पारम्परिक परिधानों व आभूषणों से सुशोभित हिमाचल की छटा बिखेरता पहाड़ी लोकनृत्य

हिमाचल की संस्कृति को संजोये प्रदेश के हर जिले के अनूठे लोकनृत्य

हिमाचल का विश्व विख्यात “पहाड़ी लोकनृत्य”

हिमाचल प्रदेश के लोक नृत्य

हिमाचल में लोकनृत्य की अपनी ही एक अनोखी परम्परा है। प्रदेश के हर जिले में अलग-अलग भाषाएं, संस्कृति, त्यौहार, मेले, उत्सव, कलाएं अपने आप में बेजोड़ हैं, वहीं प्रदेश के हर जिले का लोकनृत्य भी अपनी एक विशेष महत्ता लिए है। प्रदेश के हर जिले में जहां शादी-ब्याह, तीज-त्यौहार, मेले व अन्य उत्सवों में अपने पारम्परिक परिधानों व आभूषणों से सुशोभित होकर लोकनृत्य की मिसाल अलग-अलग देखने को मिलती है। दूसरी ओर इन्हीं लोकनृत्यों को भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। इस बार हम हिमाचल लोक-संस्कृति में आपको प्रदेश के लोकनृत्यों के बारे में विस्तार से अवगत करवाएंगे।

पारम्परिक वेशभूषा से सुशोभित हिमाचली नाटी का एक दृश्य

पारम्परिक वेशभूषा से सुशोभित हिमाचली नाटी का एक दृश्य

हिमाचल में एकल और सामूहिक दोनों तरह के नृत्य

हिमाचल प्रदेश में एकल और सामूहिक दोनों तरह के नृत्य होते हैं। एकल नृत्य बिलासपुर, सोलन, सिरमौर और शिमला की पहाडिय़ों में अधिक प्रचलित हैं। बिलासपुर और सोलन में इसे गिद्धा कहा जाता है, जबकि सिरमौर और शिमला की पहाडिय़ों के कुछ क्षेत्रों में इसे मुजंरा कहा जाता है। अन्य एकल नृत्य प्रेक्षणी, नटरंभ और चेरी आदि भी हैं। नृतक और गायक एक गोले में बैठते हैं। ज्यों-ज्यों संगीत और गीत की गति तीव्र होती है एक व्यक्ति गोले से निकलकर केंद्र में आकर खड़ा हो जाता है। संगीत की ताल तथा गायकों की तालियों और पूरे शरीर को कलात्मक ढंग से हिलाता है। यह कुछ समय तक चलता है और फिर वह वापस गोल दायरे में आकर बैठ जाता है। इसी समय दूसरा व्यक्ति दायरे के केंद्र में पहुंचकर पहले व्यक्ति की तरह हैं। अपनी कला को अधिक आकर्षक बनाने के लिए कभी-कभी नर्तक सिर पर पानी भरा लोटा रख कर नचाता है। यह नृत्य थाली नृत्य कहलाता है यह नृत्य सिरमौर, शिमला की पहाडिय़ों तथा पड़ोसी उत्तर प्रदेश में प्राय: खुले मैदान में ही किया जाता है परतुं रात्रि  को अथवा खराब मौसम में ये बरामदे में या किसी खुले कमरे में भी किए जाते हैं। सामान्यत: स्त्रियों और पुरुष अलग-अलग नृत्य समारोह आयोजित करते हैं। सामाजिक मिलन के अवसरों पर यथा विवाह, मेले, त्यौहार आदि इनके लिए उपयुक्त अवसर होते हैं।

विशेष अवसरों पर प्रमुख नर्तक विशिष्ट पोशाक पहन अपने सिर पर धारण करता है कलगी 

सामूहिक नृत्यों के अनेक भेद हैं जिनमें से कुछ में तो सैकड़ों लोग एक साथ भाग लेते हैं। इस प्रकार के नृत्य खुले स्थानों पर यथा मंदिर के आंगन में अथवा गांव के खलिहान में किए जाते हैं। नतृक एक वृत्त बनाते हैं जिससे उनको गोलाकार तथा अद्र्धगोलाकार रूप में गतिशील होने का अवसर मिलता है। कभी-कभी वे हवा में भी अपने बाजू लहराते हैं। विशेष अवसरों पर प्रमुख नर्तक अपने सिर पर कलगी धारण करता है, विशिष्ट पोशाक पहनता है और जाजनी अर्थात नृत्य के आभूषण धारण करता है। वे अपने हाथों में तलवारों, डांगरा अर्थात नृत्य की कुल्हाडिय़ां अथवा रूमाल भी धारण करते हैं।
कुल्लू में ऐसे नृत्यों को नाटी कहा जाता है तथा शिमला के पहाड़ों में इसे जी अथवा माला नृत्य कहा जाता है। नाटी मूलत: अव्यावसायिक लोगों के लिए होती है जो कि केवल अपने आनंद के लिए नाचते हैं, दर्शकों को दिखाने के लिए नहीं। शास्त्रीय नृत्यों के मुकाबले में इनमें कोई कठोर नियम नहीं होते और थोडा परिवर्तन सदा स्वीकार्य  होते हैं। प्राय: सबसे अनुभवी और बुजुर्ग नर्तक ही नर्तकों की पंक्ति का नेतृत्व करता है परंतु आजकल सबसे प्रभावशाली अथवा धनी व्यक्ति को यह विशेषाधिकार दे दिया जाता है।

पतझड़ की फसल की कटाई के पश्चात् स्त्रियां और पुरुष करते हैं काठी नाच

कुल्लू का एक और प्रसिद्ध नाच, काठी है। पतझड़ की फसल की कटाई के पश्चात् स्त्रियां और पुरुष इसके माध्यम से आनंद लेते हैं। अपनी रंग-बिरंगी वेश-भूषा में वे खुले मैदान में एकत्रित होते हैं और चांदनी रात में बांहों में बांहे डालकर नर्तक एक गोला लेते हैं और धीरे-धीरे सुंदर ढंग से अंग परिचालन करते हैं। शीघ्र ही जब है तब नारियां अपने साथी पुरुष नर्तकों को और जोर से मस्ती में से ताल देती है। नृत्य की गति का गीत की भावना से गहरा संबंध रहता है तथा गीत प्रेम से लेकर ऐतिहासिक घटनाओं तथा देवताओं को श्रद्धांजलि अर्पण करने तक के होते हैं।
बूढ़ा नृत्य सिरमौर का एक प्रमुख नृत्य है। वह 10 से 15 व्यक्तियों के दल में किया जाता है जिसमें संगीतकार भी सम्मिलित रहते हैं। संगीत वाद्य हुरकी को बजाया जाता है। तीन या चार व्यक्ति हुरकी बजाते हैं। और शेष अपनी कुल्हाडिय़ां जिन्हें डांगरी कहते हैं को लहराते हैं हुए नाचते हैं। अतीत में जीते हुए युद्धों के नायकों की वीरता की गाथा गाई जाती हैं और वीरगति प्राप्त  करने वालों के गीत गाए जाते हैं। इस नृत्य की प्रमुख विशेषता है शरीर के अंगों की मुक्त गतिशीलता।

रंग-बिरंगे वस्त्रों को पहन कर और चांदी के आभूषणों को धारण कर नृत्य करते गद्दी-गद्दनें

रंग-बिरंगे वस्त्रों को पहन कर और चांदी के आभूषणों को धारण कर नृत्य करते गद्दी-गद्दनें

गद्दियों में पुरुष और स्त्रियां अलग-अलग नाचती हैं

गद्दियों में पुरुष और स्त्रियां अलग-अलग नाचती हैं। पुरुष सार्वजनिक स्थलों पर नाचते हैं जबकि स्त्रियां अपने घरों के अहातों में। 25 से 30 नतृक एक गोलदायरा बना लेते हैं और ढोलक की थाप तथा शहनाई के मधुर संगीत के साथ धीमा तालयुक्त अंग-संचालन प्रारंभ करते हैं। उनकी स्त्रियां घर के बने रंग-बिरंगे वस्त्रों को पहन कर और चांदी के आभूषणों को धारण करके नर्तक दल के चारों ओर बैठकर उसे प्रोत्साहित करती है। शीघ्र ही नाच तेज हो जाता है और आओ मिलकर, नांचे तथा भला राए  अर्थात हम नाच कर खुश हैं की ऊंची आवाजें सारे वातावरण में गूंज उठती है। नर्तक गोलाकार नाचते हैं और उनके चोले खुले छातों की तरह लगते हैं। देसी शराब लुगदी उन्हें मस्त बनाए रखती है और वे देर रात तक गद्दी प्रेमियों की साहसिक गाथाओं को गाते हैं जिनमें गद्दी प्रेमी-युगल कुंजू और चंचलों का गीत प्रसिद्ध हैं जिन्हें चंबा का रोमियों और जुलियट कहा जा सकता है।

किन्नौर में तीन प्रकार के लोक-नृत्य

किन्नौर क्षेत्र भी अपने नृत्यों के लिए प्रसिद्ध है। किन्नौर में तीन प्रकार के लोक-नृत्य हैं। इनमें सबसे लोकप्रिय क्यांग है। इस नृत्य में स्त्रियां और पुरुष अद्र्धवृत्ताकार खड़े होते हैं और बजंतरी अद्र्धवृत के केंद्र में खड़ होते हैं। एक अधेड़ आयु का पुरुष, पुरुषों का नेतृत्व करता है और अधेड़, स्त्री, स्त्रियों का। नृत्य आगे बढ़ता है एक पूर्ण वृत्त बना लिया जाता है जिसमें हर व्यक्ति अपने दांई ओर के तीसरे व्यक्ति का हाथ पकड़ता है। यह गोलाकार समूह धीरे-धीरे घूमता है और अन्तत: नेता हो, हो, हो , हो,  चिल्लाता है और प्रत्येक नर्तक घुटने को मोडक़र आगे को झटका लगाता है। नर्तकियां गाती रहती हैं और पहले दो स्त्रियां गाती हैं और शेष सब उनके पीछे दोरहाती है जाती हैं। यह नृत्य घंटों चलता है।

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2 Responses

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  1. dev
    Jun 16, 2016 - 04:04 PM

    sir/madam aapke dwara di hui ye bistrirt jankari upyogi hia lekin kripya is priksha ki drishti se likhe ..,jaise ki himachal ke alag alag jilon ke nritya .,bhashayen,boliyan, aadi

    Reply
    • मीना कौंडल
      Jun 16, 2016 - 06:10 PM

      देवराज जी…हम कोशिश करेंगे कि आपके दिए सुझाव पर शीघ्र अम्ल करने की। धन्यवाद।

      Reply

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