नई दिल्ली: तिब्बत चीन के साथ उसी तरह से रह सकता है जिस तरह से यूरोपीय संघ एक-दूसरे के साथ रहते हैं। ये बात तिब्बतियों के आध्यात्मिक धर्मगुरु दलाई लामा ने कहा है। उन्होंने अपनी बात को दोहराते हुए चीन से कहा है कि वह अपने देश के लिए सिर्फ स्वायत्तता चाहते हैं, स्वतंत्रता नहीं। उन्होंने कहा कि तिब्बत का अस्तित्व यूरोपीय संघ की तरह ही रह सकता है। आपको बता दें कि दलाई लामा ने इंटरनेशनल कैम्पेन फॉर तिब्बत की 30 वीं वर्षगांठ पर अपने एक वीडियों संदेश में कहा है कि मैं हमेशा यूरोपीय संघ की भावना की सराहना करता हूं। किसी एक के राष्ट्रीय हित से साझा हित ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। इस तरह की कोई अवधारणा सामने आई तो मैं उसके भीतर रहना पसंद करूंगा।
कौन हैं दलाई लामा: बता दें कि चीन आध्यात्मिक धर्मगुरु दलाई लामा को एक खतरनाक अलगाववादी मानता है। वर्ष 1959 में तिब्बत में एक जनक्रांति के विफल हो जाने के बाद दलाई लामा अपना देश छोड़ कर भारत आ गये थे और तब से लेकर अबतक दलाई लामा शर्णार्थी के तौर पर भारत में रह रहे हैं। दलाई लामा ने भारत के धर्मशाला में अपना केंद्र बनाया है और एक निर्वासित सरकार की स्थापना की है। आपको बता दें कि चीन की सेना ने 1950 के करीब तिब्बत पर कब्जा कर लिया था।
बता दें कि चीन दलाई लामा के लिए बहुत ही कड़े शब्दों का प्रयोग करता है। चीनी सरकार ने धर्मगुरू दलाई लामा को एक बार भिक्षु के भेष में अलगाववादी तक कह दिया था। चीनी सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह घोषणा कर चुका है कि कोई भी राष्ट्राध्यक्ष उनसे मुलाकात न करे।