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चम्बा से भरमौर तक के क्षेत्र को शिवपुरी कहा गया है। चम्बा के तीस किलोमीटर आगे रावी के दाएं किनारे गूं कोठी के शिव मंदिर के शिलालेख (मेरुवर्मन 680 ई.) में इस मंदिर को शिवपुरी के मध्य स्थित माना है। चम्बा से चालीस किलोमीटर लूणा पुल से एक सडक़ छतराड़ी को जाती है जहां ऐतिहासिक शक्तिदेवी का मंदिर है। लूणा पुल के पार भरमौर का जनजातीय क्षेत्र आरंभ होता है। दुर्गठी में भरमौर का पहला रेस्ट हॉऊस है। इससे आगे ऊंचे पहाड़ों का क्षेत्र गधेरन कहलाता है जहां गद्दी लोग वास करते हैं।
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गद्दी हिमाचल प्रदेश का एकमात्र आदि कबीला
गद्दी हिमाचल प्रदेश का एकमात्र आदि कबीला है जो छ: ऋतुएं बारह महीने अपनी भेड़ों के साथ चला रहता है। गर्मियों में गधेरन में पुहाल (भेड़-बकरियों के साथ जाने वाला) गद्दी घर लौटते हैं कुछ समय के लिए। उसी समय इन्हें भेड़ व बकरियों सहित लाहलु की ओर जाना होता है जहां नई घास उगती है। सर्दियों में प्रदेश के निचले क्षेत्र बिलासपुर की ओर प्रस्थान होता है।
साहिलवर्मन 920 ई. द्वारा स्थापित चम्पा या चम्बा से पहले रावी के पार सडक़ जाती है जो चम्बा के चुराह क्षेत्र में प्रवेश करती है। सुरगाणी बांध से आगे चुराह का मुख्यालय तीसा है। तीसा से आगे बैरागढ़ जहां से ‘साच’ दर्रे से होकर पांगी पैदल जाया जा सकता है। चम्बा से जनजातीय क्षेत्र पांगी के लिए यही एकमात्र रास्ता है। चुराह के लोगों का पहरावा गद्दियों से भिन्न है यद्यपि ये भी भेड़-बकरी पालन पर निर्भर हैं। जहां गद्दी महिलाएं लुआंचुड़ी पहनती हैं वहां चुराही कुल्लू की भांति पट्टू।
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बैरागढ़ से बीस किलोमीटर साच दर्रे का आधार सतरूंडी
बैरागढ़ से बीस किलोमीटर साच दर्रे का आधार सतरूंडी है। सतरूडी से पांच किलोमीटर सीधी चढ़ाई पर साच दर्रे की चोटी, दूसरी ओर लगभग छ: किलोमीटर उतराई पर पहला बगोटू। बगोटू से बिंद्रावणी और चंद्रभागा के पार चढ़ाई के बाद पांगी का मुख्यालय किलाड़। दूसरी ओर रोहतांग के पार उदयपुर तक बस-मार्ग से तथा आगे जीप द्वारा किलाड़ पहुंच सकते हैं।
पांगी में सात हजार से लेकर इक्कीस हजार फुट तक आबादी है। नीचे पंगवाल रहते हैं तो ऊंचाईयों में भोट या बौद्ध। पांगी का जनजातीय क्षेत्र एक ओर जम्मू से मिलता है तो दूसरी ओर चम्बा लाहुल लाहुल-स्पिति से।
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चम्बा की पुरातन राजधानी भरमौर का नाम ब्रह्मपुर था
चम्बा की पुरातन राजधानी भरमौर का नाम ब्रह्मपुर था। भरमौर को चौरासी भी कहा जाता है। क्योंकि यहां चौरासी मंदिर सिद्धों के मंदिर हैं। यद्यपि अब चौरसी की गिनती पूरी नहीं की जा सकती। ऊंची पहाड़ी पर स्थित भरमौर में ऐतिहासिक लखणा या लक्षणा देवी मंदिर, मणिमहेश मंदिर हैं।
लखणा देवी के साधारण-से दिखने वाले मंदिर में असाधारण मूर्ति और काष्ठकला है। शिखर शैली के मणिमहेश मंदिर के बाहर नंदी में महत्त्वपूर्ण लेख है। नंदी, लखणा देवी के अतिरिक्त एक शिलालेख गणेश मूर्ति में है। चौथा महत्त्वपूर्ण लेख शक्ति देवी छतराड़ी में है।
पांगी की ढलवां छत के साधारण मंदिरों में भी अच्छी काष्ठकला है। नाग मंदिर, देवी मंदिरों के अतिरिक्त मिंधल माता लेख इतिहास की कडिय़ां जोड़ता है।
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साभार: हिमाचलसुर्दशन वशिष्ठ