हिमाचल: आर्थिकी मजबूत करने के लिए औषधीय पौधों की खेती में अपार संभावनाएं
प्रदेश के किसानों और बागवानों को औषधीय पौधों की खेती के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिससे न केवल उनकी आर्थिकी मजबूत होगी, अपितु आयुर्वेद औषधियां तैयार करने के लिये इन पौधों की सुगम उपलब्धता होगी। कांगड़ा जिले की पालमपुर व कांगड़ा तहसील, शिमला की रामपुर तहसील तथा मण्डी, कुल्लू, चम्बा व सिरमौर जिलों के 700-1800 मीटर ऊॅंचाई वाले क्षेत्रों में नीलकण्ठी, संसवाई, दारूहरिदा, भांग, सफेद, मूसली, धतूर, तिल पुष्पी, तरडी, सिंगली-मिंगली, कर्पूर कचरी, जर्मन चमेली, कटफल, जंगी ईश्वगोल, बादाम, खुमानी, दाड़िम, कंटकारी, चिरायता, ममीरी जैसे औषधीय पौधों की प्रजातियां पाई जाती हैं।
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औषधीय पौधों
इसी प्रकार शिमला, कुल्लू, सोलन, चम्बा, मण्डी, कांगड़ा एवं सिरमौर जिलों के पहाड़ी क्षेत्र जो 1800 से 2500 मीटर की ऊॅंचाई वाले ठण्डे क्षेत्र हैं, में लगभग 60 किस्म के औषधीय पौधे पाए जाते हैं। इनमें मुख्यतः तालिस पत्र, पतीसत्र, अतीस, दूधिया, किरमाला, भोजपत्र, देवदारू, निरविसी, कडू, शटी, पतराला, जीवक विषकन्दा, जर्मन चमेली, जटामांसी, चिलगोजा, बनककड़ी, महामेदा, रेवन्द चीनी, बुरांस, काकोली, काली जड़ी, कस्तूरी पत्र, चिरायता, वन अजवायन तथा जंगली प्याज जैसे औषधीय पौधों की प्रजातियां पाई जाती हैं।
राज्य के जनजातीय जिलों लाहौल-स्पिति और किन्नौर तथा कुल्लू, कांगड़ा व शिमला के ऊॅंचाई वाले ठण्डे मरूस्थलीय क्षेत्र जो 2500 मीटर से अधिक की ऊॅंचाई पर स्थित हैं, में अति महत्वपूर्ण औषधीय पौधों की प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें पतीस, बत्सनाभ, अतीस, ट्रेगन, किरमाला, रतनजोत, काला जीरा, केसर, सोमलता, जंगली हींग, छरमा, खुरासानी अजवायन, पुष्कर मूल, हाऊवेर, धूप, धामनी, निचनी, नेरा, कैजावों, धूप चरैलू, शरगर, गग्गर तथा बुरांस शामिल हैं।
राष्ट्रीय आयुष मिशन द्वारा वर्तमान में अतिस, कुटकी, कुठ, सुगन्धवाला, अश्वगंधा, सर्पगन्धा तथा तुलसी औषधीय पौधों की खेती के लिए 100.946 लाख रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है। लघु विधायन तथा दो भण्डारण गोदामों के लिए 40 लाख रुपये, 25 लाख रुपये बीज केन्द्र तथा पांच लाख रुपये जैविक/परमाणिकता के लिए स्वीकृत किए गए है। हिमाचल प्रदेश की विविध भौगोलिक परिस्थितियां हैं और यहां समुद्रतल से 200 मीटर से लेकर 7000 मीटर ऊॅंचाई तक के क्षेत्र हैं। इन क्षेत्रों में विविध जलवायु के कारण अलग-अलग किस्म की जड़ी बुटियां व औषधीय पौधों की पैदावार होती है। उप-उष्णीय शिवालिक पहाड़ियों के अन्तर्गत 700 मीटर ऊॅंचाई वाले क्षेत्र जिला ऊना, बिलासपुर, हमीरपुर, सिरमौर, कांगड़ा, सोलन तथा मण्डी जिलों के पहाड़ी क्षेत्र आते हैं, जिनमें लगभग 160 प्रजातियों के औषधीय पौधों की खेती की जा सकती है।
इन औषधीय पौधों में मुख्यतः कस्तुरी भिंडी, खैर, बन्सूटी, नीलकण्ठी, घृत कुमारी, चुलाई, शतावर, नीम, ब्रहमी, कचनार, कशमल, पलाह, आक, करौंदा, अमलतास, वाथू, कासमर्द, सफेद मूसली, कपूर वृक्ष, तेजपत्र, झमीरी, लसूड़ा, वरूण, जमालघोटा, काली मसूली, आकाश बेल, धतूरा, भृगंराज, आमला, दूधली, अंजीर, पलाक्ष, मुहलठी, कुटज, चमेली, कौंच, तुलसी, इश्वगोल, सर्पगन्धा, एरंड, अश्वगन्धा, बनफशा, गिलोए, हरड़, जामून, अकरकरा, रीठा, अन्नतमूल आदि की पैदावार होती हैं।
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हिमाचल: औषधीय पौधों की खेती में अपार संभावनाएं
हिमाचल प्रदेश में औषधीय पौधों से जुड़ी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड (National Medicinal Plants Board) की तर्ज पर प्रदेश में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में राज्य औषधीय पादप बोर्ड का गठन किया गया है। औषधीय पौधों की महता को देखते हुए इनके उत्पादन और संरक्षण पर सरकार विशेष ध्यान दे रही है। औषधीय पौधों की खेती के लिए किसानों को राष्ट्रीय आयुष मिशन के अन्तर्गत वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है, जिसके लिए किसानों के कलस्टर बनाए जा रहे हैं। वित्तीय सहायता का लाभ प्राप्त करने के लिए किसानों के कलस्टर के पास कम से कम दो हैक्टेयर भूमि होना अनिवार्य है। किसानों के कलस्टर 15 किलोमीटर दायरे के भीतर साथ लगते तीन गांव हो सकते हैं। खेती के लिए बंधक भूमि का भी प्रयोग किया जा सकता है।