के पश्चात पौधों के तनों पर बागवान अवश्य करें चूना-नीले थोथे का लेपन

मौसम में सुधार होने के पश्चात बागवानों को चाहिए कि पौधों के तनों पर चूना-नीले थोथे का लेपन अवश्य करें। इसे शीघ्रतिशीघ्र करने में संकोच न करें। घोल बनाने के लिए एक किलो क्यूप्राक्स या लाला थोथा में 9 किलो साधारण चूना मिलाएं तथा इसमें 20-22 लिटर पानी मिला लें, फिर इसी घोल में एक लिटर एचएमओ (सर्बो, आरवोफाईन) जिनकी सिफारिश छिड़काव के लिए की गई है मिलाएं तथा पौधों के तने से पहली शाखा तक सम्पूर्ण रूप से चारों ओर करें। एचएमओ की उपलब्धि न होने पर एक लीटरअलसी का तेल उबालकर ठंडा कर लें, फिर इस घोल में मिलाएं। पौधों के तने में चूना-नीलाथोथा लेपन से तनों पर कैकर रोग, स्केल, वूलीएफिड, रैडमाईट तथा तना छेदक का प्रकोप उस भाग में नहीं हो पाता। इसके अतिरिक्त पौधों के तने फटने की संभावना कम हो जाती है।

  • पौधों से गिरी पत्तियों को चारों ओर घेरे में फैलाकर मिट्टी में मिला दें, फिर मिट्टी की हल्की परत से ढक दें

अधिकतर बागवान पौधों से गिरी पत्तियों को या तो जला देते हैं या फिर कोई ध्यान नहीं देते। यह पत्तियां पोषक तत्तवों का प्राकृतिक भण्डार है, इसे तौलिए या

इसके बाहरी भाग से जहां तक संभव है, को एकत्र करके पौधों के तने से कम से कम एक मीटर की दूरी पर यानि बाहरी आधे भाग में चारों ओर घेरे में फैलाकर मिट्टी में मिला दें और फिर इसे मिट्टी की हल्की परत से ढक दें। इन पत्तियों में स्वाभाविक व प्राकृतिक पोषक तत्व मिट्टी की उर्वरकता व कार्बनिक पदार्थ को बढ़ाने में अभिन्न योगदान करते हैं। लम्बे समय तक इस प्रक्रिया को दोहराने पर उर्वरकों की मात्रा में 50-60 प्रतिशत तक कमी की जा सकती है।

इसी समय फास्फोरस खाद का प्रयोग भूमि में किया जा सकता है, सुपर फास्फेट की 2.2 किलो मात्रा प्रति फलदार पौधा जो दस वर्ष से अधिक आयु का है, में तौलिए के बाहरी भाग, जिसमें सूखी पत्तियां मिलाने की सलाह दी गई है, प्रयोग करें। इसे मिट्टी की सतह से ढंक दें।

यदि गोबर की गली-सड़ी खाद उपलब्ध है इसे भी 50-100 किलो प्रति फलदार पौधों जिनकी आयु 10 वर्ष या इससे अधिक है, में एक साथ की जा सकती है।

पौधों के तने से एक मीटर की दूरी पर किसी प्रकार की खाद या उर्वरक का प्रयोग कदापि न करें, इस भाग में डाली गई खाद व उर्वरक पौधों को बहुत कम मात्रा

मौसम में सुधार होने के पश्चात पौधों के तनों पर बागवान अवश्य करें चूना-नीले थोथे का लेपन

मौसम में सुधार होने के पश्चात पौधों के तनों पर बागवान अवश्य करें चूना-नीले थोथे का लेपन

में उपलब्ध हो पाते हैं।

  • पौधों की अनवांछित शाखाओं तुरन्त काट कर हटा दें

पौधों के जड़वों व अत्यंत छोटे आकार की अनवांछित शाखाओं जो आपस में टकराती है या एक-दूसरे की विपरीत दिशा में या फिर भीतरी भाग में अंधेरा कर रही है। या सीधी आसमान की ओर जा रही हों, को तुरन्त काट कर हटा दें।

  • पौधों की कांट-छांट का सही समय फरवरी

पौधों की कांट-छांट का सही समय फरवरी के आसपास होता है यानि पौध रस चढऩे से एक महीना पूर्व में की गई कांट-छांट पौधों में कैकर रोग को पनपने नहीं देती, घाव पर वूली एफिड या स्मोकी ब्लाईट कैकर का रोग पनप नहीं पाता तथा फलों की फूल बनने की प्रक्रिया व फल की गुणवत्ता भी उत्कृष्ट बनी रहती है।

  • पत्ती झडऩ के तुरत्न बाद जिंक सल्फेट 1 किलो व व्रिक (300 ग्राम) प्रति 200 लिटर पानी में मिलाकर छिड़कें

पौधों में पत्ती झडऩ या इसके तुरत्न बाद जिंक सल्फेट 1 किलो व व्रिक (300 ग्राम) प्रति 200 लिटर पानी में मिलाकर छिड़कें। इस छिड़काव से बीमों में स्वास्थ्य सुधार तथा अगले वर्ष जिंक व कैलशियम तथा वोरोन तत्व की कमी की भरपाई होने में सहायता मिलेगी। इसे अतिरिक्त बीमों द्वारा उत्पादित फूलों के साईज व फलों की सैटिंग में सुधार होगा तथा गुणवत्तायुक्त फल उत्पादन में सहायक सिद्ध होगा।

न कार्यों के अतिरिक्त यदि बागीचों में कोई विशेष समस्या दिखाई देती हो तो, वैज्ञानिक सलाह लेकर ही उसका समाधान करें, आपसी देखा-देखी में किसी भी उत्पादन से प्रभावित न हों और वैज्ञानिक पद्धति से ही फल उत्पादन करें, अपने खर्चे घटाएं तथा कम कीटनाशी या फफूंदनाशी का ही प्रयोग करें। यानि आवश्यक्तानुसार ही समाधान करें।

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